×

चुनाव से पहले नितीश का मास्टरस्ट्रोक! बिहार की बेटियों को मिलेगा अब 35% आरक्षण, क्या बदलेगा महिला वोटों का गणित?

35 percent reservation for Bihar women: बिहार सरकार ने 35% महिलाओं के क्षैतिज आरक्षण को केवल बिहार की स्थायी निवासी महिलाओं तक सीमित कर दिया है।

Harsh Srivastava
Published on: 8 July 2025 1:43 PM IST
चुनाव से पहले नितीश का मास्टरस्ट्रोक! बिहार की बेटियों को मिलेगा अब 35% आरक्षण, क्या बदलेगा महिला वोटों का गणित?
X

35 percent reservation for Bihar women: पटना की गर्म दोपहर में जब सीएम नीतीश कुमार की अध्यक्षता में कैबिनेट की बैठक चल रही थी, तब शायद किसी ने नहीं सोचा था कि एक फैसला बिहार की राजनीति में बड़ा भूकंप ला सकता है। राज्य सरकार ने महिलाओं को 35% क्षैतिज आरक्षण के पुराने नियमों में ऐसा बदलाव किया है, जिससे बिहार की बेटियों को तो अधिकार मिलेंगे, लेकिन दूसरी तरफ देशभर में एक नई बहस छिड़ चुकी है – क्या अब सरकारी नौकरियों में ‘डोमिसाइल राजनीति’ का युग शुरू हो चुका है?

अब सिर्फ ‘बिहार की बेटियां’ होंगी आरक्षित!

बिहार सरकार ने 35% महिलाओं के क्षैतिज आरक्षण को केवल बिहार की स्थायी निवासी महिलाओं तक सीमित कर दिया है। यानी अब देश के किसी अन्य राज्य की महिला अगर बिहार लोक सेवा आयोग (BPSC) या अन्य राज्य स्तरीय प्रतियोगी परीक्षा में बैठती है, तो उसे आरक्षित वर्ग का लाभ नहीं मिलेगा, भले ही वह महिला हो। उसे सामान्य श्रेणी में ही मुकाबला करना होगा। डॉ. एस. सिद्धार्थ (कैबिनेट अपर मुख्य सचिव) ने इस फैसले की पुष्टि करते हुए कहा कि अब सिर्फ बिहार के स्थायी निवासी ही महिला आरक्षण के तहत लाभ ले पाएंगे। यह फैसला महिला सशक्तिकरण को राज्य के भीतर अधिक केंद्रित और प्रभावी बनाने की मंशा से लिया गया है।

क्या है इस फैसले का राजनीतिक अर्थ?

इस फैसले का टाइमिंग बेहद अहम है — बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के ठीक पहले लिया गया ये निर्णय सिर्फ प्रशासनिक बदलाव नहीं, बल्कि महिला वोट बैंक को साधने की एक दूरगामी रणनीति के तौर पर देखा जा रहा है। नीतीश कुमार की पहचान एक ‘महिला हितैषी’ नेता के रूप में रही है — चाहे वो साइकिल योजना हो, या मुख्यमंत्री कन्या उत्थान योजना, उन्होंने हमेशा लड़कियों को सामाजिक मुख्यधारा में लाने का प्रयास किया है। लेकिन इस बार आरक्षण के साथ डोमिसाइल जोड़कर नीतीश ने बिहार की बेटियों को ‘प्राथमिकता’ की गारंटी दी है और साथ ही उन महिलाओं को बाहर कर दिया है जो बिहार की स्थायी निवासी नहीं हैं। यह फैसला ऐसे समय पर आया है जब विपक्ष ‘बाहरी-भीतरी’ की राजनीति पर पहले से ही सवाल उठा रहा है।

महिला वोटों में होगा बड़ा असर?

पिछले चुनावों में महिला वोटरों की भागीदारी में भारी वृद्धि देखी गई है। बिहार में महिलाओं का मतदान प्रतिशत पुरुषों से भी ज्यादा हो चुका है। ऐसे में यह कदम, विशेषकर ग्रामीण और पिछड़े क्षेत्रों की महिलाओं में, सशक्तिकरण का प्रतीक बन सकता है। यह फैसला गांवों की उन युवतियों के लिए भी उत्साह बढ़ाएगा, जो अब तक सोचती थीं कि बाहर से आकर प्रतियोगी महिलाएं उनकी सीटें छीन लेती हैं।

