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History Of Sambar Dal: कभी सोचा है आपकी थाली में परोसा सांभर पहली बार कब आया, बड़ा रोचक है इसका इतिहास
History Of Sambar Dal: इस लेख में हम सांभर की उत्पत्ति, ऐतिहासिक पृष्ठभूमि, नामकरण, क्षेत्रीय विविधता, और इसके सांस्कृतिक महत्व की विस्तार से चर्चा करेंगे।
History Of Sambar Dal
History Of Sambar: भारतीय व्यंजन विश्वभर में अपने विविध स्वादों और समृद्ध इतिहास के लिए प्रसिद्ध हैं। दाल, सब्जियाँ, मसाले और विशेष पकवान न केवल हमारे भोजन को स्वादिष्ट बनाते हैं बल्कि वे हमारे इतिहास, परंपराओं और सांस्कृतिक धरोहर के भी प्रतीक होते हैं। ऐसा ही एक व्यंजन है 'सांभर' - दक्षिण भारत की रसोई का प्रमुख हिस्सा जिसे आज पूरे भारत में बड़े चाव से खाया जाता है। पर क्या आप जानते हैं कि इस स्वादिष्ट व्यंजन का इतिहास भी उतना ही रोचक और गूढ़ है जितना इसका स्वाद?
सांभर क्या है?
सांभर दक्षिण भारत की एक प्रमुख और लोकप्रिय व्यंजन है, जो अपने विशिष्ट तीखे, खट्टे और हल्के मीठे स्वाद के लिए जानी जाती है। यह एक दाल आधारित ग्रेवी होती है जिसे मुख्य रूप से तुअर दाल (अरहर दाल) से तैयार किया जाता है। हालांकि कुछ क्षेत्रों में मूंग दाल या तुअर-मूंग के मिश्रण का भी प्रयोग होता है। सांभर में इमली का रस उसकी खटास के लिए डाला जाता है, जबकि ड्रमस्टिक, भिंडी, लौकी, गाजर, बैंगन, टमाटर और कद्दू जैसी कई सब्ज़ियाँ इसे पौष्टिक और स्वादिष्ट बनाती हैं। इसका खास स्वाद ‘सांभर पाउडर’ से आता है जिसमें धनिया, मेथी, सौंफ, लाल मिर्च आदि मसाले मिलाए जाते हैं। यह व्यंजन आमतौर पर इडली, डोसा, वड़ा या चावल के साथ परोसा जाता है और दक्षिण भारतीय भोजन का एक अनिवार्य हिस्सा माना जाता है।
सांभर के जन्म की रोचक कहानी
सांभर की उत्पत्ति को लेकर कई कहानियाँ प्रचलित हैं, लेकिन सबसे लोकप्रिय और पुष्ट कथा तंजावुर के मराठा शासनकाल से जुड़ी है। 17वीं शताब्दी में तंजावुर पर शाहूजी महाराज का शासन था, जो छत्रपति शिवाजी के सौतेले भाई व्यंकोजी के पुत्र थे। कहा जाता है कि एक दिन उन्होंने पारंपरिक ‘मोर कोझंबू’ (दही आधारित ग्रेवी) बनाते समय दही की जगह इमली का उपयोग किया और उपलब्ध सब्ज़ियों के साथ एक नया व्यंजन तैयार किया। यह व्यंजन उन्होंने अपने चचेरे भाई छत्रपति संभाजी महाराज को परोसने के लिए बनाया था, जिन्हें इसका स्वाद बेहद पसंद आया। इस नए व्यंजन को 'संभाजी आहार' कहा गया जो समय के साथ 'सांभर' के नाम से जाना जाने लगा। कई प्रसिद्ध खाद्य इतिहासकार जैसे के.टी. अचाया और पुष्पेश पंत इस कथा की पुष्टि करते हैं। हालांकि कुछ विद्वान जैसे डॉ. चिन्मय दामले इस कहानी की ऐतिहासिकता पर सवाल उठाते हैं, क्योंकि शाहूजी द्वारा लिखित ग्रंथों में कहीं भी 'सांभर' शब्द का स्पष्ट उल्लेख नहीं मिलता। इसके अतिरिक्त कुछ शोधकर्ता यह भी मानते हैं कि 'सांभर' शब्द की जड़ें 'सांभरू' (एक प्रकार का मसाला) से जुड़ी हो सकती हैं। बावजूद इसके तंजावुर की यह कहानी सांभर की उत्पत्ति की सबसे प्रसिद्ध और व्यापक रूप से स्वीकृत व्याख्या मानी जाती है।
दक्षिण भारत में विकास
समय के साथ सांभर दक्षिण भारत के चारों प्रमुख राज्यों तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक और केरल की रसोइयों में एक जरूरी और प्रिय व्यंजन बन गया। हालांकि इसका मूल तंजावुर में माना जाता है लेकिन जैसे-जैसे यह व्यंजन विभिन्न क्षेत्रों में फैला, वैसे-वैसे इसकी रचना और स्वाद में भी स्थानीय विशेषताएँ जुड़ती चली गईं। हर राज्य ने अपने-अपने पारंपरिक मसालों, उपलब्ध सब्ज़ियों और स्वाद के अनुसार सांभर को ढाल लिया। सांभर ने न केवल दक्षिण भारत की सांस्कृतिक विविधता को अपने भीतर समेटा है बल्कि इसे एकजुट भी किया है।
