India- China Business: जब तुर्की को मिला करारा जवाब, तो चीन से बढ़ते व्यापार पर क्यों है चुप्पी? क्या है मोदी सरकार प्लान?

India- China Business: भारत की रणनीति पर पहली नजर में यह कह पाना मुश्किल है कि वह आक्रामक है या व्यावसायिक। एक तरफ मोदी सरकार की विदेश नीति आक्रामक दिखाई देती है, जो दुश्मन के साथ खड़े होने वालों को सबक सिखाती है, तो दूसरी तरफ चीन जैसे दुश्मन देश से व्यापार लगातार बढ़ रहा है।

Harsh Srivastava
Published on: 16 May 2025 2:37 PM IST
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India China Business: वो सुबह सबने देखी थी जब भारत के फाइटर जेट्स ने नियंत्रण रेखा पार कर आतंक के अड्डों पर 'ऑपरेशन सिंदूर' चलाया। देश ने देखा था, कैसे एक संप्रभु राष्ट्र अपने दुश्मनों को सिर्फ शब्दों में नहीं, एक्शन में जवाब देता है। सोशल मीडिया से लेकर संसद तक तालियों की गूंज थी। तुर्की के पाकिस्तान प्रेम पर भी भारत ने कड़ा कदम उठाया और सेलेबी कंपनी की सुरक्षा मंज़ूरी रद्द कर दी गई। जनता ने राहत की सांस ली कि अब भारत सिर्फ सहन नहीं करता, प्रत्युत्तर भी देता है। लेकिन उसी समय, एक और आंकड़ा चुपचाप भारत की विदेश नीति की एक गहरी खामोशी को उजागर कर रहा था। अप्रैल 2025 में भारत ने चीन से 9.90 बिलियन डॉलर का सामान आयात किया 27.08 फीसदी की बढ़ोतरी के साथ। यह उस देश से, जो पाकिस्तान का सबसे बड़ा रणनीतिक साझेदार है, जो LAC पर आए दिन भारत को आंखें दिखाता है, और जिसकी कंपनियों पर सुरक्षा एजेंसियों की चौकसी बनी रहती है। सवाल अब बड़ा है: जब तुर्की जैसे खिलाड़ी को सज़ा दी जा सकती है, तो चीन से व्यापार में नरमी क्यों?

भारत की दोहरी रणनीति: सीमा पर सख्ती, लेकिन बाज़ार में नरमी?

भारत की रणनीति पर पहली नजर में यह कह पाना मुश्किल है कि वह आक्रामक है या व्यावसायिक। एक तरफ मोदी सरकार की विदेश नीति आक्रामक दिखाई देती है, जो दुश्मन के साथ खड़े होने वालों को सबक सिखाती है, तो दूसरी तरफ चीन जैसे दुश्मन देश से व्यापार लगातार बढ़ रहा है। साल 2024-25 में चीन से भारत का आयात 113.45 बिलियन डॉलर पर पहुंच गया, जो पिछले वर्ष की तुलना में 11.52% ज्यादा है। इसके मुकाबले भारत से चीन को एक्सपोर्ट में 14.49% की गिरावट देखी गई। यानी चीन से हमारा ट्रेड डेफिसिट अब भी खतरनाक रूप से ऊंचा बना हुआ है।

क्या तुर्की सिर्फ 'कमज़ोर दुश्मन' था?

सेलेबी एयरपोर्ट सर्विसेज इंडिया पर सरकार का ऐक्शन तेज़ और प्रतीकात्मक था। वह एक मजबूत संदेश था कि भारत अब हर मोर्चे पर तैयार है। लेकिन यही सख्ती चीन के साथ क्यों नहीं दिखाई जाती, जो न सिर्फ पाकिस्तान को हथियार देता है बल्कि LAC पर भारतीय सैनिकों की शहादत का जिम्मेदार भी रहा है? क्या भारत अपनी रणनीति में "कमज़ोर पर वार, ताक़तवर से व्यापार" की नीति अपना रहा है?

कहां हैं 'बॉयकॉट चाइनीज़ प्रोडक्ट्स' के नारे?

