Bihar Chunav 2025 Update: बिहार में भाजपा को जातीय काकटेल पर ही भरोसा

Bihar Election 2025 Update: बिहार बीजेपी की मौजूदा रणनीति का केंद्र यही है कि वह अपनी पारंपरिक ‘फ़ॉरवर्ड’ पकड़ (ब्राह्मण-राजपूत-भूमिहार-कायस्थ) को बचाए रखते हुए...

Yogesh Mishra
Published on: 16 Oct 2025 4:44 PM IST
Bihar Assembly Election 2025 Update BJP Strategy Nitish Kumar Leadership and Caste Equation
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Bihar Assembly Election 2025 Update BJP Strategy Nitish Kumar Leadership and Caste Equation

Bihar Assembly Election 2025 Update: बिहार बीजेपी की मौजूदा रणनीति का केंद्र यही है कि वह अपनी पारंपरिक ‘फ़ॉरवर्ड’ पकड़ (ब्राह्मण-राजपूत-भूमिहार-कायस्थ) को बचाए रखते हुए ओबीसी-ईबीसी की नई परतें जोड़े और एक ऐसा नेतृत्व मंडल पेश करे जो सीएम-फ़ेस न सही, पर सामाजिक समीकरणों का बैलेंस बन सके। इसी कारण पार्टी ने संगठन और सरकार दोनों में सम्राट चौधरी और विजय कुमार सिन्हा को डिप्टी सीएम बनाकर आगे रखा।

सम्राट चौधरी कुशवाहा, कोयरी सामाजिक आधार वाले नेता हैं। 2023 में राज्याध्यक्ष बनाए गए थे। विश्लेषकों की राय थी कि बीजेपी इस नियुक्ति के ज़रिये यादवों के बाद सबसे बड़े ओबीसी समूह में पांव और मज़बूत करना चाहती है। आज वे डिप्टी सीएम हैं। 2025 के चुनाव में सीधे मैदान में हैं।


राज्य स्तर पर इनकी स्वीकार्यता की परीक्षा आज तक नहीं हो सकी है।ये मूलरूप से भाजपाई भी नहीं हैं। आरजेडी व जेडीयू से भी सियासी पारी खेल चुके हैं। यह संकेत है कि पार्टी नॉन-यादव ओबीसी स्पेस पर उतना ही ज़ोर दे रही है जितना वह फ़ॉरवर्ड कास्ट बेल्ट में देती आई है।

दूसरी ओर लखीसराय के लोकप्रिय नेता विजय कुमार सिन्हा भूमिहार समुदाय से आते हैं। वे 2020–22 में स्पीकर, 2024 से डिप्टी सीएम और अब कृषि व सड़क जैसे डिलीवरी देने वाले मंत्रालयों के फ्रंट-लाइन फ़ेस हैं। लेकिन लखीसराय केंद्रित छवि है। सीएम स्केल की मास अपील सीमित हैं। कोयरी और भूमिहार का यह संयोजन बीजेपी के ‘डबल-इंजन’ संदेश के भीतर जातीय बैलेंस का राजनीतिक रूप है।


बीजेपी ने अपने यादव गैप को भरने के लिए नित्यानंद राय को लगातार प्रमोट रखा। वे 2014 और 2019 में उजियारपुर से जीते। केंद्र में गृह राज्य मंत्री बने रहे। राय यादव समुदाय से आते हैं। जो पारंपरिक रूप से आरजेडी का सामाजिक गढ़ माना जाता है। पार्टी की अपेक्षा रहती है कि राय जैसे चेहरे से यादव वोट में प्रतीकात्मक ही सही, कुछ सेंध लगे। दूसरी तरफ़ ईबीसी-ओबीसी ब्लॉक्स का गठजोड़ बनता रहे। पर यादव वोट का भारी हिस्सा अब भी आरजेडी-पक्ष में ही है। इनकी कमज़ोरी यह है कि ब्रैंड-बिल्डिंग में लगातार धक्का चाहिए।

संगठनात्मक संदेश देने के लिए 2024 में बीजेपी ने राज्याध्यक्ष भी बदला। वैश्य समाज के डॉ. दिलीप जायसवाल को सम्राट की जगह प्रदेश अध्यक्ष बनाया। दिलीप सीमांचल में संगठन के दिग्गज माने जाते हैं। इन बदलावों का एक स्पष्ट उद्देश्य है—सिर्फ़ फ़ॉरवर्ड-केंद्रित छवि से आगे निकलना और सामाजिक समावेशन का संदेश देना है।