सांभर का ऐतिहासिक और भौगोलिक विकास
तमिलनाडु का सांभर - तमिलनाडु में सांभर को खास तरीके से तैयार किया जाता है जहाँ मसालों को ताजा पीसकर उपयोग में लाया जाता है। इसमें इमली का प्रयोग न तो अधिक होता है और न ही कम, बल्कि ऐसा संतुलन होता है जो इसके स्वाद को विशेष बनाता है। यह सांभर खट्टा और मसालेदार होता है लेकिन खटास और मसालों का संतुलन इसे एक अनूठा और संतुलित स्वाद प्रदान करता है।
कर्नाटक का सांभर (हुग्गी सांभर) - कर्नाटक में सांभर को प्रायः 'हुग्गी' के नाम से भी जाना जाता है। इस क्षेत्र की विशेषता यह है कि यहाँ सांभर में गुड़ (जग्गरी) मिलाया जाता है, जो इसे हल्की मिठास प्रदान करता है। यह मिठास कर्नाटक के सांभर को अन्य राज्यों से अलग बनाती है और इसके स्वाद में एक खास गहराई जोड़ती है।
केरल का सांभर - केरल का सांभर अपनी विशिष्टता के लिए जाना जाता है क्योंकि इसमें नारियल का इस्तेमाल आम है। कहीं-कहीं पर इसमें भुना हुआ नारियल भी डाला जाता है। जो न केवल स्वाद को समृद्ध बनाता है बल्कि इसकी खुशबू को भी और अधिक आकर्षक करता है। नारियल की उपस्थिति के कारण केरल का सांभर एक अलग पहचान रखता है।
आंध्र प्रदेश का सांभर - आंध्र प्रदेश का सांभर तीखेपन के लिए प्रसिद्ध है। यहाँ लाल मिर्च और अन्य मसालों का भरपूर प्रयोग किया जाता है, जिससे इसका स्वाद तीखा, गर्म और बेहद मसालेदार बनता है। यह स्वाद उन लोगों को खास पसंद आता है जो तीखे व्यंजन पसंद करते हैं और आंध्र की मसालेदार भोजन परंपरा को भी दर्शाता है।
सांभर पाउडर - सांभर पाउडर के स्वाद की आत्मा
सांभर का असली स्वाद और खुशबू जिस चीज़ से आती है, वह है सांभर पाउडर। यह एक खास मसाला मिश्रण होता है जो इस व्यंजन को उसकी विशिष्ट पहचान और गहराई देता है। पारंपरिक रूप से इसमें धनिया, मेथी, सूखी लाल मिर्च, राई, हींग, कड़ी पत्ता, हल्दी और कभी-कभी नारियल (सूखा या भुना हुआ) शामिल होते हैं। खासकर नारियल सांभर पाउडर को एक अलग ही खुशबू और स्वाद प्रदान करता है जबकि हींग और कड़ी पत्ता इसके स्वाद को और अधिक समृद्ध बनाते हैं। दिलचस्प बात यह है कि हर घर में सांभर पाउडर की रचना थोड़ी अलग होती है । मसालों की मात्रा, उनके भूनने का तरीका और मिश्रण की विधि जो हर रसोई में बनाए जाने वाले सांभर को एक खास, घरेलू स्वाद देता है।
सांभर और आयुर्वेद
सांभर न केवल एक स्वादिष्ट व्यंजन है बल्कि यह आयुर्वेदिक दृष्टि से भी एक आदर्श और संतुलित आहार माना जाता है। इसमें प्रयुक्त अरहर की दाल (तुअर दाल) प्रोटीन का उत्तम स्रोत होती है, जो शरीर की मांसपेशियों के निर्माण और मरम्मत में सहायक होती है। इमली जो इसमें खटास के लिए डाली जाती है, पाचन शक्ति को सक्रिय करती है और आयुर्वेद में अग्नि बढ़ाने वाली मानी जाती है। इसमें मिलाई जाने वाली विभिन्न सब्जियाँ जैसे गाजर, लौकी, भिंडी आदि फाइबर और विटामिन्स से भरपूर होती हैं। जो शरीर में संतुलन बनाए रखने में मदद करती हैं। वहीं हल्दी, राई, हींग, कड़ी पत्ता जैसे मसाले शरीर को ऊष्मा और ऊर्जा प्रदान करते हैं और वात-पित्त दोषों को संतुलित करते हैं। इस प्रकार सांभर को एक ऐसा व्यंजन कहा जा सकता है जो स्वाद के साथ-साथ स्वास्थ्य के लिए भी अत्यंत लाभकारी है।
सांभर की सांस्कृतिक पहचान
