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Snail Farming Business: कम लागत और ज़्यादा मुनाफा, क्या है घोंघा पालन और कैसे करें इसका बिजनेस?
Snail Farming Business: घोंघा पालन भारतीय कृषि में एक नया क्षेत्र है, जो भविष्यकाल में न केवल किसानों की आमदनी बढ़ा सकती है बल्कि इसकी बिक्री देश की अर्थव्यवस्था को भी शक्तिशाली बना सकता है।
What Is Snail Farming: भारत में पारंपरिक खेती के साथ-साथ अब लोग विकल्पी और नवीनतम कारोबार की ओर रुख कर रहे हैं। बागवानी, मशरूम उत्पादन, मुर्गी पालन, मछली पालन जैसे क्षेत्रों में तो पहले ही काफी विकास हुआ है, लेकिन अब एक नया और दिलचस्प व्यवसाय उभर रहा है घोंघा पालन (Snail Farming)। यह सुनने में अजीब लग सकता है, लेकिन विदेशों में यह पहले से ही एक मुनाफेवाला कारोबार बन चुका है और भारत में भी इसका भविष्य प्रभावी माना जा रहा है।
आइये जानते है घोंघा पालन क्या है और कैसे यह है लाभदायक!
घोंघा पालन क्या है?
घोंघा पालन जिसे पारिभाषिक शब्दावली में हेलीकल्चर कहा जाता है, एक विकासशील कृषि व्यवसाय है जिसमें खाने योग्य घोंघों का प्रजनन और पालन पेशेवर स्तर पर किया जाता है। यह प्रणाली विशेष रूप से उन घोंघों पर केंद्रित होती है जिनका उपयोग भिन्न क्षेत्रों में किया जा सकता है। जैसे कि यूरोपीय देशों में इन्हें 'एस्कर्गो' नामक व्यंजन के रूप में खाया जाता है वहीं इनके स्राव (mucus) का उपयोग सौंदर्य प्रसाधनों और औषधियों के निर्माण में भी किया जाता है। इसके अलावा घोंघा पालन से प्राप्त अवशेषों का प्रयोग जैवांश खाद के रूप में किया जा सकता है जिससे यह व्यवसाय पर्यावरण के मुनासिब भी बनता है।
घोंघा क्यों पालें?
घोंघा पालन एक ऐसा व्यापार है जिसकी अंतरराष्ट्रीय बाजार में भारी मांग है। विशेष रूप से फ्रांस, इटली, स्पेन, अमेरिका और कई अफ्रीकी देशों में इसे एक खास व्यंजन (डिलिकेसी) के रूप में बड़े चाव से खाया जाता है। यह व्यापार कम खर्च में सीमित संसाधनों के साथ आसानी से शुरू किया जा सकता है जिससे छोटे किसानों और नव-उद्यमी के लिए यह एक आकर्षक पर्याय बनता है। घोंघे का जीवनचक्र छोटा होता है और यह एक बार में सैकड़ों अंडे देता है जिससे निष्पादन तेजी से बढ़ाया जा सकता है और जल्दी नफा कमाया जा सकता है। इसके अलावा घोंघा एक बहुउपयोगी जीव है। उसका मांस खाने के लिए उपयोगी है और उसका शंख सजावटी या जैविक खाद बनाने में काम आता है और उसका स्राव सौंदर्य प्रसाधनों व दवाओं के निर्माण में कीमती सामग्री के रूप में उपयोग होता है। इस प्रकार घोंघा पालन बहुपक्षीय लाभ देने वाला व्यवसाय है।
घोंघा पालन की शुरुआत कैसे करें?