‘दिल्ली-फेस’ और ‘पटना-फेस’ की खाई पाटने के लिए पार्टी अपने राष्ट्रीय चेहरों को भी बिहार-कथा में पिरोती है। कायस्थ समाज के रवि शंकर प्रसाद (कायस्थ), पटना साहिब से 2019 और 2024 में जीते। पूर्व क़ानून व आईटी मंत्री भी रहे। उनकी पकड़ शहरी-मध्यमवर्गीय मतदाताओं और कायस्थ नेटवर्क में मज़बूत मानी जाती है।

सीनियर नेता हैं। स्टेट्समैन अपील है। कमज़ोरी यह है कि ग्रामीण-युवा-नौकरी विमर्श में सीमित आकर्षण।

भूमिहार समाज के गिरिराज सिंह नवादा से 2014 और बेगूसराय से 2019-24 से जीत कर लोकसभा पहुँचे। वह अपने हार्डलाइन संदेश और तेज़ भाषणों के लिए जाने जाते हैं। वे लगातार संगठन को ढिलाई से सावधान भी करते रहते हैं। पोलराइजिंग बयान और कभी-कभार संगठनात्मक लाइन पर सार्वजनिक टोका-टाकी इनके रास्ते के अवरोध हैं।


2014 में गिरिराज सिंह के घर में नकदी चोरी व बरामदगी जैसा विवाद मीडिया में गरम रहा। राजनीतिक चश्मे से इसे ‘प्रोब-डिमांड’ की लाइन में विपक्ष ने घेरा, पर अदालती रूप में यह भ्रष्टाचार अथवा दोषसिद्धि में नहीं बदला।

ब्राह्मण समाज के अश्विनी चौबे बक्सर के दिग्गज नेता हैं। ये केंद्र में मंत्री भी रहे हैं।ब्राह्मण समाज के मंगल पांडेय संगठन से उठे नेता है। 2017–22 और 2024 में चुनाव जीते। वर्तमान में स्वास्थ्य मंत्री हैं। पांडेय की प्रशासनिक साख में 2025 में आयुष्मान-क्लेम्स एंटी-फ्रॉड डैशबोर्ड जैसी पहलें पॉज़िटिव अंक जोड़ती हैं। कमज़ोरी यह कि मंगल पांडेय पर प्रशांत किशोर ने एम्बुलेंस प्रोक्योरमेंट संबंधी भ्रष्टाचार के मामले में इनका नाम उछाला है।पर मंत्री का स्पष्ट खंडन है कि “पेमेंट ही नहीं हुए, मामला कोर्ट में”; “25 लाख” वाली रकम को पारिवारिक उधार की वापसी बताया। विपक्षी हमला बनाए हुए हैं। यह आरोप-बनाम-रिबटल की ओपन केस-फ़ाइल है, निष्कर्ष अदालत या जांच से तय होगा। ईबीसी यानी नोनियाँ समाज की रेणु देवी को बिहार में भाजपा कोटे से 2020–22 के बीच डिप्टी सीएम बनने का अवसर भी मिला। इनका आधार बेतिया तक ही सीमित हैं।

कॉमनवेल्थ गोल्ड मेडलिस्ट श्रेयसी सिंह भूमिहार समाज से आती हैं। 2020 से जमुई की विधायक हैं। वह युवा, महिला, खेल वाला फ़ैक्टर जोड़ती हैं। कमज़ोरी यह है कि इन्हें डिलीवरी का स्केल अभी बनना है। यह पैनल बताता है कि बीजेपी ने ‘राजनीतिक सामाजिकता’ जिसमें भूमिहार, ब्राह्मण, कायस्थ, ओबीसी, ईबीसी , महिला व युवा का कॉकटेल बनाया है। पर ‘सीएम-फेस’ का सवाल आते ही पार्टी का ग्राफ़ अब भी नीतीश-निर्भर दिखता है।

अब सवाल यह कि बीजेपी को हर बार नीतीश के सहारे की ज़रूरत क्यों?

