Mehli Mistry Exit: रतन टाटा की विरासत की रक्षा या टाटा ग्रुप में गुटबाज़ी?

Mehli Mistry Resignation: मेहली मिस्त्री के इस्तीफे ने टाटा ट्रस्ट्स की एकता, नेतृत्व और रतन टाटा की विरासत को लेकर गहरी बहस छेड़ दी है। क्या यह गुटबाज़ी का संकेत है या मूल्यों की रक्षा? कौन है रतन टाटा का बेहद खास, जिसके जाते ही इस कंपनी के भीतर मचा बवाल:

Jyotsana Singh
Published on: 5 Nov 2025 5:01 PM IST
Mehli Mistry Exit: रतन टाटा की विरासत की रक्षा या टाटा ग्रुप में गुटबाज़ी?
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Mehli Mistry exits Tata Trusts

Ratan Tata: रतन टाटा की विरासत की रक्षा या गुटबाज़ी की दरार? मेहली मिस्त्री के इस्तीफे ने खड़ा किया बड़ा सवाल

बीता अक्तूबर का महीना टाटा समूह के लिए भारी उथल-पुथल वाला रहा है। जब दुनिया भर में फैली इस विशाल इंडस्ट्री के भीतर चल रही अंतर्कलह की सुगबुगाहट खुलकर सामने आ गई। इससे पहले जहां आमतौर पर ट्रस्टियों की नियुक्ति, अन्य निर्णयों की तरह सर्वसम्मति से होती रही है। लेकिन ट्रस्टियों ने लंबे समय से सेवा कर रहे संरक्षक रतन टाटा की मौत के लगभग एक साल बाद 11 सितंबर को इस परंपरा को तोड़ दिया, जब उन्होंने बहुमत के फैसले से पूर्व रक्षा सचिव विजय सिंह को टाटा संस के बोर्ड में नामित निदेशक के रूप में हटाने के लिए मतदान किया। इस तरह घटनाओं की एक शृंखला शुरू हुई और आखिरकार ट्रस्ट के भीतर चल रहा विवाद सार्वजनिक हो गया।विवाद को देखते हुए सरकार ने टाटा समूह की विरासत की रक्षा के लिए हस्तक्षेप किया है और दोनों पक्षों को जल्द से जल्द आंतरिक कलह को सुलझाने के लिए कहा है।

वहीं टाटा ट्रस्ट में मेहली मिस्त्री के ट्रस्टी पद को लेकर चल रही अफवाहों पर तब पूर्ण विराम लग गया जब मेहली मिस्त्री ने औपचारिक रूप से टाटा समूह से अपनी विदाई की घोषणा कर दी। यह फैसला उस दिन आया जब कई रिपोर्ट्स में इस बात का दावा किया जा रहा था कि मिस्त्री महाराष्ट्र चैरिटी कमिश्नर के पास ट्रस्ट द्वारा उनकी ट्रस्टीशिप न बढ़ाने के फैसले को चुनौती देंगे। बताते चलें कि बीते दिनों टाटा ट्रस्ट्स के प्रमुख चैरिटी आर्म्स में मिस्री के रिअपॉइंटमेंट को लेकर वोटिंग हुई थी। इसमें तीन ट्रस्ट्रीज नोएल टाटा, वेणु श्रीनिवासन और विजय सिंह ने उनके री-अपॉइंटमेंट के खिलाफ वोट डाला था। मिस्त्री का कार्यकाल 28 अक्टूबर को खत्म हो रहा था। वहीं अब उन्होंने सर रतन टाटा ट्रस्ट, सर दोराबजी टाटा ट्रस्ट और बाई हीराबाई जेएन टाटा नवसारी चैरिटेबल इंस्टीट्यूशन ट्रस्ट जैसे तीन प्रमुख ट्रस्टों से ट्रस्टी पद छोड़ने का ऐलान किया है।

