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श्री सूक्त का पाठ घर में खुशहाली का मंत्र, धन-वैभव और सौभाग्य की चाबी, जानें कैसे
Shree Suktam Path Benefits in Hindi : माँ लक्ष्मी की कृपा पाने के लिए श्री सूक्त का पाठ करना चाहिए। इससे धन-धान्य, सुख-समृद्धि, सौभाग्य और ऐश्वर्य प्राप्त होता है। जानिए कब और किस विधि से होगा लाभ।
Shree Suktam Path Vidh : जिस व्यक्ति पर मां लक्ष्मी कृपा बरसती है उस व्यक्ति को जीवन में किसी चीज की कमी नहीं रहती है। मां लक्ष्मी जातक की सारी मनोकामाएं पूर्ण करती है। वो धन, यश और ऐश्वर्य की देवी हैं। उनकी उपासना श्रेष्ठ फल देने वाला है। मां लक्ष्मी की पूजा विधि विधान के साथ मंत्र जाप से किया जाये तो वो उस जगह हमेशा विद्यमान रहती है। यदि आप भी मां लक्ष्मी की कृपा पाना चाहते हैं तो हर शुक्रवार को श्रीसूक्त का पाठ करें। इससे व्यक्ति पर मां लक्ष्मी की जन्मजन्मांतर तक कृपा बनी रहती है और धन का अभाव नहीं होता है। धन, यश, सुख-समृद्धि, ऐश्वर्य और कार्यो में श्रेष्ठ सफलता मिलती है।
धर्म शास्त्रो के अनुसार रोज श्री सूक्त का पाठ करने वाले जातक को इस संसार में समस्त सुखों की प्राप्ति होती है उसे धन यश की कोई भी कमी नहीं होती है । श्री सूक्त का पाठ हिंदी संस्कृत किसी भी भाषा में शुद्ध रुप से करना चाहिए।खासकर नवरात्री, दीपावली और हर शुक्रवार को इसका पाठ कर तो महत्व बढ़ने के साथ ज्यादा प्रभावी होता है।
श्रीसूक्त का पाठ
ॐ हिरण्यवर्णां हरिणीं, सुवर्णरजतस्त्रजाम् ।
चन्द्रां हिरण्मयीं लक्ष्मीं, जातवेदो म आ वह ।।
हे अग्निदेव! आप स्वर्ण के समान आभा वाली, कमल में विचरण करने वाली, स्वर्ण और रजत के आभूषणों से विभूषित, चन्द्रमा के समान शीतल, सोने की कांति से युक्त लक्ष्मी देवी को आवाहन और अभिमुख करें।
तां म आ वह जातवेदो, लक्ष्मीमनपगामिनीम् ।
यस्यां हिरण्यं विन्देयं, गामश्वं पुरूषानहम् ।।
हे जातवेदा अग्निदेव ! आप उन जगत प्रसिद्ध लक्ष्मीदेवी को मेरे लिये आवाहन करें जिनके आगमन से मैं सुवर्ण, गौ, अश्व और पुत्रादि को प्राप्त करूँगा।
अश्वपूर्वां रथमध्यां, हस्तिनादप्रमोदिनीम् ।
श्रियं देवीमुप ह्वये, श्रीर्मा देवी जुषताम् ।।
जिस देवी के आगे घोड़े तथा उनके मध्य में रथ जुते रहते हैं तथा ऐसे रथ में बैठी हुई जो हथियो की निनाद को सुनकर प्रमुदित होती हैं, उन्हीं श्रीदेवी का मैं आवाहन करता हूँ; लक्ष्मीदेवी मुझे प्राप्त हों।
कां सोस्मितां हिरण्यप्राकारामार्द्रां ज्वलन्तीं तृप्तां तर्पयन्तीम् ।
पद्मेस्थितां पद्मवर्णां तामिहोप ह्वये श्रियम् ।।
जिसका स्वरूप ब्रह्मरूपा होने के कारण अवर्णनीय है तथा जो मंद मंद मुसकराने वाली है, जो चारों ओर सोने के आवरण से ओत प्रोत है एवं दया से आद्र ह्रदय वाली तेजोमयी हैं, स्वयं पूर्णकाम होने के कारण भक्तो के मनोरथों को पूर्ण करने वाली हैं, कमल के ऊपर विराजमान तथा पद्मवर्णा हैं, मैं उन लक्ष्मीदेवी का आवाहन करता हूँ।
चन्द्रां प्रभासां यशसा ज्वलन्तीं श्रियं लोके देवजुष्टामुदाराम् ।
