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भारत के खिलाफ ट्रंप का खौफनाक प्लान! नोबेल चाहिए ट्रंप को… और कीमत चुकाएगा भारत? पाकिस्तान में तख्तापलट को मिला अमेरिकी आशीर्वाद

Trump dangerous plan against India: 18 जून को पाकिस्तान की सत्ता के असली सूत्रधार—जनरल असीम मुनीर और डोनाल्ड ट्रंप के बीच एक ‘गुप्त लंच मीटिंग’ होती है। यह सिर्फ एक औपचारिक भेंट नहीं, बल्कि पाकिस्तान में ‘लोकतंत्र की अंत्येष्टि’ का आमंत्रण थी। इस मुलाकात ने अमेरिका की तरफ से यह साफ संदेश दिया कि रावलपिंडी को वाशिंगटन का समर्थन प्राप्त है—चाहे इसके लिए पाकिस्तान की निर्वाचित सरकार को कठपुतली क्यों न बनाना पड़े।

Harsh Srivastava
Published on: 28 Jun 2025 9:04 PM IST
भारत के खिलाफ ट्रंप का खौफनाक प्लान! नोबेल चाहिए ट्रंप को… और कीमत चुकाएगा भारत? पाकिस्तान में तख्तापलट को मिला अमेरिकी आशीर्वाद
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Trump dangerous plan against India: अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का नाम आते ही दुनिया की राजनीति में या तो भूचाल आता है या कोई नया समीकरण बनता है। लेकिन इस बार उन्होंने जो किया, वह न केवल खतरनाक है बल्कि भारत के लिए सीधा चुनौतीपत्र है। यह सिर्फ कूटनीतिक नहीं, बल्कि रणनीतिक ‘धमाका’ है, जिसकी गूंज नई दिल्ली से लेकर रावलपिंडी, तेहरान और वाशिंगटन तक सुनाई दे रही है। ट्रंप को नोबेल शांति पुरस्कार की दौड़ में डालने वाला यह घटनाक्रम दरअसल भारत को रणनीतिक मोर्चे पर घेरने की बड़ी और सुनियोजित चाल है—जिसका नाम है: पाकिस्तान।

जब ट्रंप ने रावलपिंडी को सौंप दी पाकिस्तान की ‘चाबी’

18 जून को पाकिस्तान की सत्ता के असली सूत्रधार—जनरल असीम मुनीर और डोनाल्ड ट्रंप के बीच एक ‘गुप्त लंच मीटिंग’ होती है। यह सिर्फ एक औपचारिक भेंट नहीं, बल्कि पाकिस्तान में ‘लोकतंत्र की अंत्येष्टि’ का आमंत्रण थी। इस मुलाकात ने अमेरिका की तरफ से यह साफ संदेश दिया कि रावलपिंडी को वाशिंगटन का समर्थन प्राप्त है—चाहे इसके लिए पाकिस्तान की निर्वाचित सरकार को कठपुतली क्यों न बनाना पड़े। इस मीटिंग में मुनीर अकेले नहीं आए थे। उनके साथ थे आईएसआई प्रमुख असीम मलिक। और वहीं दूसरी ओर प्रधानमंत्री शहबाज़ शरीफ को सिर्फ अमेरिकी विदेश मंत्री मार्को रुबियो की एक फोन कॉल से ही संतोष करना पड़ा। यह वही दिन था जब भारत को एक बार फिर एहसास हुआ कि अमेरिका, पाकिस्तान को अभी भी एक ‘अहम मोहरा’ मानता है—भले ही उसकी लोकतांत्रिक साख तार-तार क्यों न हो।

जब इमरान को हटाना बना अमेरिकी ‘एजेंडा’

यह कहानी नई नहीं है, लेकिन इसका पुनर्पाठ करना ज़रूरी है। साल 2022 में अमेरिकी अधिकारी डोनाल्ड लू ने पाकिस्तान के तत्कालीन राजदूत को साफ संदेश भेजा था—इमरान खान को हटाओ। इसका अर्थ था, "अगर खान गए तो अमेरिका माफ कर देगा।" और ऐसा ही हुआ। खान गए, जनरल मुनीर आए, और आज इमरान अदियाला जेल में कैद हैं। मुनीर को फील्ड मार्शल जैसा दर्जा मिला—जिसका कोई कार्यकाल नहीं होता। साफ है कि उन्हें अब पाकिस्तान के भीतर किसी भी लोकतांत्रिक ताक़त को उभरने से रोकने की खुली छूट मिल गई है—वाशिंगटन की आशीर्वाद के साथ।

पाकिस्तान ने ट्रंप को नोबेल के लिए किया नामित—और पीछे छुपी है बड़ी चाल!

