Premanand Ji Maharaj Satsang: शिव कृपा कैसे पाएं, प्रेमानंद महाराज ने बताए रहस्य

Premanand Ji Maharaj Satsang Gyan: प्रेमानंद महाराज जी के अनुसार, इन दोनों की प्राप्ति तभी संभव है जब मानव को भगवान शंकर की कृपा प्राप्त हो...

Jyotsna Singh
Published on: 21 July 2025 7:00 AM IST (Updated on: 21 July 2025 7:01 AM IST)
Premanand Ji Maharaj Satsang Gyan Bhagwan Shiv Ki Puja Kaise Karen How to Attain Shiva Grace
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Premanand Ji Maharaj Satsang Gyan Bhagwan Shiv Ki Puja Kaise Karen How to Attain Shiva Grace

Premanand Ji Maharaj Satsang Gyan: भक्ति और ज्ञान दोनों ही मोक्ष के दो प्रमुख पथ माने जाते हैं। प्रेमानंद महाराज जी के अनुसार, इन दोनों की प्राप्ति तभी संभव है जब मानव को भगवान शंकर की कृपा प्राप्त हो। शिव ही हैं जीवन के हर शुभारंभ की प्रथम सीढ़ी, शिव ही वह दिव्य शक्ति हैं जो हृदय के अज्ञान और अहंकार को हरकर जीवन को शुद्ध करती हैं और हरि भक्ति के मार्ग पर अग्रसर करती हैं। महाराज जी का स्पष्ट संदेश है कि, शिव कृपा के बिना जीवन में सच्चा ज्ञान और हरि भक्ति संभव ही नहीं।

शिव कृपा शुद्ध ज्ञान का पहला सोपान

प्रेमानंद महाराज अपने प्रवचनों में अकसर यह संदेश देते हैं कि, मानव जीवन का सबसे बड़ा शत्रु है अज्ञान। यही अज्ञान मोह, लोभ, क्रोध, ईर्ष्या और अहंकार को जन्म देता है। जब तक यह अज्ञान बना रहेगा, तब तक ज्ञान की ज्योति नहीं जल सकती। महाराज जी कहते हैं कि, भगवान शंकर ही इस अज्ञान का संहार करते हैं और आत्मज्ञान की वह लौ जलाते हैं जिससे मनुष्य अपने सच्चे स्वरूप को पहचान पाता है। उनका कथन है कि, भगवान शंकर केवल भौतिक जगत के संहारक नहीं, बल्कि अंतर्मन के अज्ञान और विकारों के भी संहारक हैं।

निर्मल चित्त से ही संभव है हरि भक्ति

हरि भक्ति का वास्तविक अर्थ है भगवान के प्रति निष्काम समर्पण और हर क्षण उनकी स्मृति में लीन रहना। लेकिन यह तब तक संभव नहीं जब तक मन का चित्त शुद्ध न हो। प्रेमानंद महाराज स्पष्ट कहते हैं कि चित्त की शुद्धि तभी संभव है जब शिव कृपा प्राप्त हो। उनके अनुसार, शिव ही हैं जो अहंकार, वासना और द्वेष रूपी मल को दूर कर चित्त को निर्मल बनाते हैं। तभी भक्त अपने समर्पण में सच्चाई और गहराई ला पाता है और हरि भक्ति के मार्ग पर अग्रसर हो सकता है।

शिव का आदर्श जीवन भक्ति और वैराग्य का प्रतीक

भगवान शिव का जीवन स्वयं भक्ति और वैराग्य का जीवंत उदाहरण है। वे संसार में रहकर भी उससे निरपेक्ष हैं और हर जीव के कल्याण के लिए सतत सक्रिय रहते हैं। प्रेमानंद महाराज इसे बार-बार रेखांकित करते हैं कि त्याग का अर्थ संसार से भागना नहीं, बल्कि उसमें रहते हुए उसमें लिप्त न होना है। शिव का यही भाव भक्त को सिखाता है कि सच्ची भक्ति और वैराग्य किस प्रकार साथ-साथ निभाए जा सकते हैं।