तां पद्मिनीमीं शरणं प्र पद्ये अलक्ष्मीर्मे नश्यतां त्वां वृणे ।।
मैं चंद्रमा के समान प्रकाश वाली प्रकृत कान्तिवाली, अपनी कीर्ति से देदीप्यमान, स्वर्ग लोक में इन्द्रादि देवों से पूजित अत्यंत दानशीला, कमल के मध्य रहने वाली एवं अश्रयदाती की शरण ग्रहण करता हूँ। उन लक्ष्मी को मैं प्राप्त करता हूँ और आपको शरण्य के रूप में वरण करता हूँ।
आदित्यवर्णे तपसोऽधि जातो वनस्पतिस्तव वृक्षोऽक्ष बिल्वः ।
तस्य फलानि तपसा नुदन्तु या अन्तरा याश्च बाह्या अलक्ष्मीः ।।
हे सूर्य के समान कांति वाली देवी आपके तेजोमय प्रकाश से वृक्षों में श्रेष्ठ मंगलमय बिल्ववृक्ष उत्पन्न हुआ। उस बिल्व वृक्ष का फल मेरे बाहरी और भीतरी दरिद्रता को दूर करें।
उपैतु मां दैवसखः, कीर्तिश्च मणिना सह ।
प्रादुर्भूतोऽस्मि राष्ट्रेऽस्मिन्, कीर्तिमृद्धिं ददातु मे ।।
हे लक्ष्मी ! मुझे उत्तम यश, रत्न, धन आदि के साथ देवताओं के सखा कुबेर और उनके मित्र मणिभद्र प्राप्त हों अर्थात मुझे धन और यश की प्राप्ति हो। मैं इस राष्ट्र (संसार) में जन्म लिया है, अतः हे लक्ष्मी आप मुझे इसके गौरव के अनुरूप यश, समृद्धि और एश्वर्य प्रदान करें।
क्षुत्पिपासामलां ज्येष्ठामलक्ष्मीं नाशयाम्यहम् ।
अभूतिमसमृद्धिं च, सर्वां निर्णुद मे गृहात् ।।
मैं भूख प्यास आदि शारीरिक मलिनता को धारण करने वाली एवं लक्ष्मी की बड़ी बहन अलक्ष्मी (दरिद्रता) का सदा के लिए विनाश करता हूं। हे लक्ष्मी! तुम मेरे घर से सभी प्रकार की असमृद्धि, दु:ख, अनैश्वर्य और अभाव को दूर भगाओ।
गन्धद्वारां दुराधर्षां, नित्यपुष्टां करीषिणीम् ।
ईश्वरीं सर्वभूतानां, तामिहोप ह्वये श्रियम् ।।
मैं सुगंधित द्रव्यों के अर्पण से प्रसन्न करने योग्य, किसी भी शक्तिशाली से न जीतने योग्य, सदा धन धान्यादि देकर अपने शरणागत भक्तों की इच्छा पूर्ण करनेवाली और संसार के समस्त प्राणियों की शासिका-स्वामिनी लक्ष्मी देवी को अपने यहां आवाहन करता हूं।
मनसः काममाकूतिं, वाचः सत्यमशीमहि ।
पशूनां रूपमन्नस्य, मयि श्रीः श्रयतां यशः ।।
हे लक्ष्मी ! मुझे मन की कामनाओं एवं संकल्प सिद्धि, वाणी की सत्यता, गौ आदि पशुओ एवं अन्नों के रूप सभी पदार्थ प्राप्त हो। सम्पति और यश आश्रय ले अर्थात श्रीदेवी हमारे यहाँ आगमन करें।
कर्दमेन प्रजा भूता मयि सम्भव कर्दम ।
श्रियं वासय मे कुले मातरं पद्ममालिनीम् ।।
लक्ष्मी के पुत्र कर्दम की हम संतान हैं। हे कर्दम ! मेरे घर में लक्ष्मी निवास करें, केवल इतनी ही प्रार्थना नहीं है अपितु कमल की माला धारण करने वाली संपूर्ण संसार की माता लक्ष्मी को मेरे कुल में प्रतिष्ठित करें।
आपः सृजन्तु स्निग्धानि चिक्लीत वस मे गृहे ।
नि च देवीं मातरं श्रियं वासय मे कुले ।।
जिस प्रकार वरुणदेव स्निग्ध द्रव्यों को उत्पन्न करते है ( जिस प्रकार जल से स्निग्धता आती है ), उसी प्रकार, हे लक्ष्मीपुत्र चिक्लीत ! आप मेरे घर में निवास करें और दिव्यगुणयुक्ता श्रेयमान माता लक्ष्मी को मेरे कुल में निवास करायें।
