NDA ने झोंकी पूरी ताकत, पर 'महागठबंधन' की चाल धीमी क्यों? 252 उम्मीदवार, 243 सीटें... कन्फ्यूजन में फंसा बिहार का विपक्ष!

Bihar Election 2025: एनडीए ने शुरू किया जबरदस्त प्रचार, लेकिन महागठबंधन अंदरूनी झगड़ों और उलझनों के चलते कई सीटों पर कमजोर होता दिख रहा है।

Harsh Sharma
Published on: 21 Oct 2025 6:02 PM IST (Updated on: 21 Oct 2025 6:02 PM IST)
NDA ने झोंकी पूरी ताकत, पर महागठबंधन की चाल धीमी क्यों? 252 उम्मीदवार, 243 सीटें... कन्फ्यूजन में फंसा बिहार का विपक्ष!
X

Bihar Election 2025: बिहार में नामांकन की प्रक्रिया पूरी होते ही अब चुनावी रैलियों का दौर शुरू हो गया है। सत्ताधारी एनडीए ने प्रचार में पूरी ताकत झोंक दी है। खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी समेत कई बड़े नेता बिहार पहुंचने लगे हैं और रैलियों के जरिए जनता से सीधा संवाद कर रहे हैं। वहीं, दूसरी तरफ महागठबंधन की ओर से चुनाव प्रचार की रफ्तार थोड़ी धीमी नजर आ रही है। आरजेडी ने दूसरे चरण के नामांकन से पहले अपने 143 उम्मीदवारों की सूची जरूर जारी कर दी है, लेकिन अब तक प्रचार में वो जोश नहीं दिख रहा जो पहले “वोटर अधिकार यात्रा” के दौरान नजर आ रहा था। ऐसा माना जा रहा है कि सीटों के बंटवारे में हुई देरी और मतभेद की वजह से महागठबंधन में प्रचार को लेकर स्पष्टता नहीं बन पाई है। हालांकि आने वाले दिनों में इस मोर्चे पर भी हलचल तेज हो सकती है।

राष्ट्रीय जनता दल के नेतृत्व में बना महागठबंधन सीटों के बंटवारे को आखिरी समय तक ठीक से नहीं सुलझा सका। हालात ऐसे हो गए हैं कि बिहार की 243 विधानसभा सीटों के लिए महागठबंधन ने 252 उम्मीदवार खड़े कर दिए हैं। इस वजह से कई सीटों पर ऐसा माहौल बन गया है कि महागठबंधन के उम्मीदवारों को सिर्फ एनडीए से नहीं, बल्कि अपने ही साथी दलों के उम्मीदवारों से भी मुकाबला करना पड़ रहा है। यानी इन सीटों पर सीधा मुकाबला नहीं, बल्कि "फ्रेंडली फाइट" की स्थिति बन गई है, जो महागठबंधन के लिए मुश्किलें खड़ी कर सकती है।

महागठबंधन की धीमी रफ्तार: प्रचार में नहीं दिख रही एकजुटता

बिहार विधानसभा चुनाव का माहौल बन चुका है, लेकिन महागठबंधन अब तक पूरी तरह से सक्रिय नहीं हो पाया है। एक सितंबर को पटना में राहुल गांधी और तेजस्वी यादव की *वोटर अधिकार यात्रा* खत्म होने के बाद से अब तक किसी भी तरह का सामूहिक प्रचार नहीं हुआ है।

प्रचार से दूर नेता

राहुल गांधी ने बिहार चुनाव प्रचार से दूरी बना रखी है। शुरुआत में कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने कुछ रैलियां जरूर की थीं, लेकिन अब उनका प्रचार भी थमता नजर आ रहा है। प्रियंका गांधी वाड्रा ने पश्चिमी चंपारण में 24 सितंबर को एक रैली की थी, लेकिन इसके बाद वे भी प्रचार में सक्रिय नहीं दिख रहीं।

एक रैली की योजना अधर में

महागठबंधन की योजना थी कि बिहार के हर प्रमंडल में एक-एक बड़ी रैली की जाए, जिसमें सभी सहयोगी दलों के नेता शामिल हों। लेकिन अब यह योजना भी अधर में लटक गई है। न तो तारीख तय हो पाई और न ही नेताओं की मौजूदगी सुनिश्चित हो रही है।

साझा घोषणापत्र भी अधूरा

महागठबंधन की ओर से एनडीए के खिलाफ एक संयुक्त घोषणापत्र लाने की योजना थी, लेकिन सीट बंटवारे में उलझने की वजह से ये काम भी अटका हुआ है। कांग्रेस को उम्मीद के मुताबिक सीटें नहीं मिलीं, जिससे पार्टी के कई नेता नाराज़ बताए जा रहे हैं। कई नेताओं ने अपने रिश्तेदारों के लिए टिकट की मांग की थी, जो पूरी नहीं हो पाई। नतीजा ये है कि प्रचार में उनकी भी कोई खास रुचि नहीं दिख रही।

तेजस्वी यादव भी शांत

तेजस्वी यादव ने राहुल गांधी के साथ यात्रा पूरी करने के बाद अकेले प्रचार की शुरुआत की थी, जो 20 सितंबर को खत्म हो गई। इसके बाद से वो भी पूरी तरह प्रचार से दूर हैं। न तो कोई बड़ी जनसभा कर रहे हैं, न ही कोई अभियान चला रहे हैं।

सहयोगी दलों में भी निराशा

झारखंड में सत्ताधारी झामुमो को बिहार में उम्मीद के मुताबिक सीटें नहीं मिलीं, इसलिए उसने भी अब पीछे हटने के संकेत दिए हैं। पहले मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को प्रचार में उतारने की तैयारी थी, लेकिन अब वो भी बिहार से दूरी बना सकते हैं। इसी तरह उत्तर प्रदेश के अखिलेश यादव और बंगाल की ममता बनर्जी को सीमावर्ती सीटों पर प्रचार के लिए बुलाने की योजना थी, लेकिन अब वह भी ठंडे बस्ते में जाती नजर आ रही है।

1 / 4
Your Score0/ 4
Harsh Sharma

Harsh Sharma

Mail ID - [email protected]

Next Story

AI Assistant

Online

👋 Welcome!

I'm your AI assistant. Feel free to ask me anything!