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50th Anniversary of Emergency: जब लोकतंत्र पर पड़ गया था ताला, अटल, आडवाणी, जार्ज सरीखे नेता पहुंच गए थे जेल

50th Anniversary of Emergency: भारत में लगे आपातकाल को आज 50 साल पूरे हो गए हैं। यह वो दौर था जब लोकतंत्र पर पहरा बिठा दिया गया, प्रेस की आज़ादी छिनी गई और लाखों लोगों को बिना कारण जेलों में डाल दिया गया।

Ramkrishna Vajpei
Published on: 25 Jun 2025 10:42 AM IST
50th Anniversary of Emergency
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50th Anniversary of Emergency

50th Anniversary of Emergency: आज से ठीक 50 साल पहले, 25 जून 1975 की रात को भारत के लोकतांत्रिक इतिहास में एक ऐसा मोड़ आया जिसने देश को झकझोर कर रख दिया। तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी द्वारा लगाए गए आपातकाल (Emergency) ने न केवल नागरिकों के मौलिक अधिकारों को कुचला, बल्कि प्रेस की स्वतंत्रता और न्यायपालिका की स्वतंत्रता पर भी गंभीर प्रश्नचिह्न लगा दिए। यह आपातकाल लगभग 21 महीने चला और 21 मार्च 1977 को समाप्त हुआ।

क्या थे आपातकाल के हालात?

1975 में देश में राजनीतिक अस्थिरता चरम पर थी। महंगाई, बेरोजगारी, भ्रष्टाचार और प्रशासनिक ढिलाई को लेकर जनता में भारी असंतोष था। इस बीच लोकनायक जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व में चले संपूर्ण क्रांति आंदोलन ने सरकार को सीधी चुनौती दी।

इसी दौरान 12 जून 1975 को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने इंदिरा गांधी के 1971 के चुनाव को चुनावी भ्रष्टाचार के चलते अमान्य करार दिया और उन्हें छह साल के लिए चुनाव लड़ने से अयोग्य घोषित कर दिया। फैसले के बाद उनके प्रधानमंत्री बने रहने को लेकर संकट गहरा गया।

कैसे लगा आपातकाल?

इस फैसले के ठीक 13 दिन बाद, इंदिरा गांधी ने राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद से अनुच्छेद 352 के तहत देश में आंतरिक आपातकाल लगाने की सिफारिश की, जिसे रातों-रात मंज़ूरी दे दी गई। देश को बताया गया कि यह कदम "आंतरिक गड़बड़ी" को नियंत्रित करने के लिए उठाया गया है।

क्या-क्या हुआ आपातकाल में?

अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर ताला: प्रेस पर कड़ा नियंत्रण लगाया गया। समाचार पत्रों को प्रकाशित होने से पहले सरकारी अनुमति लेनी पड़ती थी। कई अखबारों की बिजली और टेलीफोन काट दिए गए।

विरोध की कोई जगह नहीं: लाखों लोगों को बिना वारंट मीसा (Maintenance of Internal Security Act) जैसे काले कानूनों के तहत जेलों में ठूंस दिया गया।

जेपी, अटल बिहारी वाजपेयी, लालकृष्ण आडवाणी, जॉर्ज फर्नांडिस जैसे नेताओं को महीनों जेल में रखा गया।

जबरन नसबंदी और बस्तियों का ध्वस्तीकरण: इंदिरा गांधी के बेटे संजय गांधी के नेतृत्व में चलाए गए नसबंदी अभियान में लाखों पुरुषों की जबरन नसबंदी की गई। साथ ही, दिल्ली और अन्य शहरों में झुग्गी-झोपड़ियों को बिना पुनर्वास के उजाड़ दिया गया।

संविधान में बड़े बदलाव: 42वां संविधान संशोधन लाकर केंद्र सरकार ने संसद और प्रधानमंत्री की शक्तियों को और अधिक मजबूत कर दिया।

आपातकाल का अंत और जनादेश

जनता के बढ़ते असंतोष और अंतरराष्ट्रीय आलोचना के बीच जनवरी 1977 में लोकसभा चुनावों की घोषणा की गई। मार्च में हुए चुनावों में कांग्रेस को करारी हार का सामना करना पड़ा और जनता पार्टी की सरकार सत्ता में आई।

21 मार्च 1977 को औपचारिक रूप से आपातकाल समाप्त किया गया।

क्या कहता है इतिहास?

आपातकाल समर्थकों की दलील है कि इससे "व्यवस्था" और "अनुशासन" बना, लेकिन इसके खतरनाक परिणामों को नकारा नहीं जा सकता। यह एक ऐसा दौर था जब भारतीय लोकतंत्र लगभग मृतप्राय हो गया था।

वर्तमान परिप्रेक्ष्य में

आज जब भारत लोकतंत्र का 75वां दशक देख रहा है, आपातकाल की यह 50वीं वर्षगांठ हमें याद दिलाती है कि लोकतंत्र केवल चुनाव नहीं, बल्कि स्वतंत्रता, अधिकार और उत्तरदायित्वों का समुच्चय है।

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Gausiya Bano

Gausiya Bano

Content Writer

मैं गौसिया बानो आज से न्यूजट्रैक में कार्यरत हूं। माखनलाल चतुर्वेदी यूनिवर्सिटी से पोस्ट ग्रेजुएट हूं। पत्रकारिता में 2.5 साल का अनुभव है। इससे पहले दैनिक भास्कर, न्यूजबाइट्स और राजस्थान पत्रिका में काम कर चुकी हूँ।

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