आर्द्रां पुष्करिणीं पुष्टिं पिंगलां पद्ममालिनीम् ।
चन्द्रां हिरण्मयीं लक्ष्मीं, जातवेदो म आ वह ।।
हे अग्निदेव, आप मेरे लिए हाथियों के शुण्डाग्र से अभिषिक्त अतएव आर्द्र शरीर वाली, कमल-पुष्करिणी, पुष्टिकारिणी, पीतवर्णा, कमल की माला धारण करने वाली, चन्द्रमा के समान स्वर्णिम आभा वाली लक्ष्मी देवी का आवाहन करें ।
आर्द्रां य करिणीं यष्टिं सुवर्णां हेममालिनीम् ।
सूर्यां हिरण्मयीं लक्ष्मीं जातवेदो म आ वह ।।
हे अग्निदेव! जो दुष्टों का निग्रह करने वाली होने पर भी दयाभाव से आर्द्रचित्त हैं, जो मंगलदायिनी, अवलम्बन प्रदान करने वाली यष्टिरूपा हैं, सुन्दर वर्णवाली, सुवर्णमालाधारिणी, सूर्यस्वरूपा तथा हिरण्यमयी हैं, उन प्रकाशस्वरूपा लक्ष्मी का मेरे लिए आवाहन करें।
तां म आ वह जातवेदो लक्ष्मीमनपगामिनीम् ।
यस्यां हिरण्यं प्रभूतं गावो दास्योऽश्वान् विन्देयं पुरुषानहम् ।।
हे अग्निदेव! कभी नष्ट न होने वाली उन स्थिर लक्ष्मी का मेरे लिए आवाहन करें जो मुझे छोड़कर अन्यत्र नहीं जाने वाली हों, जिनके आगमन से बहुत-सा धन, उत्तम ऐश्वर्य, गौएं, दासियां, अश्व और पुत्रादि को हम प्राप्त करें।
य: शुचि: प्रयतो भूत्वा जुहुयादाज्यमन्वहम् ।
सूक्तं पंचदशर्चं च श्रीकाम: सततं जपेत् ।।
जो नित्य पवित्र और संयमशील होकर इस पंचदश (15) ऋचा वाले सूक्त से भक्तिपूर्वक घी की आहुति देता है और इसका पाठ ( जप ) करता है, उसकी श्री लक्ष्मी की कामना पूर्ण होती है।
श्री सूक्त का पाठ विधि
श्री सूक्त माँ लक्ष्मी की स्तुति है। इसका पाठ करने से जीवन में धन, सुख, सौभाग्य, समृद्धि और शांति का आगमन होता है। इसे नवरात्रि के दिनों में प्रतिदिन और हर शुक्रवार को करना अत्यंत शुभ माना गया है। प्रातः स्नान करके स्वच्छ वस्त्र पहनें। पूजा स्थान पर लाल कपड़ा बिछाकर उस पर माँ लक्ष्मी की तस्वीर या प्रतिमा रखें। घी का दीपक जलाएँ, धूप करें, ईशान कोण में जल का कलश रखें। माँ को कुमकुम से तिलक कर पुष्प अर्पित करें।
सबसे पहले श्री गणेश जी का स्मरण करें। फिर दाएँ हाथ में जल लेकर संकल्प करें – “मैं (अपना नाम और गोत्र) माता लक्ष्मी की कृपा और धन-समृद्धि की प्राप्ति के लिए श्री सूक्त पाठ कर रहा हूँ, कृपा कर सफल बनाइए।” जल भूमि पर छोड़ते हुए तीन बार “ॐ श्री विष्णु” बोलें।
अब श्री सूक्त का पाठ शुद्ध मन और श्रद्धा से करें। हो सके तो गौ-घृत से हवन करें। पाठ के बाद माता लक्ष्मी की प्रार्थना करें और आरती करे। जो मनुष्य सुख-समृद्धि लक्ष्मी कि कामना करता हो ,वह पवित्रता के साथ हर दिन अग्नि में गौघृत का हवन और साथ ही श्रीसूक्त की ऋचाओं का प्रतिदिन पाठ करता है। उसे इस संसार में किसी भी वस्तु का अभाव नहीं रहता है ।श्री सूक्त पाठ से गरीबी दूर होती है, धन-धान्य की वृद्धि होती है, सुख-समृद्धि और सौभाग्य मिलता है।लक्ष्मी सूक्त का पाठ करने से व्यक्ति को तेज, यश, अच्छा स्वास्थ्य और आयु प्राप्त होती है। वह धन धान्य से युक्त होकर दीर्घायु होता है।
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