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जेल जाते समय भी 'शाही' अंदाज! न हथकड़ी, न माथे पर सिकन... ऐसे हुई अनंत सिंह की गिरफ्तारी, देखें Viral Video
Anant Singh Viral Video: बिहार के विवादित नेता अनंत सिंह की गिरफ्तारी पर सवाल उठ रहे हैं। उनके खिलाफ कई गंभीर अपराध के मामले हैं, फिर भी उन्हें बिना हथकड़ी के और सुरक्षा के साथ गिरफ्तार किया गया। क्या बिहार में 'डबल स्टैंडर्ड' खत्म होगा? जानिए अनंत सिंह की गिरफ्तारी के राजनीतिक और कानूनी पहलुओं के बारे में।
Anant Singh Viral Video: बिहार की राजनीति में अपराध और सत्ता का कॉकटेल कोई नई बात नहीं है, लेकिन मोकामा के पूर्व विधायक अनंत सिंह की हालिया गिरफ्तारी ने एक बार फिर इस कड़वी सच्चाई को उजागर कर दिया है। दुलारचंद यादव हत्याकांड के आरोप में 14 दिनों की न्यायिक हिरासत में भेजे गए अनंत सिंह के लिए, जेल जाना एक कानूनी कार्रवाई से ज्यादा, उनके बाहुबल का प्रदर्शन बन गया है।
अपराधी नहीं, 'हीरो' हैं अनंत सिंह?
1 नवंबर की देर रात बाढ़ के कारगिल मार्केट स्थित आवास से पुलिस ने अनंत सिंह को गिरफ्तार किया। 2 नवंबर को जब उन्हें पटना कोर्ट ले जाया गया, तो नजारा चौंकाने वाला था। पुलिस की कड़ी निगरानी के बावजूद, उनके समर्थक उमड़ पड़े। कोई सेल्फी लेने को ललायित था, तो कोई मुस्कुराते हुए अपने 'छोटे सरकार' को विदाई दे रहा था। बिना हथकड़ी के जेल जाते एक अपराधी की यह 'सेलिब्रिटी-स्टाइल' विदाई, बिहार के दोहरे मापदंड को दर्शाती है। अनंत सिंह का आपराधिक इतिहास बेहद भयावह है: 54 से अधिक FIR, 7 हत्या और 11 हत्या की कोशिशों के मामले दर्ज हैं। फिर भी, वे लगातार जमानत पर बाहर घूमते रहे, चुनाव लड़ते रहे और JDU जैसी पार्टियों से टिकट पाते रहे। राजनीति में उनका 'डर' ही उनका सबसे बड़ा हथियार रहा है।
मामले की खामियां:
गिरफ्तारी के बावजूद, कई सवाल खड़े होते हैं। पुलिस ने उन्हें हथकड़ी क्यों नहीं लगाई? उनके आवास की तलाशी क्यों नहीं ली गई? दुलारचंद यादव की पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट में हेराफेरी के आरोप क्यों लगे? इन सबने गिरफ्तारी को एक 'रस्म अदायगी' बना दिया है। अनंत सिंह के वकील इसे 'राजनीतिक साजिश' करार दे रहे हैं। यह माना जा रहा है कि उन्हें जल्द ही जमानत मिल जाएगी, और जेल से बाहर आकर वे अपने भूमिहार बहुल इलाके में 'शहीद' का तमगा पाकर और बड़े 'हीरो' बन जाएंगे, जिससे उन्हें सहानुभूति वोट का फायदा होगा।
गरीब के लिए अभिशाप, बाहुबली के लिए राजपथ
यह विरोधाभास तब और तीखा हो जाता है जब हम एक साधारण आदमी की तुलना अनंत सिंह से करते हैं। अगर किसी गरीब परिवार का व्यक्ति किसी छोटे-मोटे अपराध या फंसावट में जेल जाता है, तो उसका पूरा खानदान समाज में सिर झुकाकर घूमता है। नौकरी-धंधा चौपट हो जाता है, और जेली का ठप्पा उसकी जिंदगी भर की पहचान बन जाता है।
लेकिन बाहुबली के लिए, जेल 'राजनीतिक संरक्षण, पैसा और फौज' की शक्ति का केंद्र बन जाता है। अनंत सिंह का परिवार 1990 से मोकामा पर कब्जा जमाए हुए है। भाई-भाभी विधायक रहे, और अब पत्नी नीलम देवी सीट संभालती हैं। वे अपराधी नहीं, बल्कि 'राजा' की तरह पेश आते हैं। दुलारचंद यादव हत्याकांड में, मृतक के पोते ने सीधे आरोप लगाया कि "गोली अनंत ने चलाई।" लेकिन यह गिरफ्तारी न्याय की गारंटी नहीं देती, क्योंकि बिहार में अक्सर न्याय कोर्ट के बाहर ही बिक जाता है।
लोकतंत्र पर सवाल
कांग्रेस नेता पवन खेड़ा ने सही कहा कि "पहले भी जमानत हुई, ये तो शो है।" ते। प्रशांत किशोर की जनसुराज पार्टी द्वारा जातीय समीकरण बिगाड़ने की कोशिशों के बीच, यह गिरफ्तारी उल्टा अनंत सिंह को फायदा पहुँचा सकती है। बिहार चुनाव 2025 से पहले यह सवाल एक बार फिर गूंजेगा: क्या अपराधी को टिकट देकर हम लोकतंत्र को मजबूत कर रहे हैं? अगर राज्य सरकार सुशासन का दावा करती है, तो बाहुबलियों को जेल में सड़ने दिया जाना चाहिए, न कि उन्हें सेल्फी लूटने की इजाजत दी जानी चाहिए। जब तक यह 'डबल स्टैंडर्ड' खत्म नहीं होता, बिहार में आम आदमी के लिए इंसाफ एक दूर का सपना ही रहेगा।
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