प्रेमानंद महाराज के अनुसार शिव कृपा कैसे पाएं

प्रेमानंद महाराज के उपदेशों के अनुसार, भगवान शंकर की कृपा पाने के लिए सबसे पहले आवश्यक है अपने अहंकार का त्याग और विनम्रता का भाव। शिव करुणा के मूर्त रूप हैं, इसलिए करुणा और दया से भरा हृदय ही उनके कृपापात्र बनता है। साधना में निरंतरता और श्रद्धा बनाए रखना भी अनिवार्य है। इसके साथ ही ‘ॐ नमः शिवाय’ का जाप शिव कृपा प्राप्त करने का सबसे सरल और प्रभावी मार्ग है, जो मन को शुद्ध कर आत्मा को शांति प्रदान करता है।

शिव कृपा से ही हरि भक्ति में सफलता का मार्ग

प्रेमानंद महाराज इस बात पर बल देते हैं कि शिव कृपा से ही भक्त में वह विनम्रता आती है जो उसे हरि के चरणों में समर्पित करती है। महाराज जी का यह कहना अत्यंत मार्मिक है कि, जैसे गंगा जी शिव की जटाओं में समाहित होकर शुद्ध होती हैं, वैसे ही भक्त भी शिव कृपा से शुद्ध होकर ही हरि भक्ति के योग्य बनता है।

प्रेमानंद महाराज हमेशा इस बात को दोहराते हैं कि भक्ति और ज्ञान दोनों ही अधूरे हैं यदि वे एक-दूसरे के पूरक न बनें। शिव ही वह सेतु हैं जो भक्ति और ज्ञान को संतुलित करते हैं। वे ज्ञान के प्रकाशक भी हैं और भक्ति के परम आराध्य भी। जीवन में संतुलित साधना के लिए शिव का आश्रय लेना आवश्यक है क्योंकि वे ही दोनों का सामंजस्य कर सकते हैं।

शिव हैं भक्ति और ज्ञान के प्रथम गुरू

प्रेमानंद महाराज जी अपने प्रवचनों में बार-बार यह बताते हैं कि शिव मात्र त्रिलोक संहारक नहीं, अपितु भक्ति और ज्ञान के भी प्रथम गुरू हैं। वास्तव में, संसार में दो ही पथ हैं ज्ञान मार्ग और भक्ति मार्ग और दोनों की ओर जाने का द्वार शिव ही खोलते हैं। शिव ही वह करुणा सागर हैं, जिनकी दृष्टि से हृदय निर्मल होता है और जब हृदय निर्मल होता है तभी सच्चे ज्ञान का प्रकाश और भक्ति की अनुभूति संभव होती है। भक्ति में समर्पण चाहिए, और ज्ञान में विवेक इन दोनों का बीज शिव ही हैं। शिव का नाम स्मरण करते-करते जब हृदय गदगद हो जाता है, तब वह भक्ति की भूमि पर पहुंचता है। शिव की कृपा से जब मन स्थिर होता है, तभी उसमें सच्चे ज्ञान की दीपशिखा जलती है। इसलिए प्रेमानंद महाराज जी यह संदेश देते हैं कि, यदि हरि भक्ति की चाह रखते हो, तो पहले शिव की शरण में जाओ।

यदि ज्ञान की राह पर चलना चाहते हो, तो पहले शिव को नमो नमः कहो। शिव ही गुरु हैं, शिव ही कृपा के स्रोत हैं।

शिव की शरणागति ही वह साधना है, जो हरि भक्ति और सच्चे ज्ञान दोनों के मार्ग प्रशस्त करती है।

यह शिव का आश्रय ही है, जो मनुष्य को अज्ञान के अंधकार से निकालकर भक्ति और ज्ञान के प्रकाश की ओर ले जाता है।

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