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क्यों BJP के लिए नीतीश को हटाना नामुमकिन? शाह से 20 मिनट की मीटिंग में ही CM पद पर हो गया फैसला
BJP-JDU Alliance: बिहार की राजनीति में बड़ा सवाल—क्यों बीजेपी नीतीश कुमार को हटाने का जोखिम नहीं ले सकती? अमित शाह और नीतीश की 20 मिनट की मुलाकात में सीएम पद पर मुहर लग गई। जानिए, कैसे नीतीश का वोट बैंक और राजनीतिक कद बीजेपी को हर बार झुकने पर मजबूर कर देता है।
BJP-JDU Alliance: दिल्ली के एक मशहूर यूट्यूबर पत्रकार, जो आमतौर पर बीजेपी विरोधी माने जाते हैं, हाल ही में पटना के एक मैदान में पुलिस भर्ती की तैयारी कर रही लगभग तीन दर्जन लड़कियों से मिले। सुदूरवर्ती इलाकों से आईं इन लड़कियों से जब वोटिंग के इरादे पूछे गए, तो लगभग सभी ने खुलकर नीतीश कुमार को वोट देने की बात कही। उन्हें केवल दो लड़कियाँ ऐसी मिलीं जो प्रशांत किशोर की जन सुराज पार्टी को आज़माना चाहती थीं, लेकिन वे भी नीतीश कुमार से प्रभावित थीं।
यह कहानी सिर्फ एक उदाहरण है, जो समझाती है कि बिहार में पिछले 20 साल से मुख्यमंत्री की कुर्सी पर नीतीश कुमार यूँ ही कब्ज़ा जमाए नहीं बैठे हैं। यूँ ही कम विधायक होते हुए भी बीजेपी हो या आरजेडी, थाली में सजाकर सीएम की कुर्सी उन्हें भेंट करने को तैयार नहीं रहती। दरअसल, नीतीश कुमार राजनीति के मंझे हुए खिलाड़ी हैं। उन्होंने बिहार में ईबीसी (EBC) वोटर्स और महिला वोटर्स का अपना इतना बड़ा और स्थायी बैंक तैयार कर रखा है कि दिल्ली में बैठे लोग इसे बिना बिहार पहुँचे समझ नहीं सकते।
अमित शाह की अचानक मुलाकात: अफवाहों पर विराम
शायद यही कारण है कि केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह शुक्रवार सुबह मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से मिलने सीधे उनके पटना स्थित आवास पहुँचे। गुरुवार को शाह ने एक प्रमुख मीडिया कार्यक्रम में यह बयान दिया था कि एनडीए के जीतने पर विधायक दल तय करेगा कि बिहार का सीएम कौन होगा। इस बयान का अर्थ निकाले जाने लगा कि बीजेपी, नीतीश को हटाना चाहती है। माहौल को भांपते हुए, शाह खुद ही सीएम के घर पहुँच गए और करीब 20 मिनट की मुलाकात कर गठबंधन में नेतृत्व पर चल रही अटकलों पर विराम लगाने की कोशिश की। यह मुलाकात एक स्पष्ट संदेश है कि बीजेपी बिहार में कोई भी जोखिम नहीं लेना चाहती।
सीट बंटवारा ही बताता है मजबूरी: 101-101 का फॉर्मूला
एनडीए का सीट बंटवारा एक स्पष्ट संदेश देता है कि जनता दल यूनाइटेड (JDU) को इग्नोर करना असंभव है। कुल 243 सीटों में बीजेपी और जेडीयू को 101-101 सीटें मिली हैं। यह समानता न सिर्फ नीतीश कुमार के नेतृत्व को मज़बूत करती है, बल्कि बीजेपी की रणनीतिक मजबूरी को भी उजागर करती है। जो लोग यह आरोप लगा रहे हैं कि एलजेपी को 29 सीटें जानबूझकर इसलिए दी गईं ताकि नीतीश कुमार को बाद में बाहर किया जा सके, उन्हें 2020 का उदाहरण याद रखना चाहिए। तब बीजेपी ने जेडीयू से 29 सीटें अधिक जीतकर भी नीतीश कुमार को सीएम बनाया था। अगर नीतीश कुमार को किनारे लगाने की मंशा होती, तो 2020 के नतीजों के आधार पर उनकी सीटें कम कर दी गईं होती। लेकिन बीजेपी ने ऐसा करने की हिम्मत नहीं दिखाई। महाराष्ट्र में एकनाथ शिंदे को कम सीटें देकर बीजेपी ने अपना बड़ा भाई वाला कद दिखाया, लेकिन बिहार में वह ऐसा नहीं कर पाई।
नीतीश: न एकनाथ शिंदे हैं, न बीजेपी के पास कोई 'फडणवीस'
नीतीश कुमार देश के एक बड़े नेता रहे हैं। उनका कुर्मी-कोइरी-EBC वोट (करीब 40%) बीजेपी के मुकाबले आज भी ज़्यादा प्रभावी है। नीतीश कुमार ने 9 बार सरकार बदली, लेकिन JDU कभी टूटा नहीं, बल्कि उनके नेतृत्व में हमेशा मज़बूत बना रहा। नीतीश कुमार किसी पार्टी को तोड़कर एनडीए में नहीं आए हैं, जैसा कि एकनाथ शिंदे के साथ हुआ। दूसरी तरफ, बीजेपी के पास देवेंद्र फडणवीस की तरह पूरे राज्य भर में मशहूर कोई लीडर नहीं है जो नीतीश का मुकाबला कर सके। सम्राट चौधरी या दिलीप जायसवाल की जनता के बीच वैसी पैठ नहीं है। सबसे महत्वपूर्ण बात, नीतीश का कद इतना बड़ा है कि यदि वे आज भी बीजेपी से छिटककर महागठबंधन का हिस्सा बनना चाहें तो वहाँ उनका स्वागत मुख्यमंत्री बनाकर ही होगा। यानी, नीतीश एनडीए में रहें या महागठबंधन में, बिहार की राजनीति के किंग वही हैं।
शाह का बयान और गठबंधन का भविष्य
16 अक्टूबर को 'पंचायत आजतक-बिहार' कार्यक्रम में अमित शाह ने कहा था कि "हम नीतीश कुमार के नेतृत्व में चुनाव लड़ रहे हैं। 2020 चुनावों के बाद भी, जब बीजेपी को ज़्यादा सीटें मिलीं, तो नीतीश को ही सीएम बनाया गया, क्योंकि गठबंधन का सम्मान ज़रूरी है। जीत के बाद सभी सहयोगी मिलकर फैसला लेंगे।" शाह के इस बयान के 'जीत के बाद सभी सहयोगी मिलकर फैसला लेंगे' वाले हिस्से को विपक्ष ने तुरंत लपक लिया था। लेकिन शाह का पटना पहुँचना और यह दोहराना कि गठबंधन का सम्मान ज़रूरी है, यही दर्शाता है कि नीतीश कुमार की उपेक्षा करना नामुमकिन है। बीजेपी यह अच्छी तरह जानती है कि चुनाव परिणाम आने के बाद नीतीश कुमार कभी भी महागठबंधन की ओर जा सकते हैं, और आरजेडी उन्हें सीएम की कुर्सी देने को तैयार भी हो जाएगी। ऐसे में, बीजेपी जबरन कोई मुसीबत मोल नहीं लेगी। इसलिए, नीतीश कुमार को बिहार का सीएम बनाए रखने में ही दोनों पार्टियों का फायदा है।
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