कुछ साल पहले तक देश के अलग-अलग हिस्सों में चीनी सामान के बहिष्कार की मुहिमें ज़ोरों पर थीं। त्योहानों पर सोशल मीडिया पर चाइनीज़ लाइट्स और गिफ्ट्स का बहिष्कार करने के लिए अपीलें होती थीं। लेकिन अब जब चीन से आयात रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गया है, तो वो नारों की गूंज भी कहीं गुम हो गई है।क्या जनता अब इस तथ्य को स्वीकार कर चुकी है कि चीन से जुड़े बिना भारत की मैन्युफैक्चरिंग और मार्केटिंग व्यवस्था अधूरी है? या फिर सरकार ने ही इस मुद्दे को 'स्लो पॉइज़न' की तरह अनदेखा करना शुरू कर दिया है?

व्यापारिक मजबूरी या रणनीतिक लाचारी?

इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि चीन आज भारत का सबसे बड़ा ट्रेडिंग पार्टनर है। इलेक्ट्रॉनिक्स, सोलर पैनल, फार्मा APIs, मोबाइल फोन पार्ट्स, कैमरा और नेटवर्किंग उपकरण ये सब चीन से भारी मात्रा में आते हैं। भारत ने 'मेक इन इंडिया', 'आत्मनिर्भर भारत' जैसी योजनाएं तो चलाईं, लेकिन क्या ये योजनाएं ज़मीन पर उतनी प्रभावशाली साबित हो पाईं? क्या सरकार चीन से आयात को पूरी तरह खत्म करने का जोखिम उठा सकती है? फिलहाल तो तस्वीर कहती है नहीं।

भारत की कूटनीति में व्यापार का वर्चस्व?

भारत की विदेश नीति में अब कूटनीति सिर्फ दूतावासों तक सीमित नहीं रही, वह अब व्यापार, निवेश और बाज़ार तक आ पहुंची है। लेकिन यही कूटनीति तब सवालों के घेरे में आ जाती है जब वह भावनाओं और राष्ट्रीय सुरक्षा के साथ तालमेल नहीं बिठा पाती। तुर्की की एक कंपनी से खतरा था, इसलिए कार्रवाई हुई—लेकिन चीन की कंपनियों से जुड़े खतरों की क्या स्थिति है? चीन की कंपनियां भारत में स्मार्टफोन, कैमरा, CCTV, ऐप्स, और डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर का बड़ा हिस्सा संभालती हैं। क्या ये देश की साइबर सुरक्षा को चुनौती नहीं दे रहीं?

सिर्फ सरकार नहीं, उपभोक्ता भी जिम्मेदार

यह बात भी माननी होगी कि चीन के सामान की भारत में भारी मांग है। कम कीमत, ज्यादा विकल्प और आसानी से उपलब्धता—इन कारणों से उपभोक्ता चाइनीज़ प्रोडक्ट्स को पसंद करते हैं। जब तक उपभोक्ता खुद 'वोकल फॉर लोकल' को गंभीरता से नहीं लेंगे, तब तक व्यापार में परिवर्तन लाना मुश्किल है।

आगे का रास्ता: रणनीति का पुनःमूल्यांकन जरूरी

भारत की सरकार को यह तय करना होगा कि क्या वह एक साथ दोहरी नीति चलाना चाहती है एक तरफ कूटनीतिक आक्रामकता, दूसरी तरफ व्यापारिक लचीलापन। अगर हां, तो इसे स्पष्ट रूप से परिभाषित करना होगा ताकि देश के भीतर भ्रम की स्थिति न बने। 'ऑपरेशन सिंदूर' ने जो संदेश सीमा पार भेजा, क्या वही संदेश चीन के लिए बाज़ार में नहीं दिया जाना चाहिए?

सर्जिकल स्ट्राइक से लेकर ट्रेड पॉलिसी तक

आज भारत वैश्विक मंचों पर ताक़तवर राष्ट्र की तरह खड़ा है। लेकिन ताक़त सिर्फ बॉर्डर पर दिखाना काफी नहीं है, उसे आर्थिक नीति, व्यापार और रणनीतिक संबंधों में भी दिखाना होता है। जब भारत तुर्की की कंपनी पर शिकंजा कस सकता है, तो चीन जैसे राष्ट्र के सामने आत्मनिर्भरता की नीति को और ठोस रूप देना चाहिए। वरना सेना सीमा पर लड़ेगी और बाजार में चीन जीत जाएगा और यही हमारी रणनीति की सबसे बड़ी विफलता होगी।

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Harsh Srivastava

News Cordinator and News Writer

Harsh Shrivastava is an enthusiastic journalist who has been actively writing content for the past one year. He has a special interest in crime, politics and entertainment news. With his deep understanding and research approach, he strives to uncover ground realities and deliver accurate information to readers. His articles reflect objectivity and factual analysis, which make him a credible journalist.

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