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कम उम्र में तेजी से बढ़ रहा अंधेपन का खतरा! विशेषज्ञों ने बताया कॉर्नियल ब्लाइंडनेस का असली कारण
Corneal Blindness In Youth: अब देशभर में आंखों की रोशनी सिर्फ बुजुर्गों की नहीं, बल्कि युवाओं की भी सबसे बड़ी चिंता बनती जा रही है। हर साल तकरीबन 20,000 से 25,000 नए मामले तेजी से सामने आ रहे हैं, जिनमें बड़ी संख्या युवाओं की है।
Corneal Blindness In Youth (photo credit: social media)
Corneal Blindness In Youth: अब देशभर में आंखों की रोशनी सिर्फ बुजुर्गों की नहीं, बल्कि युवाओं की भी सबसे बड़ी चिंता बनती जा रही है। 'कॉर्नियल ब्लाइंडनेस' (Corneal blindness) यानी आंख की पुतली से जुड़ा अंधापन, जो पहले सिर्फ बढ़ती उम्र की समस्या मानी जाती थी, अब 30 साल से कम उम्र के युवाओं में खतरनाक रफ्तार से बढ़ रहा है।
हाल ही में नई दिल्ली में आयोजित इंडियन सोसाइटी ऑफ कॉर्निया एंड केराटो-रिफ्रैक्टिव सर्जन्स (ISCKRS) सम्मेलन 2025 में इस समस्या को लेकर गंभीर चेतावनी दी गई। देशभर के नेत्र विशेषज्ञों ने बताया कि हर साल तकरीबन 20,000 से 25,000 नए मामले तेजी से सामने आ रहे हैं, जिनमें बड़ी संख्या युवाओं की है।
क्या है कॉर्नियल ब्लाइंडनेस?
कॉर्निया, यानी आंख का एक पारदर्शी हिस्सा होता है। चोट, संक्रमण, जलन या पोषण की कमी के कारण से यह हिस्सा खराब हो जाता है, और वक़्त रहते इलाज न मिलने पर इंसान की पूरी दृष्टि जा सकती है। विशेषज्ञों का कहना है कि भारत में अंधेपन के कई मामले ऐसे होते हैं जिन्हें वक्त रहते रोका जा सकता है।
युवाओं में क्यों बढ़ रही है ये समस्या?
- स्क्रीन टाइम में इजाफा: मोबाइल, लैपटॉप और टीवी के लंबे इस्तेमाल से आंखों पर ज़ोर बढ़ रहा है।
- सेफ्टी गियर की कमी: खेतों और फैक्ट्रियों में काम करने वाले युवा आंखों की सुरक्षा को लेकर लापरवाह हैं।
- घरेलू इलाज पर निर्भरता: चोट या संक्रमण के बाद डॉक्टर की जगह घरेलू नुस्खों पर भरोसा बढ़ रहा है।
- विटामिन A की कमी: बच्चों और किशोरों में यह आज भी बड़ी समस्या है।
क्या कह रहे हैं विशेषज्ञ?
एम्स दिल्ली के प्रोफेसर के मुताबिक, भारत में हर साल 1 लाख कॉर्नियल ट्रांसप्लांट की आवश्यकता होती है, लेकिन केवल 40,000 ही हो पाते हैं। डोनर की कमी, प्रशिक्षित सर्जन की कमी और नेत्र बैंकों की अपर्याप्तता इस स्थिति को और बिगाड़ रही है। इसके अलावा, सर गंगा राम अस्पताल और दिल्ली की वरिष्ठ नेत्र रोग विशेषज्ञ के मुताबिक, साल 2025 में भी हज़ारों युवा आंखों की रोशनी नहीं बच पा रहे हैं, जबकि यह पूरी तरह से रोकी जा सकने वाली स्थिति है।
क्या समाधान सुझाए गए?
- आने वाले 5 सालों में 1,000 नए कॉर्निया विशेषज्ञ डॉक्टर तैयार करने का प्रस्ताव।
- 50 से 100 नए नेत्र बैंक देश के अलग-अलग हिस्सों में स्थापित करने की आवश्यकता।
- टेलीमेडिसिन और मोबाइल आई क्लीनिक के माध्यम से गांवों तक पहुंच बनाने की सिफारिश।
- स्कूलों में नियमित नेत्र जांच को अनिवार्य बनाने का सुझाव।
- नेत्रदान को बढ़ावा देने के लिए जन-जागरूकता अभियान।
आंखों को बचाने के लिए क्या करें?
1. आंखों में चोट, जलन या लालिमा को कभी अनदेखा न करें।
2. समय पर नेत्र विशेषज्ञ से जांच कराएं।
3. पोषणयुक्त आहार लें, विशेषकर विटामिन A युक्त खाद्य पदार्थ।
4. स्क्रीन टाइम सीमित करें और 20-20-20 नियम अपनाएं (हर 20 मिनट पर 20 सेकंड के लिए 20 फीट दूर देखें)।
5. सेफ्टी गियर का इस्तेमाल करें और नेत्रदान के लिए आगे आएं।
बता दे, भारत के युवाओं में तेजी से फैल रही कॉर्नियल ब्लाइंडनेस एक साइलेंट हेल्थ क्राइसिस बनती जा रही है। लेकिन जागरूकता, समय पर इलाज और नेत्रदान से इसे रोका जा सकता है। यदि आप चाहते हैं कि देश का कोई युवा अपनी रोशनी न गंवाए, तो यह जानकारी अधिक से अधिक लोगों तक जरूर पहुंचाएं।
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