Goa Digital Democracy Dialogue: सुनील आंबेकर का संदेश, न थके, न रुके न झुके

देश के प्रत्येक जिले में बनेगी सोशल मीडिया इन्फ्लूएंशर्स की सूची

Newstrack Desk
Published on: 26 Sept 2025 10:24 PM IST
Digital Democracy Dialogue
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Goa Digital Democracy Dialogue ( image from Social Media)

Goa Digital Democracy Dialogue: न थके, न रुके, न झुकें। आप जीवन में कुछ भी करते हैं तो उसका रिस्पॉन्स अवश्य मिलता है। कुछ प्रोत्साहित करने वाला होगा, कुछ हतोत्साहित करने वाला होगा। इसके कारण घबराना नहीं है। हर प्लेटफॉर्म के अच्छे और बुरे , दोनों प्रकार के परिणाम होते ही हैं। हमें केवल अपने लक्ष्य के लिए इसका उपयोग करना है। सोशल मीडिया के समूह हम प्रत्येक जिले में सूचीबद्ध कर रहे हैं। सभी का उपयोग होना चाहिए। राष्ट्र की उन्नति और अपने राष्ट्रोन्मुखी कॉन्टेंट से विश्व को परिचित कराने का यह सशक्त माध्यम है।

ये विचार हैं राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख श्री सुनील आंबेकर जी के। श्री आंबेकर गोवा में तीन दिनों से चल रहे राम भाऊ म्हालगी प्रबोधिनी के डिजिटल डेमोक्रेसी डायलॉग के समापन समारोह को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि महाभारत के यक्ष के प्रश्न से बहुत ठीक से सीखा जा सकता है। यक्ष पूछता है, कथम राष्ट्रम मृते भवेत् ? उत्तर आता है, मृतम राष्ट्रं अराजकं।। अर्थात राष्ट्र वह जीवित है जिसे कोई अराजक न कर सके। भारत सकारात्मक चिंतन का देश है। आदिकाल से यह देश अत्यंत संघर्ष और कठिन से कठिन स्थिति में भी सकारात्मक रहा है। मुगलों के आक्रमण और अंग्रेजी पराधीनता से 1947 में मुक्ति के बाद हमारे लोग स्वयं पर भरोसा ही नहीं कर पा रहे थे। अब भारत ऐसी स्थिति में है कि भारतीय जन को अपने पर बहुत भरोसा है। लोगों का विश्वास सुदृढ़ हुआ है। लोग अब आश्वस्त हो गए हैं कि हमारे पास भी पोटेंशियल है। हम सब कुछ हासिल कर सकते हैं।


उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की 100 वर्षों की यात्रा इस बात का सा से बड़ा प्रमाण है। संघ के आरम्भ के दिनों में भी संभवतः बहुत लोगों को ऐसा भरोसा नहीं रहा होगा। हमारे यहां धर्म शब्द को लेकर भी बहुत भ्रम फैलाया गया। स्वामी विवेकानंद जी ने उस दौर में धर्म की व्याख्या कर बहुत कुछ संप्रेषित किया। अब उसका प्रभाव यह है कि नए भारत की नई पीढ़ी का आकर्षण बढ़ा है। तीर्थों, मंदिरों और कुंभ जैसे आयोजनों में युवाओं की भागीदारी स्वयं इसे प्रमाणित कर रही है।

श्री आंबेकर ने कहा कि वर्ष 1998 में जब भारत ने परमाणु परीक्षण किया उस दिन हम एक गांव में थे। हमें इसकी सूचना चार दिनों के बाद मिली। आज ऐसा नहीं है। अब हर सूचना, क्षण भर में भारत के कोने कोने में पहुंचती है। हमने वे सभी संसाधन विकसित कर लिए हैं। शिक्षा, चिकित्सा, कनेक्टिविटी, संचार, संप्रेषण, कृषि से लेकर मनोरंजन, लोक विधाओं, नृत्य, संगीत, अपने विचार आदि को विश्व के हर हिस्से तक प्रसारित करने की हमारी शक्ति है।

उन्होंने कहा कि राष्ट्र वह आगे जाता है जिसके लोगों की सोच वृहद हो। राष्ट्र और उसकी अस्मिता बहुत प्राचीन है। शब्दों से बनी अस्मिताएं बिल्कुल नई हैं। राष्ट्र के आम आदमी विश्वास से आगे बढ़ रहा है। उसका चरित्र और उसकी आस्था से राष्ट्र आगे बढ़ रहा है। विश्वास, आस्था और चरित्र के समन्वय से ही राष्ट्र विकसित स्वरूप में निर्मित होगा। इसे सभी को एक साथ मिल कर करना है। दुनिया हमारी इसी शक्ति से हमे स्वीकार करेगी।

इस आयोजन के शिल्पी पूर्व राज्यसभा सदस्य डॉ विनय सहस्त्रबुद्धे ने आयोजन की आवश्यकता और इसकी उपलब्धियों पर चर्चा करते हुए कहा कि कॉन्टेंट क्रिएटर्स का दायित्व है कि वे अपने कार्य में , सृजन में राष्ट्र के मूल्यों और चरित्र को अवश्य अपने ध्यान में रखें। उदाहरण स्वरूप उन्होंने स्टैंडअप कॉमेडी की चर्चा करते हुए कहा कि वे वास्तविक चरित्र , आस्था और मूल्यों पर चोट कर के कंटेंट बना रहे हैं, यह अच्छा नहीं है। डॉ सहस्त्रबुद्धे ने क्रिएटर्स का आह्वान किया कि वे नए भारत और इसके प्राचीन चरित्र और मूल्यों से कॉन्टेंट तैयार कर विकसित भारत की प्रधानमंत्री की कल्पना को साकार करें। समारोह के सूत्रधार स्वरूप श्री नैतिक मुले ने सभी के प्रति आभार व्यक्त किया।इस आयोजन के कल्पनाकार डॉ विनय सहस्त्रबुद्धे जी के साथ नैतिक मुले, मृगांक त्रिपाठी, रुचा लिमए, अनिरुद्ध, हेरंब, जाह्नवी, प्रत्यूष फ़नीश, स्वामी शायते, उत्कर्ष बंसल, विभोर पांडे, प्रणय कुलकर्णी और इनकी प्रबुद्ध टीम ने इस आयोजन को साकार करने में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नए भारत की सोच को साकार करने के लिए जिन विविध आयामों पर ध्यान देना है, उन सभी पर यहां तीन दिनों तक भारत गंभीर विमर्श चल रहा था।

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