साइरस मिस्त्री के चचेरे भाई मेहली मिस्त्री हैं रतन टाटा के बचपन के दोस्त

मेहली मिस्त्री और रतन टाटा के बीच दोस्ती की जड़ें बेहद गहरी रहीं हैं। जिसका प्रमाण उन्होंने समय-समय पर पेश भी किया है। सन 2000 से रतन टाटा के कट्टर समर्थक, मिस्त्री ने साइरस मिस्त्री के चचेरे भाई होने के बावजूद, टाटा-मिस्त्री विवाद (साइरस मिस्त्री प्रकरण) के दौरान दिवंगत रतन टाटा का साथ देकर किया था। चेयरमैन बनने के बाद 2016 में साइरस को टाटा संस के अध्यक्ष पद से हटा दिया गया था। साइरस की बजाय रतन टाटा का समर्थन करने के मेहली के फैसले ने मिस्री परिवार के बीच पनपे विवाद को भी जगजाहिर कर दिया था। असल में मेहली और साइरस की मां दोनों ही सगी बहनें हैं। वहीं साइरस के दादा और मेहली के दादा भी दोनों ही सगे भाई थे। एक सिविल ठेकेदार और दूसरे पेंटिंग ठेकेदार थे। इन दोनों के पुत्र साइरस और मेहली इस रिश्ते में चचेरे भाई थे। इन दोनों ही परिवारों ने अपने अलग-अलग व्यवसायों में शाखाओं का विस्तार किया। शापूरजी पालोनजी समूह

मिस्त्री एम पलॉन्जी ग्रुप के प्रमोटर हैं, जिसमें इंडस्ट्रियल पेंटिंग, शिपिंग, ड्रेजिंग, कार डीलरशिप जैसे बिजनेस हैं। उनकी कंपनी स्टरलिंग मोटर्स टाटा मोटर्स की डीलर है। शापूरजी पलॉन्जी ग्रुप के पास टाटा संस में 18.37प्रतिशत हिस्सेदारी है।वहीं, टाटा ट्रस्ट्स के पास टाटा संस में 66 प्रतिशत शेयर हैं, जो भारत के सबसे प्रतिष्ठित बिजनेस समूहों में शुमार टाटा ग्रुप की 30 कंपनियों की निगरानी करता है। जिसमें एयर इंडिया, टाटा स्टील और जगुआर लैंड रोवर जैसी प्रमुख इकाइयां शामिल हैं। रतन टाटा के साथ मेहली मिस्त्री के रिश्ते की बात करें तो यह उस समय से शुरू हुआ जब टाटा उस अपार्टमेंट कॉम्प्लेक्स में रहते थे जहां मेहली का परिवार रहता था। मेहली की एक करीबी ने दोस्त ने दोनों के बीच नजदीकियों से पर्दा हटाया और बताया कि, ’मेहली की रतन टाटा से पहली मुलाकात तब हुई थी जब वह सिर्फ 10 साल के थे। दोनों बेहद गहरे दोस्त थे और उन्हें अक्सर साथ घूमते हुए देखा जाता था।

टाटा ट्रस्ट्स को विवाद से दूर रखना इस्तीफे की मुख्य वजह

मिस्त्री ने अपने लिखे पत्र में जाहिर किया कि मुंबई लौटने पर उन्हें अपनी ट्रस्टीशिप को लेकर हाल की उन खबरों की जानकारी मिली। उनका ये पत्र उन अटकलें भरी रिपोर्ट्स पर रोक लगाने में मदद करेगा, जो टाटा ट्रस्ट्स के फायदे में नहीं हैं और इसके विजन के खिलाफ हैं। उन्होंने इस पत्र में लिखा कि रतन एन टाटा के विजन के प्रति मेरे समर्पण में ये भी जिम्मेदारी निभाना शामिल है कि टाटा ट्रस्ट्स को किसी विवाद में न धकेला जाए। मेरा मानना है कि चीजों को और उलझाने से टाटा ट्रस्ट्स की साख को ऐसा नुकसान होगा जिसकी भरपाई होना नामुमकिन है।

अपने पत्र के अंत में उन्होंने रतन टाटा का एक कोट भी याद किया, ’

