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Vat Savitri Vrat: अखंड सौभाग्य के संकल्प का नैसर्गिक अनुष्ठान
Vat Savitri Vrat: वट सावित्री व्रत सौभाग्य को देने वाला और संतान की प्राप्ति में सहायता देने वाला व्रत माना गया है। भारतीय संस्कृति में यह व्रत आदर्श नारीत्व का प्रतीक बन चुका है।
vat savitri vrat 2025
Vat Savitri Vrat: अखंड सौभाग्य का नैसर्गिक अनुष्ठान ही सनातन संस्कृति का संकल्प है। यह अखंड समस्त सृष्टि के लिए संकल्पित है। सृष्टि की समग्र ऊर्जा को विधाता ने नारी तत्व में संलयित किया है इसलिए इस अखंड संकल्प की साधना के लिए उसी को चुना गया। लोक जीवन में इस विधि को जीवन संस्कार से जोड़ा गया और सधवा स्त्री के जिम्मे यह दायित्व सौंप दिया गया। यह साक्षात् गायत्री अनुष्ठान ही है जिसे आज लोक में हम वट सावित्री के रूप में जानते हैं।
वट सावित्री व्रत सौभाग्य को देने वाला और संतान की प्राप्ति में सहायता देने वाला व्रत माना गया है। भारतीय संस्कृति में यह व्रत आदर्श नारीत्व का प्रतीक बन चुका है। इस व्रत की तिथि को लेकर भिन्न मत हैं। स्कंद पुराण तथा भविष्योत्तर पुराण के अनुसार ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को यह व्रत करने का विधान है, वहीं निर्णयामृत आदि के अनुसार ज्येष्ठ मास की अमावस्या को व्रत करने की बात कही गई है। अलग अलग ग्रंथों में ज्येष्ठ मास की त्रयोदशी से अमावस्या तक इस व्रत और अनुष्ठान के बारे में इंगित किया गया है।
तिथियों में भिन्नता होते हुए भी व्रत का उद्देश्य एक ही है , सौभाग्य की वृद्धि और पतिव्रत के संस्कारों को आत्मसात करना। कई व्रत विशेषज्ञ यह व्रत ज्येष्ठ मास की त्रयोदशी से अमावस्या तक तीन दिनों तक करने में भरोसा रखते हैं। इसी तरह शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी से पूर्णिमा तक भी यह व्रत किया जाता है। विष्णु उपासक इस व्रत को पूर्णिमा को करना ज्यादा हितकर मानते हैं।
वट सावित्री व्रत में ’वट’ और ’सावित्री’ दोनों का विशिष्ट महत्व माना गया है। पीपल की तरह वट या बरगद के पेड़ का भी विशेष महत्व है। पाराशर मुनि के अनुसार- ’वट मूले तोपवासा’ ऐसा कहा गया है। पुराणों में यह स्पष्ट किया गया है कि वट में ब्रह्मा, विष्णु व महेश तीनों का वास है। इसके नीचे बैठकर पूजन, व्रत कथा आदि सुनने से मनोकामना पूरी होती है। वट वृक्ष अपनी विशालता के लिए भी प्रसिद्ध है। संभव है वनगमन में ज्येष्ठ मास की तपती धूप से रक्षा के लिए भी वट के नीचे पूजा की जाती रही हो और बाद में यह धार्मिक परंपरा के रूपमें विकसित हो गई हो। परंतु गीता अध्याय 6 के श्लोक 16 में व्रत करने की मनाही है।
दार्शनिक दृष्टि से देखें तो वट वृक्ष दीर्घायु व अमरत्व-बोध के प्रतीक के नाते भी स्वीकार किया जाता है। वट वृक्ष ज्ञान व निर्वाण का भी प्रतीक है। भगवान बुद्ध को इसी वृक्ष के नीचे ज्ञान प्राप्त हुआ था। इसलिए वट वृक्ष को पति की दीर्घायु के लिए पूजना इस व्रत का अंग बना। महिलाएँ व्रत-पूजन कर कथा कर्म के साथ-साथ वट वृक्ष के आसपास सूत के धागे परिक्रमा के दौरान लपेटती हैं।
वट सावित्री व्रत की कथा
वट वृक्ष का पूजन और सावित्री-सत्यवान की कथा का स्मरण करने के विधान के कारण ही यह व्रत वट सावित्री के नाम से प्रसिद्ध हुआ। सावित्री भारतीय संस्कृति में ऐतिहासिक चरित्र माना जाता है। सावित्री का अर्थ वेद माता गायत्री और सरस्वती भी होता है। सावित्री का जन्म भी विशिष्ट परिस्थितियों में हुआ था। कथा का संदर्भ है कि भद्र देश के राजा अश्वपति के कोई संतान न थी। उन्होंने संतान की प्राप्ति के लिए मंत्रोच्चारण के साथ प्रतिदिन एक लाख आहुतियाँ दीं। अठारह वर्षों तक यह क्रम जारी रहा। इसके बाद सावित्रीदेवी ने प्रकट होकर वर दिया कि ’राजन तुझे एक तेजस्वी कन्या पैदा होगी।’ सावित्रीदेवी की कृपा से जन्म लेने की वजह से कन्या का नाम सावित्री रखा गया। कन्या बड़ी होकर बेहद रूपवान थी। योग्य वर न मिलने की वजह से सावित्री के पिता दुःखी थे। उन्होंने कन्या को स्वयं वर तलाशने भेजा। सावित्री तपोवन में भटकने लगी। वहाँ साल्व देश के राजा द्युमत्सेन रहते थे क्योंकि उनका राज्य किसी ने छीन लिया था। उनके पुत्र सत्यवान को देखकर सावित्री ने पति के रूप में उनका वरण किया।कहते हैं कि साल्व देश पूर्वी राजस्थान या अलवर अंचल के इर्द-गिर्द था। सत्यवान अल्पायु थे। वे वेद ज्ञाता थे। नारद मुनि ने सावित्री से मिलकर सत्यवान से विवाह न करने की सलाह दी थी परंतु सावित्री ने सत्यवान से ही विवाह रचाया। पति की मृत्यु की तिथि में जब कुछ ही दिन शेष रह गए तब सावित्री ने घोर तपस्या की थी, जिसका फल उन्हें बाद में मिला था। जब सत्यवान की मृत्यु का समय आया, सावित्री ने तीन दिन का उपवास रखा। सत्यवान की मृत्यु के दिन, वह उसके साथ जंगल गई और सत्यवान की मृत्यु हो गई। सावित्री ने यमराज का पीछा किया और अपने दृढ़ निश्चय और प्रेम से प्रभावित करके यमराज से तीन वरदान प्राप्त किए।
पहले वरदान में उसने अपने ससुराल वालों के राज्य की वापसी मांगी, दूसरे में अपने पिता के लिए एक पुत्र, और तीसरे में अपने लिए संतान मांगी। यमराज ने वरदान स्वीकार किए और सत्यवान को जीवनदान दिया। सावित्री वट वृक्ष के पास लौट आई और सत्यवान जीवित हो गया। इस घटना के बाद, महिलाएं वट सावित्री व्रत रखती हैं और वट वृक्ष की पूजा करती हैं ताकि उनके पति की आयु लंबी हो और उनका वैवाहिक जीवन सुखी बना रहे।
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