इसका पहला, सीधा उत्तर है अंकगणित। 2024 के लोकसभा में बिहार में एनडीए की बड़ी जीत में बीजेपी की 17 में से 12 जीती सीटें आती हैं। पर उतनी ही यानी बारह सीटें जेडीयू ने भी जीतीं। एलजेपी ने 5 और हम ने 1 सीट जीत कर दिल्ली में एनडीए की सरकार को बल दे रखा है। कहा जा सकता है कि बिहार की पूर्ण तस्वीर में सत्ता-मार्ग ‘सहयोगी–निर्भर’ है। इसीलिए जेडीयू बिना, बीजेपी का ‘टॉप-अप’ अधूरा पड़ता है।

दूसरा, सीएम-फेस डेफ़िसिट: 2010–20 में ‘नीतीश+बीजेपी’ ब्रांड एक साथ बेचा गया। सुषील मोदी जैसे ‘एंकर’ अब नहीं रहे। उनका निधन हो गया। और नई पीढ़ी सम्राट चौधरी और विजय सिन्हा अभी राज्यव्यापी स्वीकार्यता के टेस्ट में है।

तीसरा, जातीय रसायन: जेडीयू का ईबीसी-कुर्मी-महिला लाभ, बीजेपी की फ़ॉरवर्ड-अर्बन मज़बूती से ढलकता है। दोनों के साथ रहने पर ‘ओवरलैप कमी’ और ‘रीच व्यापक’ रहती है।

चौथा, फ़ॉल्ट-लाइंस: 2025 की दहलीज़ पर भी बिहार बीजेपी में अंदरूनी असहमति यानी पीढ़ीगत तनाव की रिपोर्टें आती रही हैं। ऐसे में नीतीश के साथ लड़ना पार्टी के लिए रिस्क-मिनिमाइज़ेशन है।

पांचवां, कैंडिडेट-मैन्युफैक्चरिंग: पार्टी ने 2025 के लिए पहली सूची में 71 नाम उतारते हुए 11 सिटिंग एमएलए ड्रॉप किए और लगभग आधी उम्मीदवारी ओबीसी-ईबीसी-एससी/एसटी ब्लॉक्स से देकर साफ़ किया कि सोशल-इंजीनियरिंग से ही एनडीए का कुल-योग बेहतर होगा। यह फ़ॉर्मूला भी नीतीश-संग अधिक विश्वसनीय बिकता है।

कुल मिलाकर, बिहार में बीजेपी का ‘लीडरशिप-बनाम-अंकगणित’सद्वंद्व अभी जारी है। पार्टी के पास सम्राट चौधरी (ओबीसी-कोयरी), विजय सिन्हा (भूमिहार), नित्यानंद राय (यादव), रविशंकर प्रसाद (कायस्थ), अश्विनी चौबे/मंगल पांडेय (ब्राह्मण), रेणु देवी (ईबीसी-महिला), श्रेयसी सिंह (युवा-महिला-स्पोर्ट्स) जैसे विविध चेहरों का एक कोएलिशन-स्क्वाड है। यह स्क्वाड सामाजिक मानचित्र पर पार्टी की पहुँच बढ़ाता है, मगर मुख्यमंत्रीय चुंबक की जगह अभी भी नीतीश-फैक्टर ही भरता है। 2025 की पहली उम्मीदवार सूची—जिसमें बड़े पैमाने पर बदलाव, नए चेहरे, और ओबीसी-ईबीसी पर फोकस दिखा—यह संकेत देती है कि बीजेपी ने इस चुनाव को सोशल-इंजीनियरिंग + नीतीश-लीडरशिप के फॉर्मूले पर खेलना तय किया है। अगर यह फॉर्मूला चलता है, तो पार्टी अपना सीएम-फेस तैयार होने तक सत्ता-समीकरणों में शीर्ष हिस्सेदारी बनाए रखेगी।अगर नहीं, तो बिहार में उसे फिर वही पुराना सवाल घेर लेगा—“बिना नीतीश, किसके साथ और किसके नाम पर?”

हालाँकि बीजेपी के पास अब नेताओं का पूरा सामाजिक मिश्रण है —ब्राह्मण (चौबे, पांडेय), भूमिहार (विजय सिन्हा, गिरिराज, श्रेयसी),कुर्मी/कोयरी (सम्राट चौधरी), यादव (नित्यानंद राय),ईबीसी (रेणु देवी) और कायस्थ (रविशंकर प्रसाद)।लेकिन इन सबके बीच कोई एक ऐसा मुख्यमंत्री-स्तर का करिश्माई चेहरा नहीं जो नीतीश कुमार जैसे सर्वमान्य प्रतीक की जगह ले सके।

बीजेपी के लिए बिहार में सबसे बड़ा सवाल यही है—क्या वह कभी नीतीश-निर्भरता से आगे बढ़कर खुद एक पैन-बिहार नेतृत्व खड़ा कर पाएगी?2025 के चुनाव उस दिशा में पहली परीक्षा होंगे।

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