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RJD को सता रहा हार का डर? राहुल के तुरंत बाद तेजस्वी ने निकाली अपनी चुनाव यात्रा, क्या है मामला
राहुल गांधी की वोटर अधिकार यात्रा के बाद अब तेजस्वी यादव ने अपनी 'बिहार अधिकार यात्रा' शुरू कर दी है। क्या यह कदम आरजेडी की प्रेशर पॉलिटिक्स है या कांग्रेस से बढ़ती टक्कर का संकेत?
Tejashwi Yadav Voter Yatra: बिहार की राजनीति में इन दिनों कुछ ऐसा हो रहा है, जो सबको चौंका रहा है। कांग्रेस नेता राहुल गांधी की 1300 किलोमीटर लंबी 'वोटर अधिकार यात्रा' खत्म हुए अभी 15 दिन भी नहीं हुए कि आरजेडी नेता तेजस्वी यादव खुद अकेले 'बिहार अधिकार यात्रा' पर निकल पड़े हैं। यह घटनाक्रम कई सवाल खड़े कर रहा है। क्या तेजस्वी को राहुल की यात्रा से अपनी पार्टी को कम फायदा मिला? क्या कांग्रेस ने बिहार में अपना सियासी कद बढ़ा लिया है? और सबसे बड़ा सवाल, क्या यह 'अकेले चलो' का दांव आरजेडी की प्रेशर पॉलिटिक्स का हिस्सा है, ताकि वह कांग्रेस पर सीट बंटवारे को लेकर दबाव बना सके?
तेजस्वी का 'बिहार अधिकार यात्रा'
तेजस्वी यादव की 'बिहार अधिकार यात्रा' मंगलवार, 16 सितंबर से जहानाबाद से शुरू होगी और 20 सितंबर को वैशाली में खत्म होगी। इस दौरान तेजस्वी 5 दिनों में 10 जिलों से होकर गुजरेंगे, जिनमें मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का गढ़ नालंदा और केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह का गढ़ बेगूसराय भी शामिल है। यह साफ है कि तेजस्वी इस यात्रा के जरिए उन इलाकों में अपनी मौजूदगी दर्ज कराना चाहते हैं, जहां बीजेपी और जेडीयू का मजबूत जनाधार है। आरजेडी के प्रदेश महासचिव रणविजय साहू ने तेजस्वी की यात्रा को लेकर पार्टी के सभी सांसद, विधायक और नेताओं को पत्र भेजा है, जिसमें उनसे यात्रा में शामिल होने का अनुरोध किया गया है। यह दिखाता है कि आरजेडी इस यात्रा को लेकर कितनी गंभीर है और इसे सफल बनाने के लिए पूरी ताकत झोंक रही है।
क्यों पड़ी 'अकेले यात्रा' की जरूरत?
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि राहुल गांधी की 'वोटर अधिकार यात्रा' ने बिहार कांग्रेस में एक नई जान फूंकी है। हालांकि तेजस्वी भी उस यात्रा में राहुल के साथ थे, लेकिन कांग्रेस के नेताओं ने भी जनता का ध्यान अपनी तरफ खींचा। इससे कांग्रेस के हौसले बुलंद हैं और वह अब सीट शेयरिंग और मुख्यमंत्री के चेहरे के सवाल पर अपनी शर्तें रख रही है। कांग्रेस यह बताने में जुट गई है कि वह आरजेडी के सहारे नहीं, बल्कि उसका अपना जनाधार और राजनीतिक कद है। बीजेपी नेता गिरिराज सिंह ने भी इस पर तंज कसते हुए कहा, "तेजस्वी यादव ने राहुल गांधी के साथ 15 दिन घूमकर देख लिया... इसीलिए अब खुद निकल रहे हैं ताकि अपनी ब्रांडिंग कर सकें।"
'लालू की विरासत' का नया रूप
तेजस्वी का यह कदम सिर्फ राजनीतिक नहीं, बल्कि उनके पिता लालू प्रसाद यादव की विरासत को आगे बढ़ाने की एक कोशिश भी है। लालू यादव भी हमेशा यात्राओं और रैलियों के जरिए जनता से सीधे संवाद करते थे। तेजस्वी अपनी यात्रा के जरिए उसी रणनीति को अपना रहे हैं। वे जनता से सीधे जुड़कर यह साबित करना चाहते हैं कि महागठबंधन के निर्विवाद नेता वही हैं और मुख्यमंत्री पद के चेहरे के रूप में जनता की पहली पसंद हैं। आरजेडी नेता संजय यादव ने कहा, "राहुल गांधी के साथ जो यात्रा थी, वह वोटर अधिकार यात्रा थी। अब तेजस्वी 'बिहार के अधिकार' के लिए यात्रा पर निकल रहे हैं।" उन्होंने कहा कि तेजस्वी अपनी यात्रा के दौरान किसान, नौजवान, महिलाएं, बुजुर्ग और रोजगार जैसे मुद्दों को उठाएंगे और सरकार को घेरेंगे। यह यात्रा न सिर्फ आरजेडी के कार्यकर्ताओं का हौसला बढ़ाएगी, बल्कि यह भी तय करेगी कि आगामी चुनाव में आरजेडी और कांग्रेस के बीच 'बड़ा भाई' कौन है।
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