’नोबॉडी इज बिगर दैन द इंस्टीट्यूशन इट सर्व्स।’ यानी, कोई भी संस्था से बड़ा नहीं होता जिसकी वो सेवा करता है।

ये है मेहली मिस्त्री का टाटा ट्रस्ट्स के ट्रस्टीज को लिखा पूरा लेटर

प्रिय चेयरमैन,

ट्रस्टी के तौर पर सेवा करना मेरे लिए सौभाग्य की बात रही है। ये मौका मुझे मिला तो इसलिए क्योंकि दिवंगत श्री रतन एन टाटा ने खुद मुझे चुना था। वे मेरे सबसे करीबी दोस्त और मार्गदर्शक थे, और उन्हें पूरा भरोसा था कि मैं उनके आदर्शों के प्रति हमेशा समर्पित रहूंगा।

लेकिन मुंबई लौटने पर कल रात मुझे टाटा ट्रस्ट्स में अपनी ट्रस्टीशिप को लेकर हाल की उन खबरों का पता चला। मेरा मानना है कि ये पत्र उन अटकलें भरी खबरों पर रोक लगाने में मदद करेगा, जो टाटा ट्रस्ट्स के हितों की सेवा नहीं करतीं और इसके विजन के खिलाफ हैं। टाटा ट्रस्ट्स हमेशा से ईमानदारी और राष्ट्रसेवा के पर्याय रहे हैं। ट्रस्टी के रूप में सेवा करना मेरे लिए सम्मान की बात थी, जो मुझे श्री रतन एन टाटा ने दिया था और ये 28 अक्टूबर 2025 तक चली।

टाटा ट्रस्ट्स के प्रति अपनी जिम्मेदारियां निभाते हुए मैं उनके विजन - ईमानदार शासन चलाने, चुपचाप दान-पुण्य करने और पूरी ईमानदारी का विचार से प्रेरित रहा हूं। श्री रतन एन टाटा के विजन के प्रति मेरा समर्पण ये भी जिम्मेदारी निभाना शामिल करता है कि टाटा ट्रस्ट्स को किसी विवाद में न धकेला जाए। मेरा विश्वास है कि चीजों को और उलझाने से टाटा ट्रस्ट्स की साख को ऐसा नुकसान होगा, जो कभी ठीक नहीं हो सकेगा।

इसलिए, श्री रतन एन टाटा की भावना में जो हमेशा अपना हित सार्वजनिक हित से पहले रखते थे, मैं उम्मीद करता हूं कि आगे चलकर बाकी ट्रस्टीज के कदम पारदर्शिता, अच्छी शासन व्यवस्था और सार्वजनिक हित के सिद्धांतों से निर्देशित होंगे। मैं विदा लेते हुए वो कोट दोहरा रहा हूं जो श्री रतन एन टाटा अक्सर मुझसे कहते थे, ’कोई भी संस्था से बड़ा नहीं होता जिसकी वो सेवा करता है।’

आपका विश्वासपात्र,

मेहली के. एम. मिस्त्री

ब्रीच कैंडी हॉस्पिटल से जुड़े रहेंगे मिस्त्री

मिस्त्री अब भी टाटा एजुकेशन एंड डेवलपमेंट ट्रस्ट (TEDT) और ब्रीच कैंडी हॉस्पिटल से जुड़े रहेंगे। जहां टाटा ग्रुप ने हाल ही में सीएसआर फंड्स से 500 करोड़ डोनेट किए। रतन टाटा के निधन के बाद नोएल टाटा ने चेयरमैनशिप संभाली और तब से ट्रस्ट्स में कंसॉलिडेशन हो रहा है।

