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ट्रंप का टैरिफ तूफान: भारत के टेक्सटाइल, ज्वेलरी, ऑटो सेक्टर पर भारी असर
US Tariff Triggers Industry Pivot : ज्वेलरी उद्योग पर अमेरिका की मार 83000 करोड़ के निर्यात को खतरा अब नया रास्ता खोजने की कोशिश
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा भारतीय निर्यात पर शुल्क दर को दोगुना कर 50% तक पहुंचाने के निर्णय ने भारत के प्रमुख निर्यात क्षेत्रों में गहरी चिंता पैदा कर दी है। यह नया शुल्क 27 अगस्त से प्रभाव में आने वाला है और ट्रंप द्वारा पहले दिए गए उस चेतावनी के बाद सामने आया है, जिसमें भारत को रूस से जारी तेल आयात को लेकर सचेत किया गया था।
इस निर्णय का सीधा प्रभाव भारत के समुद्री खाद्य पदार्थ, वस्त्र, रत्न एवं आभूषण और ऑटो पार्ट्स जैसे प्रमुख निर्यात क्षेत्रों पर पड़ने की आशंका है। माना जा रहा है कि यह कदम भारत के रूस से तेल खरीद को लेकर अमेरिका की प्रतिक्रिया स्वरूप उठाया गया है।
समुद्री उत्पाद: झींगा किसानों के लिए दोहरी मार
भारत से समुद्री खाद्य उत्पादों का निर्यात करीब ₹60,000 करोड़ सालाना है, जिसमें अमेरिका की हिस्सेदारी लगभग 40% है। खासतौर पर झींगा जो इस कारोबार की रीढ़ है सबसे पहले इस झटके की चपेट में आएगा।
झींगा किसानों का कहना है कि पहले से तैयार माल का निर्यात अब घाटे का सौदा बनता जा रहा है। अमेरिकी खरीदारों के हिचकिचाने से स्टॉक जमा हो रहा है, और किसानों ने अगली बुवाई रोक दी है। यह ऐसी स्थिति है जहां माल तैयार है लेकिन कोई खरीददार नहीं।
वस्त्र और परिधान: बंद होते ऑर्डर, थमता उत्पादन
भारत के परिधान उद्योग के केंद्र तिरुपुर, नोएडा, सूरत अमेरिकी बाजार पर काफी हद तक निर्भर हैं। लेकिन अब टैरिफ बढ़ने से इन शहरों की यूनिट्स के लिए प्रतिस्पर्धी दरों पर माल भेजना कठिन होता जा रहा है।
कई अमेरिकी कंपनियां अब वियतनाम और बांग्लादेश की ओर झुक रही हैं, जहां लागत कम है और टैक्स में छूट भी मिलती है। इससे भारत की हिस्सेदारी में और गिरावट की संभावना है।
रत्न और आभूषण: कारोबार की दिशा बदलने की कवायद
अमेरिका द्वारा भारतीय रत्न और आभूषण पर 50% टैरिफ लगाने के फैसले ने उद्योग में हड़कंप मचा दिया है। वित्त वर्ष 2024-25 में अमेरिका को ₹83,000 करोड़ के हीरे और स्टडेड ज्वेलरी का निर्यात हुआ था। अब यह व्यापार गंभीर संकट में है। जेम एंड ज्वेलरी एक्सपोर्ट प्रमोशन काउंसिल के चेयरमैन किरीट भंसाली ने इसे "डूम्सडे" बताया और कहा कि अब उद्योग को दुबई और मैक्सिको जैसे विकल्पों की ओर देखना होगा। उन्होंने बताया कि दुबई में यूनिट लगाकर, और जरूरत पड़ी तो मैक्सिको के ज़रिए उत्पादों को अमेरिका भेजा जाएगा - पूरी तरह कानूनी तरीके से।
इसी बीच, टाइटन कंपनी भी मिडिल ईस्ट में मैन्युफैक्चरिंग शिफ्ट करने पर विचार कर रही है ताकि अमेरिका में कम टैरिफ का लाभ उठाया जा सके। अमेरिका भारत का सबसे बड़ा ज्वेलरी बाजार है और इस शुल्क से आपूर्ति श्रृंखला व लाभ पर बड़ा असर पड़ेगा।
ऑटो पार्ट्स: छोटे कारोबारियों की चिंता गहराई
भारत हर साल अमेरिका को करीब ₹61,000 करोड़ के ऑटो कलपुर्जे भेजता है। टैरिफ बढ़ने से इस कारोबार पर सीधा असर पड़ेगा, खासकर उन यूनिट्स पर जो सीमित संसाधनों के साथ चलती हैं।
बड़ी कंपनियों के लिए भले ही यह एक अस्थायी झटका हो, लेकिन छोटी यूनिट्स के लिए यह संकट बन सकता है-माल महंगा पड़ेगा, ऑर्डर घटेंगे और रोज़गार पर असर पडे़गा।
रोज़गार और निवेश: थम सकते हैं विस्तार के पहिए
चमड़ा, वस्त्र, फुटवियर, गहनों जैसे सेक्टर पहले ही श्रम-प्रधान हैं और अब टैरिफ की मार से नई नौकरियों की संभावना और भी कमजोर हो गई है। जो कंपनियां विस्तार की योजनाएं बना रही थीं, वे अब ब्रेक लगाने को मजबूर हैं।
विशेषज्ञों का मानना है कि यह झटका सिर्फ तात्कालिक नहीं होगा। आने वाले महीनों में निवेश में सुस्ती, उत्पादन में कटौती और मांग में गिरावट जैसी समस्याएं सामने आ सकती हैं।
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