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बिहार रचेगा इतिहास! देश में पहली बार मोबाइल से होगी वोटिंग, मचा सियासी भूचाल

Bihar Politics: बिहार राज्य निर्वाचन आयोग के मुताबिक, ई-वोटिंग की यह पहल नगरपालिका आम व उपचुनावों के लिए की जा रही है। यानी मतदाता अब एक ऐप के ज़रिए घर बैठे, विदेश में बैठे या अपने गांव से ही उम्मीदवार चुन सकेंगे।

Harsh Srivastava
Published on: 27 Jun 2025 7:05 PM IST
बिहार रचेगा इतिहास! देश में पहली बार मोबाइल से होगी वोटिंग, मचा सियासी भूचाल
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Bihar Politics: बिहार की राजनीति एक बार फिर देश भर की सुर्खियों में है लेकिन इस बार किसी घोटाले, घपले या नेता की जुबानी जंग के लिए नहीं, बल्कि एक ऐसी डिजिटल क्रांति के लिए जो न सिर्फ भारत के चुनावी इतिहास में पहली बार होने जा रही है, बल्कि भविष्य की राजनीति की दिशा भी तय कर सकती है। लेकिन जिस प्रयोग को चुनाव आयोग ‘गौरव’ के रूप में पेश कर रहा है, वही अब सामाजिक बहिष्कार और तकनीकी भेदभाव के नए आरोपों में घिरता दिख रहा है। 28 जून 2025 यह तारीख अब इतिहास में दर्ज होने जा रही है। क्योंकि इसी दिन बिहार देश का पहला राज्य बन जाएगा जहां मतदाता अपने मोबाइल से वोट डाल सकेंगे। सुनने में जितना ‘आधुनिक’ और ‘स्मार्ट’ लगता है, ज़मीनी हकीकत उतनी ही धुंधली और खतरनाक दिख रही है।

डिजिटल क्रांति या लोकतंत्र का विभाजन?

बिहार राज्य निर्वाचन आयोग के मुताबिक, ई-वोटिंग की यह पहल नगरपालिका आम व उपचुनावों के लिए की जा रही है। यानी मतदाता अब एक ऐप के ज़रिए घर बैठे, विदेश में बैठे या अपने गांव से ही उम्मीदवार चुन सकेंगे। इसके लिए SECBHR और SECBIHAR नाम के मोबाइल ऐप्स बनाए गए हैं, जो रजिस्टर्ड मोबाइल नंबर पर ही काम करेंगे। 51,155 मतदाताओं ने इस प्रणाली में रजिस्ट्रेशन कराया है। इनमें से एक बड़ा वर्ग उन प्रवासी मज़दूरों, बुज़ुर्गों, गर्भवती महिलाओं और दिव्यांगों का है, जिनके लिए पारंपरिक बूथों तक जाना संभव नहीं। लेकिन सवाल अब यह उठने लगा है—क्या यह सुविधा सबके लिए समान रूप से उपलब्ध है? या फिर ये भी एक नया ‘डिजिटल वोट बैंक’ तैयार करने की साजिश है?

स्मार्टफोन वालों की वोटिंग, बाकी का लोकतांत्रिक बहिष्कार?

गांव-देहात में काम कर रहीं रिंकू देवी जैसी पूर्व वार्ड पार्षद कहती हैं, "हमारे पास तो छोटा मोबाइल है, हम ऐप डाउनलोड भी नहीं कर सकते। ये योजना हमारे लिए नहीं बनी है।" बक्सर, सारण, रोहतास और गया जैसे जिलों से मिल रहे फीडबैक यही बता रहे हैं कि वहां महिलाएं और बुज़ुर्ग अब खुद को ‘वोट के अधिकार से बाहर’ मानने लगे हैं। सामाजिक कार्यकर्ता शाहिना परवीन और कई एनजीओ ने चेताया है कि डिजिटल साक्षरता की कमी, स्मार्टफोन की अनुपलब्धता, और नेटवर्क बाधाओं के कारण ई-वोटिंग एक बड़े वर्ग को चुपचाप बाहर करने का औजार बन सकती है। बिहार की टेली डेनसिटी अभी भी मात्र 57.23% है, जबकि राष्ट्रीय औसत 85.04% है। इंटरनेट डेनसिटी की बात करें तो बिहार मात्र 42.1% पर अटका है। यानी बाकी आधी आबादी अब भी डिजिटल दुनिया से कटे हुए हैं।

‘वोट ऐप’ या ‘वोट ट्रैप’? क्या तकनीक की आड़ में हो रहा है आंकड़ों का खेल?