युवा आयोग – एक और चुनावी तीर

कैबिनेट बैठक में ही बिहार सरकार ने एक और बड़ा कदम उठाया – बिहार युवा आयोग का गठन। इसका उद्देश्य युवाओं को रोजगार, प्रशिक्षण और सामाजिक चेतना के कार्यों में जोड़ना है। आयोग के अंतर्गत एक अध्यक्ष, दो उपाध्यक्ष और सात सदस्य होंगे, जिनकी उम्र 45 साल से अधिक नहीं होगी। यह आयोग यह सुनिश्चित करेगा कि बिहार के युवाओं को निजी क्षेत्र में प्राथमिकता मिले, और साथ ही मादक पदार्थों व सामाजिक बुराइयों के खिलाफ रणनीति बनाकर सरकार को सुझाव दे। नीतीश कुमार के इस कदम को युवाओं में ‘भावनात्मक जुड़ाव’ बनाने की कोशिश भी कहा जा रहा है, क्योंकि बेरोजगारी और पलायन जैसे मुद्दों को लेकर राज्य सरकार अक्सर विपक्ष के निशाने पर रही है।

विपक्ष को मिला नया हमला बोलने का मौका?

हालांकि इस फैसले को लेकर राजनीतिक समीकरण भी तेजी से बदल सकते हैं। विपक्ष इसे ‘संकीर्णता की राजनीति’ बता सकता है, यह कहते हुए कि सरकार अब बिहार को अन्य राज्यों से काट रही है और संविधान के समावेशी मूल्यों के विपरीत कदम उठा रही है। कुछ विश्लेषकों का यह भी मानना है कि यह फैसला अदालतों में भी चुनौती का सामना कर सकता है, क्योंकि ‘डोमिसाइल आधारित आरक्षण’ की संवैधानिकता पहले भी सुप्रीम कोर्ट के दायरे में आ चुकी है।

सामाजिक ताने-बाने में क्या होगा बदलाव?

ये फैसला सामाजिक दृष्टि से भी कई सवाल खड़े करता है — क्या यह कदम ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ की भावना के अनुरूप है या फिर यह महिलाओं को भी राज्यों की सीमाओं में बांधने का प्रयास है? क्या बिहार की बेटी अगर किसी और राज्य में पढ़ती है, तो भी उसे स्थानीय का दर्जा मिलेगा? या फिर यह फैसला मूल निवासी बनाम प्रवासी महिला के बीच एक नया विभाजन पैदा करेगा?

क्या देश के दूसरे राज्य भी लेंगे इसी राह?

नीतीश कुमार का यह कदम अन्य राज्यों को भी प्रेरित कर सकता है। मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान और झारखंड जैसे राज्यों में भी क्षैतिज महिला आरक्षण लागू है — लेकिन डोमिसाइल को लेकर स्पष्ट नियम नहीं थे। अब बिहार के इस मॉडल को देखते हुए बाकी राज्य भी “स्थानीय महिला आरक्षण” लागू कर सकते हैं। ये फैसला राज्यों में स्थानीयता की राजनीति को नया बल दे सकता है, जो भारत के संघीय ढांचे के लिए एक दिलचस्प मोड़ होगा।

फैसला है दूरदर्शी या चुनावी?

नीतीश कुमार की छवि हमेशा एक ‘नीति-निर्माता और योजनावादी नेता’ की रही है। लेकिन ये फैसला साफ तौर पर चुनावों को ध्यान में रखकर लिया गया एक रणनीतिक कदम भी लगता है। 2025 के चुनाव में जहां महिला और युवा वोट सबसे निर्णायक भूमिका निभाएंगे, वहां यह डबल फैसले (महिला आरक्षण में डोमिसाइल और युवा आयोग) सीधे ‘भावनात्मक वोट बैंक’ को साधने का प्रयास हैं।

नई सियासत की दस्तक

बिहार में महिलाओं के आरक्षण को स्थानीयता से जोड़ना, और युवाओं के लिए अलग आयोग बनाना — ये दो कदम न सिर्फ राज्य की नीति में बदलाव ला सकते हैं, बल्कि भारत की चुनावी राजनीति में भी एक नई लकीर खींच सकते हैं। इस कदम के बाद नीतीश कुमार ने साफ संकेत दे दिया है — “जो बिहार का है, उसी को प्राथमिकता मिलेगी।” अब देखना यह होगा कि जनता इस फैसले को ‘संवेदनशील सुरक्षा कवच’ मानती है या ‘चुनावी छलावा’।’ क्योंकि बिहार में राजनीति अक्सर फैसलों से नहीं, भावनाओं से तय होती है – और इस बार नीतीश ने दोनों पर निशाना साधा है।

Start Quiz

This Quiz helps us to increase our knowledge

Harsh Srivastava

Harsh Srivastava

News Coordinator and News Writer

Harsh Shrivastava is an enthusiastic journalist who has been actively writing content for the past one year. He has a special interest in crime, politics and entertainment news. With his deep understanding and research approach, he strives to uncover ground realities and deliver accurate information to readers. His articles reflect objectivity and factual analysis, which make him a credible journalist.

Next Story