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'वोटर अधिकार यात्रा' से कांग्रेस की बढ़ी बार्गेनिंग पावर! लेकिन तेजस्वी के सीएम चेहरे पर क्यों साधी
इस यात्रा को लेकर अब सवाल खड़े हो रहे हैं कि क्या कांग्रेस की ‘बार्गेनिंग पावर’ बढ़ गई है?
Vote Adhikar Yatra (PHOTO: SOCIAL MEDIA)
Vote Adhikar Yatra: बिहार की सियासत में नई गर्माहट दस्तक दे चुकी है। कांग्रेस नेता राहुल गांधी की आज 1 सितंबर को 16 दिन की ‘वोटर अधिकार यात्रा’ पटना में समाप्त हो गई। इस दौरान राहुल गांधी ने तेजस्वी यादव और महागठबंधन के अन्य नेताओं के साथ तकरीबन 1300 किलोमीटर की दूरी तय की और लगभग 23 जिलों में जनता से सीधे जुड़ने का प्रयास किया। इस यात्रा को लेकर अब सवाल खड़े हो रहे हैं कि क्या कांग्रेस की ‘बार्गेनिंग पावर’ बढ़ गई है और क्या यह सीट शेयरिंग की राजनीति में RJD को कठिनाई में डाल सकती है? आइये जानते हैं सभी सवालों के जवाब...
कांग्रेस का बढ़ा आत्मविश्वास
बिहार में तीन दशक से सत्ता से बाहर कांग्रेस ने इस यात्रा के माध्यम से अपने कार्यकर्ताओं और कैडर में नया उत्साह भर दिया है। राजनीतिक जानकार का कहना है कि राहुल गांधी ने इस बार ज़मीन से जुड़कर बिहार में कांग्रेस की ‘पॉलिटिकल विजिबिलिटी’ बढ़ाने का महत्वपूर्ण कार्य किया है। साल 2020 में 70 सीटों पर चुनाव लड़ने वाली कांग्रेस इस बार सीट बंटवारे में और अधिक कर प्रबल रूप से मजबूत दावेदारी करती दिख सकती है।
उत्तर बिहार और मिथिलांचल पर मुख्य फोकस
यात्रा के दौरान राहुल गांधी ने विशेषतौर पर उत्तर बिहार और मिथिलांचल के इलाकों को निशाना बनाया, जो अब तक NDA का गढ़ माने जाते हैं। कांग्रेस ने जिन 110 सीटों को यात्रा के माध्यम से कवर किया, उनमें से लगभग 80 सीटों पर फिलहाल NDA का कब्ज़ा है। इनमें दरभंगा, मधुबनी, सीतामढ़ी, चंपारण और मुज़फ्फरपुर जैसे जिले शामिल हैं। कांग्रेस का फोकस अब इन सीटों पर अपनी खोई हुई ज़मीन वापस पाने पर है।
सीट शेयरिंग में बढ़ सकती हैं मुश्किलें
राजनीतिक विशेषज्ञों के मुताबिक, यात्रा की सफलता के बाद कांग्रेस अब महागठबंधन में ‘सीट शेयरिंग’ को लेकर और भी मजबूती से आगे कदम बढ़ाएगी।राहुल गांधी की मौजूदगी ने पार्टी कार्यकर्ताओं को उम्मीद दी है कि इस बार कांग्रेस केवल ‘सहयोगी पार्टी’ बनकर नहीं, बल्कि अधिक सीटों पर दावा करेगी।
तेजस्वी की दावेदारी पर कांग्रेस की चुप्पी
यात्रा के दौरान राहुल गांधी और तेजस्वी यादव एक साथ दिखे, लेकिन मुख्यमंत्री पद के चेहरे को लेकर कांग्रेस ने अबतक चुप्पी साध रखी है। तेजस्वी कई बार खुद को मुख्यमंत्री पद का दावेदार बता चुके हैं और समाजवादी पार्टी के अखिलेश यादव ने भी उनके नाम पर मुहर लगा दी है। लेकिन कांग्रेस ने इस पर कोई स्पष्ट रुख नहीं अपनाया। ऐसा कहा जा रहा है कि कांग्रेस जानबूझकर रणनीति के अंतर्गत चुप्पी साधे हुए है। पार्टी को डर है कि यदि वह तेजस्वी को चेहरा मान लेती है, तो गैर-यादव OBC और सवर्ण वोटर दूर हो सकते हैं। ऐसे में कांग्रेस बिना चेहरा एलान किए ही चुनावी रणनीति पर आगे बढ़ना चाहती है।
अब आगे क्या?
अब सवाल यह खड़ा हो रहा है कि क्या रणनीति केवल सीट बंटवारे में अधिक मोलभाव करने के लिए है, या फिर राहुल गांधी के दिमाग में कोई और चालाकी भरी योजना है? इंडिया गठबंधन में चेहरे को लेकर अब भी लुका-छिपी का खेल चल रहा है। 'वोटर अधिकार यात्रा' करने के बाद भी जब तेजस्वी के नाम पर कांग्रेस ने कोई संकेत नहीं दिया, ऐसे में तेजस्वी ने खुद ही मुख्यमंत्री उम्मीदवारी का दावा पेश कर दिया, तो अखिलेश यादव ने भी उनके चेहरे पर मुहर लगा दी।
वहीं, कांग्रेस बिहार में बिना मुख्यमंत्री चेहरे के चुनाव लड़ने की योजना बना रही है, जबकि RJD खुलकर तेजस्वी के नाम पर चुनाव लड़ने का दावा कर रही है। इसे कांग्रेस की रणनीति का महत्वपूर्ण भाग माना जा रहा है। तेजस्वी के नाम का ऐलान करके कांग्रेस गैर-यादव OBC और सवर्ण वोटों को नाराज़ नहीं करना चाहती। कांग्रेस को लगता है कि यदि तेजस्वी को चेहरा घोषित कर चुनाव लड़ते हैं, तो दलित-OBC और सवर्ण वोटर नाराज़ न हो जाएं। इसीलिए वह ऐसी दुविधा बनाये हुए है और सीएम चेहरे पर खामोशी अपनाए हुए है।
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