नस्ल का चयन - घोंघा पालन में सफल व्यवसाय की आधारशिला नस्ल के सही चयन पर निर्भर करती है। Helix Aspersa जिसे गार्डन स्नेल भी कहा जाता है, यूरोप में सबसे अधिक पाली जाने वाली प्रजाति है। वहीं अफ्रीका और एशिया में दो नस्लें Achatina Fulica और Archachatina Marginata अत्यधिक प्रसिद्ध हैं। Achatina Fulica आकार में बड़ी होती है, तेजी से बढ़ती है और इसकी उर्वरता भी अधिक होती है। जबकि Archachatina Marginata स्वाद में उत्कृष्ट और पोषण से भरपूर होती है जिससे यह बाजार में इसकी बिक्री उची कीमत पर होती है।
स्थान और वातावरण - घोंघों के पालन के लिए सीलनदार , छायादार और जैविक पदार्थों से समृद्ध मिट्टी सबसे उचित मानी जाती है। इनके लिए आदर्श तापमान 18°C से 25°C औरनमी का स्तर 75% से 95% के बीच होना चाहिए। ये दोनों तत्व घोंघों की वृद्धि और प्रजनन को बढ़ावा देते हैं। तेज़ रोशनी से बचाकर कम रोशनी या छायायुक्त वातावरण उपलब्ध कराना इनकी आरामदायक स्थिति के लिए आवश्यक होता है।
बनावट और इनक्लोजर - घोंघों को सुरक्षित रखने के लिए विशेष संरचनाओं का निर्माण किया जाता है। इसके लिए बांस से बने घेरे, सीमेंटेड टैंक, लकड़ी के बक्से या जालीदार क्षेत्र का उपयोग किया जा सकता है। इन संरचनाओं का मुख्य उद्देश्य घोंघों को प्राकृतिक आपदा और भागने से बचाना होता है साथ ही उनकी गतिविधियों पर नियंत्रण बनाए रखना भी जरूरी होता है।
भोजन और पोषण - घोंघे शुद्ध रूप से शाकाहारी होते हैं। उन्हें ताज़ी हरी पत्तियाँ, फल, सब्जियाँ जैसे गाजर, लौकी, पपीता, और कैल्शियम युक्त पदार्थ जैसे चूना या अंडे के छिलके देना लाभकारी होता है। कैल्शियम घोंघों के कवच को मजबूत बनाता है और उनकी सेहत के लिए आवश्यक होता है।
प्रजनन और अंडे देना - Achatina Fulica और Archachatina Marginata दोनों ही नस्लें अत्यधिक प्रजनन सामर्थ्य रखती हैं। एक वयस्क घोंघा एक बार में औसतन 80 - 100 अंडे दे सकता है और साल में कई बार अंडे देने की प्रक्रिया दोहराई जा सकती है। अंडों से बच्चे निकलने में सामान्यतः 10 से 15 दिन लगते हैं। इस दौरान तापमान और आर्द्रता का संतुलन बनाए रखना अति आवश्यक होता है ताकि अंडे सुरक्षित रूप से फूट सकें।
घोंघा पालन के प्रमुख उत्पाद और उनका उपयोग
घोंघा मांस - घोंघा मांस दुनियाभर में एक खास पदार्थ के रूप में जाना जाता है, विशेष रूप से फ्रांस में इसे ‘एस्कर्गो’ (Escargot) कहा जाता है। यह मांस लजीज होने के साथ-साथ पोषण से भी भरपूर होता है। इसमें प्रोटीन, आयरन, कैल्शियम और ओमेगा-3 फैटी एसिड की प्रचुर मात्रा होती है, जो इसे एक लाभदायक विकल्प बनाते हैं। इसकी पौष्टिकता के कारण घोंघा मांस का उपयोग लगातार बढ़ता जा रहा है।
घोंघा स्लाइम (Snail Slime) - घोंघे द्वारा स्रावित तरल जिसे स्नेल स्लाइम कहा जाता है जो आज के कॉस्मेटिक उद्योग में एक कीमती सामग्री बन चुका है। इसका उपयोग स्किन क्रीम, एंटी-एजिंग जैल, फेसवॉश और त्वचा की देखभाल संबंधी अन्य उत्पादों में किया जाता है। इसमें एलांटोइन, ग्लाइकोलिक एसिड और कोलेजन जैसे घटक होते हैं जो त्वचा की मरम्मत, चमक और नमी बनाए रखने में अत्यंत सहायक होते हैं।
घोंघा शंख (Shell) - घोंघे के सूखे हुए शंख भी व्यर्थ नहीं जाते । इनका उपयोग सजावटी वस्तुओं, बटन, आभूषणों और कुछ औषधीय उत्पादों में किया जाता है। उनके सुंदर आकार और प्रकृतिजन्य बनावट के कारण ये शंख हस्तशिल्प और घरेलू सजावट के क्षेत्र में भी खासे प्रसिद्ध लोकप्रिय हैं। इस प्रकार घोंघा एक ऐसा जीव है जिसका हर भाग किसी न किसी उद्योग के लिए उपयोगी होता है।
