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गद्दार Pakistan! ईरान की तबाही का ब्लूप्रिंट तैयार, ट्रंप-असीम मुनीर मुलाकात के पीछे छुपी गद्दारी, पाकिस्तान बनने जा रहा है अमेरिका का 'खूनी हथियार'
Trump and Asim Munir Secret Meeting: ईरान के लिए खतरे की घंटी बज चुकी है। अगर अमेरिका इस युद्ध में कूदता है तो पाकिस्तान की सरजमीं उसका सबसे बड़ा 'लॉन्चपैड' बनने जा रही है। यह वही पाकिस्तान है जो अतीत में भी अमेरिका के लिए ‘गुप्त दरवाजा’ बनता रहा है।
Trump and Asim Munir Secret Meeting: दुनिया की फिजा में बारूद की गंध फैल चुकी है। पश्चिम एशिया का आसमान गहरे लाल रंग में रंगा हुआ है और धरती पर कदम रखते ही ऐसा लगता है मानो ज़मीन खुद थरथरा रही हो। इस समय अगर किसी को सबसे ज्यादा बेचैनी सता रही है तो वो है ईरान, क्योंकि उसके चारों ओर शिकंजा कसने की तैयारी शुरू हो चुकी है। और ये शिकंजा कोई और नहीं बल्कि उसका ही एक पड़ोसी कसने वाला है — पाकिस्तान। लेकिन इस कहानी में असली ट्विस्ट आया है अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और पाकिस्तानी सेना प्रमुख फील्ड मार्शल असीम मुनीर की उस गुप्त मुलाकात से, जिसने साजिशों का नया अध्याय खोल दिया है।
यह सिर्फ एक औपचारिक मुलाकात नहीं थी। यह एक रणनीतिक मीटिंग थी — एक ऐसी मीटिंग जिसमें पाकिस्तान की तरफ से गुप्त समर्थन की पेशकश की गई और अमेरिका ने अपने इरादे साफ कर दिए। पूरी दुनिया जहां ईरान और इजराइल के युद्ध को लेकर आशंकित है, वहीं अमेरिका ने इस युद्ध में अपने लिए नई जमीन तलाश ली है। और यह जमीन कोई और नहीं, बल्कि पाकिस्तान बनने जा रहा है। अगर आप सोचते हैं कि पाकिस्तान ईरान का पड़ोसी है, मुस्लिम देश है, इसलिए ईरान को मदद मिलेगी — तो आप गलत हैं। पाकिस्तान हमेशा से दोहरी चाल चलने में माहिर रहा है और इस बार उसकी गद्दारी ईरान के लिए विनाश का रास्ता खोल सकती है।
ईरान के लिए खतरे की घंटी बज चुकी है। अगर अमेरिका इस युद्ध में कूदता है तो पाकिस्तान की सरजमीं उसका सबसे बड़ा 'लॉन्चपैड' बनने जा रही है। यह वही पाकिस्तान है जो अतीत में भी अमेरिका के लिए ‘गुप्त दरवाजा’ बनता रहा है। अफगानिस्तान पर हमला हो या ओसामा बिन लादेन का एनकाउंटर — हर बार पाकिस्तान ने अमेरिका के लिए अपने दरवाजे खोले हैं और इस बार निशाना है ईरान।
अमेरिका-पाकिस्तान गुप्त गठजोड़ का असली खेल
पाकिस्तान और ईरान की करीब 909 किलोमीटर लंबी सीमा है। यह सीमा बेहद संवेदनशील और रणनीतिक रूप से अहम है। खासकर बलूचिस्तान और सिस्तान-बलूचिस्तान इलाके में जहां पहले से ही अलगाववादी गतिविधियां चल रही हैं। अमेरिका की रणनीति हमेशा पड़ोसी देशों के जरिए दुश्मन पर हमला करने की रही है। अफगानिस्तान और इराक में भी उसने यही किया और अब पाकिस्तान अगला ठिकाना बनने जा रहा है।
