Narali Purnima kab hai नारली पूर्णिमा कब और क्यों मनाया जाता है, जानिए इसका रक्षा बंधने से क्या संबंध है?

Narali Purnima kab hai : कब और क्यों मनाया जाता है नारली पूर्णिमा, इस दिन कौन कहां किसकी करते है पूजा, जानते है रक्षा बंधन के साथ नारली पर्व मनाने के पीछे की वजह

Suman  Mishra
Published on: 29 July 2025 1:22 PM IST (Updated on: 8 Aug 2025 11:33 AM IST)
Narali Purnima kab hai नारली  पूर्णिमा कब और क्यों मनाया जाता है, जानिए इसका रक्षा बंधने से क्या संबंध है?
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Narli Purnima kab hai नारली पूर्णिमा 2025 कब है?: सावन की पूर्णिमा को नारली पूर्णिमा भी कहते है। यह श्रावण मास की पूर्णिमा को आती है, जो रक्षा बंधन के साथ ही पड़ती है।नारली पूर्णिमा को विशेषकर महाराष्ट्र, कोंकण, गोवा और दक्षिण भारत के तटीय क्षेत्रों में रहने वाले मछुआरा समुदाय श्रद्धा से मनाता है इसका धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व है।

नारली पूर्णिमा का शाब्दिक अर्थ है - नारियल चढ़ाने वाली पूर्णिमा, जो सावन मास की पूर्णिमा के दिन है, मछुआरे समुद्र को देवता मानते हैं, इसलिए इस दिन उनकी सच्चे मन से पूजा-अर्चना करते हैं। जानते हैं साल 2025 में नारली पूर्णिमा शनिवार, 9 अगस्त, 2025 को मनाई जाएगी।

नारली पूर्णिमा क्या है

नारली शब्द नारियल बना है, और पूर्णिमा- पूर्ण चंद्रमा। नारली पूर्णिमा का शाब्दिक अर्थ है नारियल की पूर्णिमा। यह दिन मछली पकड़ने के नए मौसम की शुरुआत का प्रतीक है। इस दिन मछुआरे और समुद्री यात्रा करने वाले लोग समुद्र देव, वरुण देव की पूजा करते हैं, उन्हें नारियल अर्पित करते हैं।

मछुआरों के लिए समुद्र जीवनदायिनी है। उनका जीवन-यापन सब समुद्र पर निर्भर करता है। मानसून के दौरान, समुद्र में उफान आता है त मछुआरे समुद्र तट से दूर रहते है है। नारली पूर्णिमा का दिन मछुआरे फिर से अपनी नौकाओं को समुद्र में उतरते है। इस दिन नारियल को समुद्र में अर्पित कर समुद्र के साथ अपने बंधन को मजबूत करते है।

नारली पूर्णिमा रक्षा बंधन पर ही क्यों मनाते हैं

सावन की पूर्णिमा के दिन ही राखी का त्योहार होता है। इसी दिन मानसून भी थमना शुरू करता है। मछुआरों समुद्री तट के लोगों का जीवन इस दिन से धीरे धीरे सामान्य होने लगता है। तो समुद्री इलाकों के लिए यह दिन खुशी का होता है। इसलिए नारियल अर्पित कर समुद्र से अपने जीवन की रक्षा का वचन मांगते है और नारली पूर्णिमा का दिन सावन की पूर्णिमा का होता है और इसी दिन राखी होने से दोनों साथ में मनाया जाता है।

नारली पूर्णिमा का महत्व और परंपराएं

यह पर्व केवल नारियल चढ़ाने तक ही सीमित नहीं है,बल्कि इस दिन, मछुआरा समुदाय के लोग अपनी नावों को सजाते हैं। महिलाएं और पुरुष नए वस्त्र धारण करते हैं। वे समुद्र तट पर एकत्र होते हैं और विधि-विधान से समुद्र देव का पूजन करते हैं। मंत्रोच्चार और आरती की जाती है, जिसमें समुद्र की शक्ति और उसके महत्व का गुणगान करके उन्हे प्रसन्न और सुरक्षा आहवान करते है।इस दिन पारंपरिक भोजन बनाए जाते हैं, नारियल के चावल (नारली भात), नारियल की बर्फी, और अन्य व्यंजन बनाए जाते हैं। परिवार और समुदाय के लोग एक साथ मिलकर भोजन करते हैं और उत्सव मनाते हैं।

इसके अलवा घर पर कैसे करें नारली की पूजा

यदि घर पर पूजा हो रही है, तो नारियल को कलश पर स्थापित करें और जल में बाद में विसर्जित करें।फिर समुद्र देवता की आरती करिए- "जय सागर देव महाबलवंत, आप सदा करो हमारी रक्षा संत।" पूजा के बाद मिठाई व प्रसाद बांटिए, इसके बाद अपने नौकाओं व जालों पर हल्दी-कुमकुम लगाएं। इस दिन से मछुआरे समुद्र में मछली पकड़ने का कार्य फिर से शुरू कर सकते है।

नोट : ये जानकारियां धार्मिक आस्था और मान्यताओं पर आधारित हैं। Newstrack.com इसकी पुष्टि नहीं करता है।इसे सामान्य रुचि को ध्यान में रखकर लिखा गया है

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Suman Mishra

एस्ट्रोलॉजी एडिटर

मैं वर्तमान में न्यूजट्रैक और अपना भारत के लिए कंटेट राइटिंग कर रही हूं। इससे पहले मैने रांची, झारखंड में प्रिंट और इलेक्ट्रानिक मीडिया में रिपोर्टिंग और फीचर राइटिंग किया है और ईटीवी में 5 वर्षों का डेस्क पर काम करने का अनुभव है। मैं पत्रकारिता और ज्योतिष विज्ञान में खास रुचि रखती हूं। मेरे नाना जी पंडित ललन त्रिपाठी एक प्रकांड विद्वान थे उनके सानिध्य में मुझे कर्मकांड और ज्योतिष हस्त रेखा का ज्ञान मिला और मैने इस क्षेत्र में विशेषज्ञता के लिए पढाई कर डिग्री भी ली है Author Experience- 2007 से अब तक( 17 साल) Author Education – 1. बनस्थली विद्यापीठ और विद्यापीठ से संस्कृत ज्योतिष विज्ञान में डिग्री 2. रांची विश्वविद्यालय से पत्राकरिता में जर्नलिज्म एंड मास कक्मयूनिकेश 3. विनोबा भावे विश्व विदयालय से राजनीतिक विज्ञान में स्नातक की डिग्री

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