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बिहार के एक गांव में जहां एक भी मुस्लिम नहीं – हिंदू देते हैं मस्जिद में अज़ान! धर्म की अनोखी मिसाल
बिहार के मगध इलाके में, जहां अब एक भी मुस्लिम नहीं रहता, हिंदू समुदाय के लोग मस्जिद की देखभाल करते हैं और उसमें अज़ान देते हैं।
भारत में कई बार हमें हिन्दू-मुस्लिम विवाद की खबरें सुनने को मिलती हैं, और इन दिनों मंदिर-मस्जिद के विवाद भी सुर्ख़ियों में रहते हैं। कभी हिन्दू पक्ष के कट्टर लोग कहते हैं कि यहां पहले मंदिर था, तो कभी मुस्लिम समाज के लोग अपनी दलीलें देते हैं। लेकिन इस बीच अगर आपको बताया जाए कि बिहार में एक ऐसा गांव है, जहां एक भी मुस्लिम नहीं रहता, लेकिन वहां की एक मस्जिद की देखभाल कुछ हिन्दू लोग करते हैं, और उस मस्जिद में अजान भी दी जाती है, तो यह सुनकर आपको हैरानी हो सकती है।
मगध इलाके की ऐतिहासिक धरोहर
बिहार की राजधानी पटना के पास स्थित इलाका, जो कभी मगध के नाम से प्रसिद्ध था, आज भी अपनी ऐतिहासिक धरोहर को संजोए हुए है। इस इलाके में कुछ जगहों पर मुसलमानों की आबादी नहीं है, लेकिन वहां पर कई पुरानी मस्जिदें मौजूद हैं, और वहां हर दिन अजान दी जाती है। ये मस्जिदें दशकों पुरानी हैं और उनकी शान अब भी बरकरार है।
हिंदू समाज का योगदान
इन मस्जिदों की देखभाल के लिए यहां के लोग, खासकर दिहाड़ी मजदूरी करने वाले लोग, खुद आगे आए हैं। यह लोग अपने खर्च पर मस्जिदों की मरम्मत और रख-रखाव करते हैं। इनकी एकमात्र चिंता इबादत की जगह को संरक्षित रखना है, और इनमें से कुछ लोग हिन्दू धर्म के अनुयायी भी हैं। इनकी मेहनत और समर्पण यह साबित करता है कि धर्म से ऊपर मानवता और सांस्कृतिक धरोहर का सम्मान सबसे महत्वपूर्ण है।
अजय की कहानी
बीबीसी से बातचीत के दौरान अजय, जो पेशे से मजदूर हैं, ने कहा, "हमने यह सब काम अपने खर्च पर किया। शुरुआत में ऐसा लगा था कि मस्जिद के लिए कुछ करना चाहिए, क्योंकि वह जगह हमेशा वीरान सी लगती थी। हम मजदूरी करने वाले लोग थे, लेकिन फिर भी सोचा कि क्यों न इस नेक काम में हाथ बटाया जाए।" अजय ने आगे बताया, "पहले हमने मस्जिद के फर्श को ठीक किया, फिर जंगल को साफ किया और फिर मस्जिद की दीवारों पर पुताई की। हम लोगों ने मेहनत से इसे सजाया। जब ये काम हो गया, तो मन में ख्याल आया कि अल्लाह का घर हमेशा रोशन रहना चाहिए, तो शाम को बाती जलानी शुरू की। फिर हम लोग अगरबत्तियाँ भी जलाने लगे।"
अजय ने बताया, "आखिरकार, हमने ये महसूस किया कि अज़ान भी मस्जिद से होनी चाहिए, तो हमने लाउडस्पीकर लाकर पेन ड्राइव से अज़ान दिलवाना शुरू किया। हमें इस नेक काम से संतुष्टि मिली, और हम खुश हैं कि अल्लाह ने हमें यह मौका दिया।
मगध इलाके की मस्जिदों की ऐतिहासिक अहमियत
बिहार के मगध इलाके में ऐसे कई गांव हैं जहां अब मुसलमान नहीं रहते, लेकिन इन गांवों में आज भी पुरानी मस्जिदें मौजूद हैं। इनमें से कुछ मस्जिदें अतिक्रमण का शिकार हो चुकी हैं, कुछ गिर गई हैं, जबकि कुछ खंडहर में बदल गई हैं या फिर वहां स्थानीय लोग अपने जानवरों को रखने लगे हैं। ये मस्जिदें इस बात का गवाह हैं कि कभी यहां मुसलमानों की आबादी अच्छी खासी थी। मगध इलाका पटना, गया, नालंदा, नवादा, शेखपुरा और अरवल जैसे जिलों को शामिल करता है। यह वही इलाका है जहां मगही भाषा बोली जाती है।
इतिहास और राजनीति का असर
1946 में जब बांग्लादेश के नोआखली में दंगे हुए, तो उसका असर बिहार के मगध क्षेत्र पर भी पड़ा। इस दंगे ने बिहार में भी बड़ी हिंसा को जन्म दिया, और यहीं से तनाव बढ़ने लगा। इस समय मुस्लिम लीग की राजनीति बिहार में बहुत मजबूत नहीं थी। 1937 में जब 'गवर्नमेंट ऑफ इंडिया एक्ट' के तहत प्रांतीय चुनाव हुए, तो बिहार में मुस्लिम लीग को केवल दो सीटें मिलीं। इसके बाद, कांग्रेस और मुस्लिम लीग के बीच टकराव बढ़ा, जिसके बाद मुस्लिम इंडिपेंडेंट पार्टी के नेता मोहम्मद यूनुस ने बिहार में सरकार बनाई। इतिहासकार इम्तियाज़ अहमद बताते हैं, "1937 के चुनावों के बाद जब कांग्रेस ने मुस्लिम लीग और मोहम्मद यूनुस के साथ सही व्यवहार नहीं किया, तो मुसलमानों में नाराज़गी फैल गई। फिर जिन्ना ने बिहार का दौरा किया और मुस्लिम लीग को मजबूत किया।"
इसके बाद बिहार में ध्रुवीकरण बढ़ने लगा, और नोआखली दंगों का असर बिहार में देखने को मिला। इम्तियाज़ अहमद के अनुसार, "बंगाल हमारे पड़ोसी राज्य था, और बिहार में पहले से ही तनाव था। इसके अलावा, यहां के कई बड़े ज़मींदार मुसलमान थे, जो जमीन पर अपना अधिकार चाहते थे।" मगध इलाके में भी ऐसे बड़े जातीय समूह थे जो इन ज़मीनों पर कब्जा करना चाहते थे। इसके चलते कई बार मुसलमानों को निशाना बनाया गया। 1946 में हुए दंगों के बाद मुस्लिम लीग के नेता ख्वाजा नाज़िमुद्दीन ने पटना में आकर घोषणा की थी, "अब हमने पाकिस्तान हासिल कर लिया है।" यह घटनाएं मगध क्षेत्र के दंगों को एक महत्वपूर्ण मोड़ देती हैं।
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