हाल के महीनों में ईरान ने मुस्लिम देशों से अपील की थी कि वे इजराइल के खिलाफ खुलकर साथ आएं, लेकिन पाकिस्तान ने सिर्फ दिखावटी समर्थन दिया। ट्रंप और मुनीर की मुलाकात के बाद यह अब तय हो चुका है कि पाकिस्तान पूरी तरह अमेरिकी खेमे में चला गया है। आने वाले दिनों में पाकिस्तान की जमीन से ड्रोन ऑपरेशंस, लॉजिस्टिक्स सपोर्ट और इंटेलिजेंस मिशन शुरू होना तय माना जा रहा है। कराची, क्वेटा और तुर्बत जैसे इलाके अमेरिकी ऑपरेशंस के नए अड्डे बन सकते हैं।
इतिहास फिर खुद को दोहराने जा रहा है
यह पहली बार नहीं है जब पाकिस्तान गुप्त तरीके से अमेरिका की मदद कर रहा हो। 2001 में अमेरिका ने अफगानिस्तान पर हमला करने के लिए पाकिस्तान की जमीन का खुलकर इस्तेमाल किया था। अमेरिकी एयरबेस, सप्लाई चेन, ड्रोन हमले सब पाकिस्तान से संचालित होते थे। ओसामा बिन लादेन भी पाकिस्तान के एबटाबाद में ही मारा गया था। इस बार भी वही स्क्रिप्ट फिर से लिखी जा रही है, फर्क सिर्फ इतना है कि अब निशाना अफगानिस्तान नहीं, बल्कि ईरान होगा।
ट्रंप पहले ही अपनी नीतियों में पाकिस्तान को ‘टैक्टिकल पार्टनर’ के रूप में देख चुके हैं और अब एक बार फिर पाकिस्तान को वही भूमिका सौंपी जा रही है। अमेरिकी नीति हमेशा ‘उपयोग करो और फेंक दो’ वाली रही है, और पाकिस्तान हर बार इस भूमिका में फंसता रहा है। लेकिन इस बार नुकसान सिर्फ पाकिस्तान का नहीं होगा, बल्कि पूरा पश्चिम एशिया इसकी आग में झुलस जाएगा।
ईरान के लिए डबल फ्रंट वॉर का खतरा
अगर पाकिस्तान की जमीन से अमेरिका हमला करता है तो ईरान के लिए यह दोतरफा जंग बन जाएगी। पश्चिमी सीमा पर इजराइल और अमेरिका, और पूर्वी सीमा पर पाकिस्तान। इस स्थिति में ईरान के संसाधन बंट जाएंगे और उसकी सैन्य ताकत कमजोर पड़ सकती है। ये वही रणनीति है जो अमेरिका ने पहले इराक और अफगानिस्तान के खिलाफ अपनाई थी — ‘दो मोर्चों पर हमला करो, दुश्मन को थका दो।’ इससे न सिर्फ ईरान का नुकसान होगा बल्कि मुस्लिम एकता की पूरी अवधारणा भी ध्वस्त हो जाएगी। मुस्लिम दुनिया में पहले ही फूट है और अगर पाकिस्तान अमेरिका का साथ देता है तो ये दरार और गहरी हो जाएगी। खाड़ी देशों के समीकरण बदल जाएंगे और तुर्की, कतर जैसे देश भी कन्फ्यूजन में पड़ जाएंगे कि आखिर किस खेमे में खड़ा होना है।
मुस्लिम एकता का सबसे बड़ा धोखा
ईरान हमेशा मुस्लिम देशों से एकजुटता की अपील करता रहा है। लेकिन पाकिस्तान की इस गद्दारी से साफ हो गया है कि मुस्लिम एकता अब सिर्फ किताबों और भाषणों में ही बची है। असलियत ये है कि पाकिस्तान ने अपनी आर्थिक और सैन्य मजबूरी के चलते एक बार फिर अमेरिका की गोद में बैठना तय कर लिया है। इस पूरे खेल में सबसे बड़ा नुकसान ईरान को होगा। क्योंकि अमेरिका इस बार अपनी जंग पाकिस्तान के कंधे पर बंदूक रखकर लड़ेगा। यही पाकिस्तान की असली गद्दारी है — मुसलमानों के नाम पर वोट और सत्ता, लेकिन असल में अमेरिका का हथियार। क्या ईरान तैयार है इस गद्दारी के लिए? क्या दुनिया चुपचाप इस तमाशे को देखती रहेगी? जवाब वक्त देगा, लेकिन इतना तय है — पाकिस्तान अब सिर्फ पड़ोसी मुल्क नहीं, बल्कि ईरान की पीठ में छुरा घोंपने वाला सबसे बड़ा खतरा बन चुका है। युद्ध की पटकथा लिखी जा चुकी है… सिर्फ परदे से पर्दा हटना बाकी है।
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