टाटा संस के बोर्ड में एक-तिहाई सदस्यों को नॉमिनेट करने का हक रखता है टाटा ट्रस्ट

टाटा ट्रस्ट्स में सर रतन टाटा ट्रस्ट समेत कुछ और ट्रस्ट्स है। ये ट्रस्ट्स टाटा संस के 66प्रतिशत शेयर कंट्रोल करते हैं। टाटा संस में TCS टाटा स्टील, टाटा मोटर्स जैसी कंपनियां है। मिस्त्री 2022 से सर दोराबजी टाटा ट्रस्ट (SDTT) और सर रतन टाटा ट्रस्ट (SRTT) के ट्रस्टी थे। ये दोनों मुख्य ट्रस्ट्स मिलकर टाटा ग्रुप की होल्डिंग कंपनी टाटा संस में 51प्रतिशत हिस्सेदारी रखते हैं। इनके पास टाटा संस के बोर्ड में एक-तिहाई सदस्यों को नॉमिनेट करने का हक है।

टाटा ट्रस्ट्स बोर्ड के भीतर दो गुटों के बीच मतभेद

टाटा ट्रस्ट्स के बोर्ड के भीतर दो गुटों के बीच मतभेद के केंद्र ने जो मुद्दा हैं, वह बोर्ड में नियुक्तियों और संचालन नीतियों को लेकर हैं। एक गुट नोएल टाटा के साथ है, जबकि दूसरा गुट मेहली मिस्त्री (जो शापूरजी पल्लोनजी परिवार से जुड़े हैं) के साथ है। यह विवाद इस बात पर भी केंद्रित है कि क्या टाटा संस को शेयर बाज़ार में सूचीबद्ध (लिस्टेड) किया जाना चाहिए, जिस पर एसपी समूह का जोर है, जबकि ट्रस्ट के कई सदस्य इसके खिलाफ हैं।

टाटा संस के बोर्ड की नियुक्तियां थीं विवाद की वजह

75 साल के नियमों का मुद्दा सबसे बड़ा शुरूआती विवाद बनकर सामने आया। जिसके अंतर्गत टाटा संस के बोर्ड में जो नॉमिनी डायरेक्टर्स 75 साल की उम्र पार कर चुके हैं। उन्हें हर साल फिर से नियुक्ति प्रक्रिया से गुजरना होगा। यह नियम कुछ वरिष्ठ सदस्यों को कंट्रोल करने के लिए लाया गया था। पिछले वर्ष अक्टूबर 2024 में नोएल टाटा को टाटा ट्रस्ट्स का चेयरमैन और टाटा संस के बोर्ड में शामिल करने का फैसला ट्रस्ट के भीतर एकमत नहीं था। इससे ट्रस्ट के भीतर सीधा बंटवारा हो गया। जिसमें दो धड़ बन गए। पहला गुट था नोएल टाटा, वेणू श्रीनिवासन और विजय सिंह (जिन्हें फिर से नियुक्त न करने का प्रस्ताव खारिज कर दिया गया)।

वहीं दूसरा गुट था मेहली मिस्त्री, डेरियस खंबाटा, जहांगीर और प्रमीत झावेरी का। टाटा संस को सूचीबद्ध करने का मुद्दा भी एक वजह बन गया। टाटा जैसी दिग्गज इंडस्ट्री के भीतर एक चिंगारी ऐसी सुलगी जिसकी कालिख साख को दागदार करने की बड़ी वजह बनीं। असल में शापूरजी पल्लोनजी समूह टाटा संस को शेयर बाज़ार में सूचीबद्ध कराना चाहता है, जिसे वे नैतिक और सामाजिक जरूरत बताते हैं। दूसरी ओर, टाटा ट्रस्ट के कई सदस्यों को डर है कि इससे उनकी निर्णय लेने की क्षमता और दृष्टि कमजोर होगी और बाहरी दबाव बढ़ेगा। टाटा ट्रस्ट्स, जो कि टाटा संस की सबसे बड़ी शेयरधारक है, इसके पास समूह के सबसे बड़े शेयर और टाटा संस के नियंत्रण की शक्ति है, जो कि टाटा कंपनियों की होल्डिंग इकाई है। टाटा ट्रस्ट्स के इस नियंत्रण को देखते हुए, मिस्त्री का इस संस्था से अलग होना, संस्थागत स्तर पर एक महत्वपूर्ण घटना मानी जा रही है।

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