एक बड़ा सवाल यह भी उठ रहा है कि यदि मतदान मोबाइल ऐप्स के ज़रिए होगा, तो डेटा की गोपनीयता, ऐप की सुरक्षा और वोट की वैधता कैसे सुनिश्चित होगी? क्या ग़लत जगह से वोट न डाला जाए, इसकी तकनीकी गारंटी है? क्या ग्रामीण क्षेत्र में एक ही मोबाइल नंबर से दो वोट डालने की अनुमति से फर्जीवाड़े की संभावना नहीं बढ़ेगी? निर्वाचन आयुक्त दीपक प्रसाद कहते हैं कि “केवल रजिस्टर्ड मोबाइल नंबर से ही वोट डाले जा सकते हैं।” लेकिन जानकारों का मानना है कि रजिस्ट्रेशन प्रक्रिया में भी आधार, OTP और तकनीकी जाल के कारण गरीब और अशिक्षित वर्ग पिछड़ गया है।

क्या वाकई यह ‘मतदान प्रतिशत’ बढ़ाने की कोशिश है?

चुनाव आयोग का दावा है कि ये पहल मतदान प्रतिशत बढ़ाने की कोशिश है, खासकर उन प्रवासी मज़दूरों के लिए जो अब तक वोटिंग में हिस्सा नहीं ले पाते थे। लेकिन आंकड़े बताते हैं कि ई-वोटिंग के लिए सिर्फ 51 हजार मतदाताओं ने रजिस्ट्रेशन कराया, जबकि इन जिलों में लाखों मतदाता हैं। क्या यह सच्चाई नहीं बताती कि ज्यादातर लोगों तक ये सूचना नहीं पहुंची या वे तकनीकी रूप से खुद को अक्षम मानते हैं? क्या ई-वोटिंग सिर्फ शहरी, स्मार्टफोन-धारी और इंटरनेट-यूज़र वर्ग के लिए एक विशेषाधिकार बन गई है?

दुबई और कतर में बैठे लोग वोट देंगे, लेकिन गांव की रिंकू देवी नहीं?

एक तरफ चुनाव आयोग यह बताने में गर्व महसूस कर रहा है कि दुबई और कतर में बैठे प्रवासी भारतीय अब वोटिंग कर पाएंगे, लेकिन दूसरी तरफ बिहार के ही सिवान, बांका या रोहतास की महिलाएं कह रही हैं—“हमें इस ऐप का कुछ नहीं पता।” तो क्या यह डिजिटल लोकतंत्र एक नया डिजिटल भेदभाव बनता जा रहा है?

तकनीक से बदलेंगे चुनाव या टूटेगा भरोसा?

इस प्रयोग के पीछे मंशा भले ही अच्छी हो, लेकिन ज़मीनी सच्चाई और सामाजिक असर को देखकर यह कहना मुश्किल नहीं कि ई-वोटिंग फिलहाल शहरी सपना और ग्रामीण दुख का मेल बन गया है। अगर यह प्रयोग सफल नहीं हुआ और लाखों लोग सिर्फ इसलिए वोट नहीं डाल पाए कि उनके पास स्मार्टफोन या इंटरनेट नहीं था, तो सवाल सिर्फ आयोग पर नहीं—पूरे लोकतंत्र की वैधता पर उठेगा। बिहार देश को दिखाना चाहता था डिजिटल क्रांति, लेकिन कहीं ये क्रांति वोट के अधिकार की कब्रगाह न बन जाए!

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News Coordinator and News Writer

Harsh Shrivastava is an enthusiastic journalist who has been actively writing content for the past one year. He has a special interest in crime, politics and entertainment news. With his deep understanding and research approach, he strives to uncover ground realities and deliver accurate information to readers. His articles reflect objectivity and factual analysis, which make him a credible journalist.

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