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Bulandshahr News: राष्ट्रवादी राजनीतिक बंदियों ने झेली थी यातनाएं, मानवाधिकारों का हुआ था हनन!
Bulandshahr News: 25 जून 1975 को लगा आपातकाल भारतीय लोकतंत्र के इतिहास में काला दिन था, जब नागरिक अधिकारों को छीन लिया गया और हजारों नेताओं को जेल में डाला गया।
Bulandshahr News: 25 जून 1975 देश के लोकतंत्र के लिए सदैव काला दिवस के रूप में याद आता रहेगा। इस दिन देश की प्रधानमन्त्री इन्दिरा गांधी का लोक सभा चुनाव भ्रष्ट आचरण के कारण उच्च न्यायालय इलाहाबाद द्वारा निरस्त कर दिया गया था। प्रधान मंत्री पद बचाने के लिए उन्होने देश में 25 जून 1975 रात्री 12.00 बजे से आपात काल की घोषणा कर दी थी। घोषणा के बाद देश में राजनैतिक एवं सामाजिक नेताओं एवं कार्यकर्ताओं का उत्पीडन शुरू हो गया। देश के कोने कोने से प्रमुख सामाजिक, राजनैतिक नेताओं एवं कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार कर लिया गया।
आपातकाल में मीडिया पर लगी थी सेंसरशिप
आपातकाल का दंश झेल चुके आरएसएस कार्यकर्ता रहे पूर्व प्राचार्य नरेश चंद गुप्ता ने उस समय की यादें ताजा करते हुए बताया किआपात काल ऐसा समय था जहाँ भारतीय नागरिको को मूलमूत अधिकारों से वंचित कर दिया गया। उनके अधिकारों का हनन किया गया। मीडिया पर सेन्शर शिप / प्रतिबन्ध लगा दिया गया। ब्रिटिश शासन से ज्यादा जुल्म आपात काल में राजनैतिक एवं सामाजिक कार्यकर्ताओं पर किए गए ।
गुलावठी के 10 लोगों को आपातकाल में बनाया गया था राजनीतिक बंदी
आपातकाल के दौरान 26 जून 1975 को गुलावठी नगर के भी प्रमुख राजनैतिक एवं सामाजिक कार्यकर्ताओं को बिना कारण गिरफ्तार कर लिया गया। उस समय आरएसएस के वरिष्ठ नेता रहे रघुवीर शरण, चुन्नी लाल सर्राफ, विश्व बन्धु गुप्ता के साथ सतीश कुमार उपाध्याय, नरेश चन्द्र गुप्त, नन्द किशोर, दुर्गा प्रसाद छज्जूपुर वाले, सुरेश चंद गुप्ता कल्लूमल किताब वाले, मूलचन्द गुप्ता, कृष्ण वर्मा आदि को गिरफ्तार कर यातनायें दी गई।
भाई की शादी में शामिल होने को नहीं मिली थी पैरोल
नरेश चंद गुप्ता ने बताया कि 18 जनवरी 1976 को छोटे भाई मूलचंद गुप्ता की शादी थी, मुझे शादी में आने के लिए पैरोल नही मिला, भाई की शादी में शामिल नहीं हो सका।
आपातकाल काल काट बने लोकतंत्र रक्षक सैनानी
उन्होंने बताया कि लगभग 22 महीने आपात काल लागू रहा। इस आपातकाल खण्ड में सरकार की तरफ से राजनैतिक बन्दियों को उस समय दी गई यातनाओ का स्मरण कर सिहर उठते है। राजनीतिक बंदी इन्द्रा गांधी के दमन के सामने झुके नही, माफी नहीं मांगी, बल्कि मजबूती के साथ अपने सिद्धातों पर डटे रहे। देश के नेताओ के साहस एवं एक जुटता का परिणाम रहा कि मार्च 1977 को हुये लोक सभा चुनावों में इन्द्रा गांधी की भारी पराजय हुई। देश में सशक्त लोकतांत्रिक सरकार का गठन हुआ। और आपातकाल के राजनीतिक बंदियों को रिहा कर इन्हें लोकतंत्र रक्षक सेनानी के सम्मान से विभूषित किया गया।
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