Meerut News: आपातकाल की काल कोठरी में लिखी गई लोकतंत्र की मशाल: पूर्व सांसद राजेंद्र अग्रवाल की पीलीभीत जेल डायरी

Meerut News: 25 जून को आपात काल की बरसी पर मेरठ के पूर्व सांसद राजेंद्र अग्रवाल की काल कोठरी में लोकतंत्र की मशाल: पीलीभीत जेल में रची गई कविता

Sushil Kumar
Published on: 24 Jun 2025 7:11 PM IST
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Meerut News (Social Media image)  

Meerut News: "कदम बढ़ा है, नहीं रुकेंगे..." यह कोई नारा भर नहीं, बल्कि आपातकाल की काली रात में लिखी गई वह आग उगलती कविता है, जिसे पीलीभीत जेल की दीवारों के बीच लिखा था मेरठ के पूर्व सांसद राजेंद्र अग्रवाल ने। 25 जून 1975 की आधी रात देश में इमरजेंसी लागू हुई तो लोकतंत्र का दम घोंट दिया गया। विपक्ष के नेताओं को जेलों में ठूंस दिया गया। उस वक्त राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रचारक के रूप में पीलीभीत में कार्यरत राजेंद्र अग्रवाल को 28 जुलाई 1975 को भारी पुलिस बल की मदद से गिरफ़्तार किया गया और DIR (डिफेंस ऑफ इंडिया रूल्स) के तहत पीलीभीत जेल भेज दिया गया।

जेल में आंदोलन तेज हुआ, सत्याग्रह हुए। पुलिस ने जनसंघ, संघ और ABVP के कार्यकर्ताओं को लाठियों से पीट-पीटकर जेलों में डाला। जब राजेंद्र अग्रवाल को 23 नवंबर 1976 को DIR से दोषमुक्त कर रिहा किया गया, तो जेल की ड्योढ़ी पर ही MISA (मेंटेनेंस ऑफ इंटरनल सिक्योरिटी एक्ट) में दोबारा बंदी बना लिया गया। इसके बाद उन्हें बरेली सेंट्रल जेल भेजा गया और कुल मिलाकर 21 महीने जेल में बिताने पड़े।

जेल में बिताए इन महीनों में भी उनके हौसले टूटे नहीं। 8 फरवरी 1976 को पीलीभीत जेल में उन्होंने एक कविता लिखी, जो आज भी आपातकाल की यातना और लोकतंत्र के लिए अडिग संकल्प की गवाही देती है—

"कदम बढ़ा है, नहीं रुकेंगे,

मंज़िल तक अविराम चलेंगे,
चाहे जैसी बाधा आएं, काँटों में भी सदा बढ़ेंगे..."

कविता में सरकार की दमनकारी नीतियों पर खुला प्रहार है—

"तुम मीसा का भय दिखलाते,

घुड़की देकर हमें डराते,
हम बोलें, तुम जीभ पकड़ते,
स्वतंत्रता की हत्या करते..."

पूर्व सांसद अग्रवाल कहते हैं कि यह कविता उनके जीवन के सबसे कठिन लेकिन सबसे प्रेरणादायक समय की उपज है। उनका मानना है कि लोकतंत्र की कीमत बलिदान से तय होती है और आज की पीढ़ी को यह जानना जरूरी है कि आज़ादी की सांस कितनी तकलीफों से हासिल की गई है।

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