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बिहार में घोटाले का महाविस्फोट! 70,000 करोड़ का हिसाब गायब, तेजस्वी से लेकर नीतीश तक सब फंसे?
70,000 crore scam in Bihar: बिहार में घोटाले का बड़ा खुलासा! CAG रिपोर्ट के अनुसार 70,877 करोड़ रुपये का खर्च सरकार ने किया लेकिन कोई सबूत नहीं।
70,000 crore scam in Bihar: बिहार की राजनीति में चुनाव से पहले ऐसा बम फटा है जिसकी गूंज पटना से दिल्ली तक सुनाई दे रही है। वोटर लिस्ट के ‘विशेष गहन पुनरीक्षण’ (SIR ) पर जहां पहले से घमासान मचा हुआ है वहीं अब नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) की रिपोर्ट ने सियासी गलियारों में आग लगा दी है। रिपोर्ट कहती है बिहार सरकार 70,877 करोड़ रुपए खर्च कर चुकी है लेकिन सबूत नहीं दे पाई। न कोई उपयोगिता प्रमाणपत्र न पारदर्शिता न जवाबदेही। ऐसे में जनता अब पूछ रही है, पैसा गया कहां? और जिम्मेदार कौन?।
हिसाब नहीं हेरा-फेरी है?
कैग की रिपोर्ट के मुताबिक सरकार को हर साल अपने खर्च का उपयोगिता प्रमाणपत्र देना होता है। यानी यह दिखाना होता है कि जो पैसा सरकार ने योजनाओं पर खर्च किया वो वाकई योजनाओं पर ही खर्च हुआ। लेकिन बिहार सरकार सालों से इन प्रमाणपत्रों को जमा ही नहीं कर रही। 70877 करोड़ रुपए के खर्च का कोई भरोसेमंद हिसाब नहीं है। सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि इनमें से 14452 करोड़ रुपए तो 2016-17 से भी पहले के हैं। यानी मामला सिर्फ मौजूदा सरकार तक सीमित नहीं है तेजस्वी यादव के उपमुख्यमंत्री कार्यकाल तक इसकी जड़ें जुड़ी हुई हैं। यह वही समय था जब बिहार में महागठबंधन की सरकार थी और सत्ता की चाभी नीतीश-तेजस्वी की साझा तिजोरी में थी।
पंचायती राज बना ‘पैसे का कब्रगाह’
रिपोर्ट के आंकड़े डराने वाले हैं। सबसे ज़्यादा पैसा दबाकर बैठा है पंचायती राज विभाग28154.10 करोड़ रुपए। उसके बाद नंबर आता है शिक्षा विभाग का (12623.67 करोड़) फिर शहरी विकास (11065.50 करोड़) ग्रामीण विकास (7800.48 करोड़) और कृषि विभाग (2107.63 करोड़)। इन पांचों विभागों ने सालों से पैसे खर्च किए लेकिन कोई प्रमाण नहीं दिया कि वो पैसे कहां गए। अब सवाल उठता है इन विभागों को किसने चलाया? जवाब में निकलती है बिहार की सियासी कुंडली।
किसके हाथ था खजाना और किसने उड़ाया?
2015 में जब महागठबंधन बना था तो पंचायती राज था जेडीयू के कपिल देव कामत के पास। शिक्षा भी जेडीयू के अशोक चौधरी शहरी विकास महेश्वर हजारी ग्रामीण विकास श्रवण कुमार और कृषि आरजेडी के राम विचार राय के पास था। यानी सत्ता में दोनों ही दल बराबर भागीदार थे। वहीं तेजस्वी यादव के पास तीन मंत्रालय थे, सड़क निर्माण, भवन निर्माण और पिछड़ा वर्ग विकास। उनके बड़े भाई तेज प्रताप भी मंत्री थे जिनके पास स्वास्थ्य पर्यावरण और पिछड़ा वर्ग मंत्रालय था। अब जब रिपोर्ट में पुरानी सरकारों की गड़बड़ियों की बात हो रही है तो विपक्ष में बैठे तेजस्वी को भी जनता की नजरें घूर रही हैं।
अब क्या हो रहा है?
वर्तमान में ये पांच विभाग बीजेपी और जेडीयू के मंत्रियों के पास हैं। पंचायती राज है केदार गुप्ता (बीजेपी) के पास शिक्षा सुनील कुमार (जेडीयू) शहरी विकास जिबेश कुमार (बीजेपी) ग्रामीण विकास फिर से श्रवण कुमार (जेडीयू) और कृषि है विजय कुमार सिन्हा (बीजेपी) के पास। मतलब वर्तमान सरकार भी इस ‘हिसाब से बचने की परंपरा’ को आगे बढ़ा रही है। कैग का साफ कहना हैअगर उपयोगिता प्रमाणपत्र नहीं जमा होंगे तो इस बात की कोई गारंटी नहीं कि पैसा सही जगह खर्च हुआ। ये स्थिति सीधे-सीधे घोटाले का इशारा है।
नीतीश सरकार की फाइनेंशियल रिपोर्ट कार्ड
बिहार सरकार ने 2023-24 में कुल 3.26 लाख करोड़ का बजट रखा था लेकिन खर्च कर पाई केवल 2.60 लाख करोड़। और जो बचा हुआ पैसा था65512 करोड़उसमें से भी सरकार ने सिर्फ 23875 करोड़ ही लौटा पाए। इसका मतलब हैया तो पैसा योजनाओं में उलझ गया या फिर कहीं और बह गया। सरकार दावा कर रही है कि उन्होंने कई कल्याणकारी योजनाएं चलाईं लेकिन कैग रिपोर्ट कहती हैउन योजनाओं का वित्तीय ट्रैक रिकॉर्ड नहीं है। तो सवाल उठता हैक्या यह ‘जनता का पैसा’ चुनाव के लिए फंडिंग में तब्दील हो गया है?।
चुनावी रण और घोटालों की गूंज
2025 का बिहार विधानसभा चुनाव बेहद नजदीक है। वोटर लिस्ट में गड़बड़ी का आरोप पहले से ही विपक्ष लगा रहा है और अब कैग रिपोर्ट ने मौजूदा सत्ता को कटघरे में खड़ा कर दिया है। तेजस्वी यादव पर भी उंगली उठ रही है क्योंकि घोटाले की जड़ें उनके कार्यकाल तक जाती हैं। नीतीश कुमार को जवाब देना है कि आखिर क्यों हर बार ‘हिसाब’ की बात आते ही सरकारें खामोश हो जाती हैं। बिहार की जनता के पास अब सिर्फ एक सवाल हैक्या लोकतंत्र में कोई पूछेगा कि 70000 करोड़ रुपए आखिर गए कहां? या फिर चुनावी नारों जातीय गणित और गठबंधन की तिकड़मों में फिर एक बार सच को दफना दिया जाएगा?।
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