घोंघा पालन में आने वाली चुनौतियाँ
भारत में घोंघा पालन भले ही एक लाभदायक उद्यम के रूप में उभर रहा हो लेकिन इससे जुड़ी जागरूकता अब भी काफी सीमित है। अधिकांश लोगों को इसके संभावित मुनाफा, पालन तकनीक और बाजार से जुड़ी जानकारी नहीं है, जिससे यह व्यवसाय प्रत्याशित गति से आगे नहीं बढ़ पा रहा है। इसके अलावा भारत में स्थानीय स्तर पर घोंघा मांस या स्लाइम की मांग बहुत कम है, जिससे यह व्यवसाय मुख्य रूप से वैश्विक निर्यात पर निर्भर हो जाता है। वहीं घोंघों के पालन के लिए नियंत्रित तापमान और नमी की आवश्यकता होती है, जो भारत के सभी भू-भाग में उपलब्ध नहीं होती। इस कारण केवल कुछ ही उष्ण प्रदेशों में यह पालन सहजता से संभव है। इसके अलावा कई राज्यों में घोंघा पालन के लिए वन्य जीव संरक्षण अधिनियम या अन्य नियमों के तहत अनुमति लेना महत्वपूर्ण होता है। साथ ही खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण (FSSAI) से संबंधित लाइसेंस और रजिस्ट्रेशन भी अनिवार्य होता है, जो नए उद्यमियों के लिए एक अतिरिक्त बाधा बन सकता है।
कमाई और संभावित लाभ
घोंघा पालन एक ऐसा उद्यम है जिसे कम खर्च में शुरू किया जा सकता है और इसके फायदे की संभावनाएँ काफी अधिक हैं। आमतौर पर इस व्यवसाय की शुरुआत 30,000 से 50,000 रुपये की निवेश में की जा सकती है। जिससे यह छोटे किसानों और नए व्यापरोयों के लिए एक आकर्षक पर्याय बनता है। एक सामान्य किसान एक वर्ष में हजारों घोंघे पाल सकता है जिससे उत्पादन क्षमता काफी अधिक हो जाती है। वैश्विक बाजार में घोंघा मांस (एस्कर्गो) की कीमत 800 से 1500 रुपये प्रति किलो तक होती है। यदि कोई किसान सालभर में लगभग 1000 किलो मांस बेचने में सक्षम हो तो वह 8 से 15 लाख रुपये तक की वार्षिक आय कमा सकता है। हालांकि यह आय कई कारकों जैसे लागत, मार्केटिंग रणनीति और निर्यात से जुड़ी चुनौतियों पर आधारित होती है । इसके अलावा घोंघा स्लाइम और शंख भी आय के अन्य स्रोत बन सकते हैं जो कॉस्मेटिक और सजावटी उद्योग में उपयोग किए जाते हैं। जिससे कुल मुनाफे में और बढ़ोतरी होती है।
भारत में घोंघा पालन की संभावनाएँ
भारत में घटती कृषि भूमि और बढ़ती बेरोजगारी की पृष्ठभूमि में घोंघा पालन एक उपयोगी और लाभकारी पर्याय के रूप में उभर रहा है। यह व्यवसाय कम स्थान में भी आसानी से किया जा सकता है जिससे यह विशेष रूप से ग्रामीण युवाओं और महिलाओं के लिए आत्मनिर्भरता का सशक्त माध्यम बन सकता है। महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल, असम और तमिलनाडु जैसे राज्यों की जलवायु और नमी की योग्यता इसे अपनाने के लिए और भी अनुकूल बनाती है। विशेष रूप से पश्चिम बंगाल और असम में तो पारंपरिक रूप से घोंघा खाने की संस्कृति भी मौजूद है, जिससे वहां स्थानीय बाजार भी उपलब्ध है। सरकार और कृषि विश्वविद्यालयों की भूमिका भी इस दिशा में धीरे-धीरे सक्रिय होती जा रही है। भारत सरकार और राज्य सरकारें सूक्ष्म व्यवसाय, नवाचार और अन्य कृषि व्यवसायों को प्रोत्साहित करने के लिए विभिन्न प्रशिक्षण और अनुदान योजनाएं चला रही हैं। हालांकि घोंघा पालन के लिए विशेष योजनाएं सीमित हैं फिर भी इसे कृषि आधारित स्टार्टअप्स, महिला उद्यमिता और ग्रामीण विकास कार्यक्रमों के अंतर्गत शामिल कर नई उम्मीद को जन्म दिया जा सकता है।
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