पाकिस्तान ने हाल ही में डोनाल्ड ट्रंप को नोबेल शांति पुरस्कार के लिए नामित किया। लेकिन सवाल ये है—क्या ये ‘शांति’ है? जब ट्रंप ने ईरान के न्यूक्लियर ठिकानों पर बंकर बस्टर बम गिराने की अनुमति दी? क्या ये वही शांति है जिसकी आड़ में रावलपिंडी को दुबारा ताकतवर बनाया गया? असल में पाकिस्तान अब अमेरिका और चीन के बीच एक नया 'डिप्लोमैटिक पुल' बनने की कोशिश कर रहा है। और ट्रंप इसके पीछे मुख्य चालक बन गए हैं। पाकिस्तान क्रिप्टो को भी हथियार बना रहा है, अपनी ‘छवि सुधार’ के नाम पर। इमरान की गिरफ्तारी, सेना की सत्ता में वापसी और अब ट्रंप का समर्थन—ये तीनों मिलकर भारत के लिए बहुत बड़ा खतरा बन रहे हैं।

भारत के लिए अपमानजनक मोड़—जब वॉशिंगटन ने पीठ फेर ली

भारत ने जब देखा कि अमेरिका का झुकाव पाकिस्तान की ओर हो रहा है, तब नई दिल्ली में हड़कंप मच गया। हाल ही में व्हाइट हाउस और पीएम मोदी के बीच हुई फोन बातचीत में भी तल्खी झलक रही थी। भारत को समझ आ गया कि अब ट्रंप की वापसी या उनके प्रभाव का अर्थ है—भारत के लिए खतरे की घंटी। यह सिर्फ एक कूटनीतिक गिरावट नहीं, बल्कि एक रणनीतिक चेतावनी है। खासतौर पर तब, जब पाकिस्तान और अमेरिका के बीच खनिज और रक्षा समझौतों पर दस्तखत हो रहे हैं, और चीन पाकिस्तान को 5वीं पीढ़ी के फाइटर जेट्स सौंपने की तैयारी में है।

पहलगाम हमला—एक इशारा या परीक्षण?

इधर भारत में जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुआ आतंकी हमला इस बात का संकेत हो सकता है कि पाकिस्तान ने अपने आतंक के ढांचे को फिर सक्रिय कर दिया है। और इसके पीछे जनरल मुनीर का वही ‘हिंदू विरोधी’ एजेंडा है जो अमेरिकी आशीर्वाद से अब और उग्र हो चुका है। मुनीर की ये ‘प्रगति’ उसी ऑपरेशन सिंदूर की प्रतिक्रिया है, जिसमें भारत ने सीमा पार कर पाकिस्तान के आतंकी ठिकानों पर हमला किया था। अब लगता है मुनीर बदला लेने की स्थिति में खुद को महसूस कर रहे हैं—क्योंकि इस बार उनके पीछे है अमेरिका का साथ।

भारत का कमजोर हाथ—और वह समय जब ‘खामोशी’ घातक हो सकती है

भारत फिलहाल एक रणनीतिक चक्रव्यूह में फंसा है। अमेरिका से रिश्ते तनावपूर्ण हैं, ट्रेड डील अधर में है और ट्रैवल एडवाइजरी ने पहले ही संकेत दे दिया है कि अमेरिका भारत को अब ‘विश्वसनीय सहयोगी’ के रूप में नहीं देखता। भारत को अब दो मोर्चों पर लड़ना पड़ रहा है—एक चीन, दूसरा पाकिस्तान। और यह स्थिति वैसी ही है जैसी 9/11 के बाद बनी थी, जब पाकिस्तान अमेरिका का पसंदीदा सहयोगी था। फर्क बस इतना है कि इस बार पाकिस्तान के पास क्रिप्टो, फाइटर जेट्स और ट्रंप का आशीर्वाद है।

क्या अब ट्रंप का नोबेल ‘शांति’ का है… या ‘परमाणु युद्ध’ का?

ट्रंप को नोबेल के लिए नामित किया गया है, लेकिन इतिहास देख रहा है कि उन्होंने ईरान पर बम बरसाए, पाकिस्तान में लोकतंत्र को खत्म किया, भारत को अपमानित किया और पश्चिम एशिया को नए युद्ध के मुहाने पर ला खड़ा किया। तो क्या ये शांति है? या फिर यह उस अघोषित तीसरे विश्व युद्ध की तैयारी है, जो कूटनीतिक तस्वीरों और नोबेल पुरस्कारों की आड़ में धीरे-धीरे पनप रही है? भारत के लिए समय आ गया है कि वह अब ‘मूकदर्शक’ नहीं, बल्कि ‘रणनीतिक प्रतिद्वंदी’ की तरह खुद को पेश करे। क्योंकि आने वाला समय तय करेगा—क्या दिल्ली वाकई ‘दक्षिण एशिया की धुरी’ बनेगी, या ट्रंप-मुनीर-रावलपिंडी की तिकड़ी उसे पीछे छोड़ देगी।

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Harsh Srivastava

News Coordinator and News Writer

Harsh Shrivastava is an enthusiastic journalist who has been actively writing content for the past one year. He has a special interest in crime, politics and entertainment news. With his deep understanding and research approach, he strives to uncover ground realities and deliver accurate information to readers. His articles reflect objectivity and factual analysis, which make him a credible journalist.

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