भारत में भोजन केवल पेट भरने का माध्यम नहीं बल्कि गहरी सामाजिक और सांस्कृतिक जड़ें रखने वाला तत्व है। सांभर इसका एक जीवंत उदाहरण है, जो अब केवल एक दक्षिण भारतीय व्यंजन नहीं बल्कि वहां की सांस्कृतिक पहचान बन चुका है। तमिलनाडु, कर्नाटक, केरल और आंध्र प्रदेश में सांभर न केवल रोज़ाना के भोजन का हिस्सा है बल्कि मंदिरों में भगवान को चढ़ाए जाने वाले भोग, पारंपरिक शादियों और त्योहारों का भी अभिन्न अंग है। इन आयोजनों में चावल के साथ परोसा जाने वाला सांभर न केवल स्वाद बल्कि परंपरा से भी जुड़ा होता है। समय के साथ इसकी लोकप्रियता सीमाओं को पार कर उत्तर भारत, महाराष्ट्र और बंगाल जैसे राज्यों में भी पहुंची है जहाँ ‘इडली-सांभर’ जैसे व्यंजन रोज़मर्रा की थाली का हिस्सा बन चुके हैं। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी विशेषकर अमेरिका, यूरोप, ऑस्ट्रेलिया और मध्य पूर्व के देशों में दक्षिण भारतीय रेस्टोरेंट्स के ज़रिए सांभर ने वैश्विक पहचान बना ली है। इस तरह सांभर एक ऐसा व्यंजन बन गया है जो स्वाद, परंपरा और सांस्कृतिक गर्व तीनों का प्रतिनिधित्व करता है।
सांभर के साथ जुड़ी कुछ दिलचस्प बातें
सांभर न केवल स्वाद में समृद्ध है बल्कि पोषण के दृष्टिकोण से भी इसे एक बेहतरीन विकल्प माना जाता है। खासतौर पर जब इसे इडली के साथ परोसा जाता है, तो यह एक संतुलित और सुपाच्य 'पॉवर ब्रेकफास्ट' बन जाता है। जिसमें कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, विटामिन्स और फाइबर का संतुलन होता है। यह हल्का और स्वास्थ्यवर्धक नाश्ता बच्चों से लेकर बुजुर्गों तक सभी के लिए उपयुक्त होता है। पारंपरिक रूप से सांभर पूर्णतः शाकाहारी होता है और इसमें डेयरी उत्पादों का प्रयोग नहीं किया जाता जिससे यह वेज और वेगन दोनों तरह के आहार के अनुकूल बन जाता है। हालांकि कुछ रेसिपियों में तड़के के लिए घी या तेल का प्रयोग होता है लेकिन यह अनिवार्य नहीं है। सांभर के नामकरण को लेकर भी इतिहास में दिलचस्प चर्चाएँ रही हैं। कुछ विद्वान मानते हैं कि इसका नाम तमिल शब्द ' चंपारम' से निकला है, जो दाल-आधारित व्यंजन को दर्शाता है और समय के साथ इसका उच्चारण 'सांभर' में बदल गया। वहीं एक अन्य प्रचलित कथा इसे मराठा राजघराने और संभाजी महाराज से जोड़ती है। इन विविध दृष्टिकोणों के बावजूद सांभर एक ऐसा व्यंजन बन चुका है जो स्वाद, पोषण और सांस्कृतिक विरासत तीनों का प्रतीक है।
सांभर बनाम अन्य दाल व्यंजन
भारत में दाल आधारित कई व्यंजन हैं । जैसे उत्तर भारत में दालों की कई लोकप्रिय किस्में हैं - जैसे राजमा, जो पंजाब, उत्तर प्रदेश और हिमाचल प्रदेश में बड़े चाव से खाया जाता है। इसी तरह दाल तड़का भी एक प्रमुख व्यंजन है। जिसमें तड़के के ज़रिए दाल को मसालेदार और स्वादिष्ट बनाया जाता है। राजस्थान में खट्टी दाल का चलन है जिसमें खटास के लिए इमली या टमाटर का इस्तेमाल होता है। इन सभी के बीच सांभर एक बिल्कुल अलग पहचान रखता है। यह दक्षिण भारत की खास दाल आधारित ग्रेवी है जिसमें इमली अनेक प्रकार की सब्जियाँ और विशिष्ट मसालों से बना सांभर पाउडर मिलाया जाता है। यही सामग्री इसे न केवल अलग स्वाद और सुगंध देती है बल्कि इसे दक्षिण भारतीय भोजन का एक विशिष्ट और अपरिहार्य हिस्सा भी बनाती है।
सांभर का वैश्विक सफर
आज जब भारतीय प्रवासी विश्व के हर कोने में बसे हैं तो सांभर भी उनके साथ हर जगह पहुँचा है। अमेरिका, कनाडा, यूके, सिंगापुर जैसे देशों में कई भारतीय रेस्तरां सांभर परोसते हैं और यहां तक कि ‘इंस्टेंट सांभर मिक्स’ भी बाजार में उपलब्ध है।
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