मोकामा में गोली, राजनीति और जन सुराज: एक मौत, चार FIR और सवाल- लोकतंत्र बचा कि बस नारे?

Bihar Murder and Politics: मोकामा का यह चुनाव फिर साबित करता है कि बिहार में लोकतंत्र गोली की नोक पर जनमत संग्रह करवाता है।

Snigdha Singh
Published on: 1 Nov 2025 2:55 PM IST
मोकामा में गोली, राजनीति और जन सुराज: एक मौत, चार FIR और सवाल- लोकतंत्र बचा कि बस नारे?
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Bihar Murder and Politics: बिहार का मोकामा फिर सुर्खियों में है। वजह वही पुरानी गोली, राजनीति और जनता की सेवा के नाम पर निजी फौजों का टकराव। गुरुवार को जन सुराज और जेडीयू समर्थकों के बीच जो हुआ, उसे कोई झड़प कहे तो यह भाषा के साथ अन्याय होगा यह लोकतंत्र के मंच पर गोली संवाद था। नतीजा ये कि 75 वर्षीय दुलारचंद यादव की मौत, एक दर्जन लोग घायल, और चुनावी मौसम में फिर वही पुराना सवाल बिहार में राजनीति होती है या सिर्फ बदला?

दुलारचंद यादव: तीन यारों की कहानी

दुलारचंद यादव वो शख्स थे जो नीतीश कुमार, लालू यादव और अनंत सिंह तीनों के करीबी रह चुके थे। मतलब राजनीति के हर रंग में उनका हाथ आजमाया हुआ था। वो कहावत है ना 'हर फन मौला' दुलारचंद उस कहावत का जीता-जागता पोस्टर थे। कभी आरजेडी की गलियों में झंडा उठाते दिखे, तो कभी जेडीयू की बगिया में फूल चुनते और अब जन सुराज की नाव में बैठकर सिस्टम बदलने निकले थे। दुर्भाग्यवश, बदलने से पहले ही सिस्टम ने उन्हें कुचल दिया शाब्दिक नहीं, वास्तविक रूप से।

तरतार गांव का दोपहरिया ड्रामा

जन सुराज के प्रत्याशी पीयूष प्रियदर्शी और जेडीयू उम्मीदवार अनंत सिंह के काफिले जब आमने-सामने आए, तो लोकतंत्र ने हेलमेट पहन लिया। पहले पत्थर उड़े, फिर गोलियां। फिर वही बिहारिया एंग्री-बैल की एंट्री गाड़ियां चल पड़ीं। दुलारचंद को गोली लगी, फिर वाहन ने कुचल दिया। चुनाव आयोग ने रिपोर्ट मांगी है, जैसे हर बार मांगता है। पुलिस ने चार एफआईआर दर्ज की हैं दो इस पार, दो उस पार। बाकी सच्चाई का फैसला होगा अदालत में नहीं बल्कि अगले प्रेस कॉन्फ्रेंस में।

मोकामा: जहां राजनीति का दूसरा नाम ‘आपराधिक रिकॉर्ड’ है

मोकामा की राजनीति बिहार की राजनीति नहीं, एक अलग शैली है ‘बुलेट एंड बैलेट’ मॉडल। यहां बाहुबल और जाति समीकरण वोटिंग मशीन से पहले चल जाते हैं। दुलारचंद के खिलाफ 11 केस, अनंत सिंह के खिलाफ 50 से अधिक और अब सुरजभान सिंह की पत्नी वीणा देवी मैदान में जिनके पति के नाम 26 केस हैं। कोई पूछे कि यहां चुनाव आयोग वोट गिनता है या चार्जशीट?

अनंत सिंह उर्फ छोटे सरकार: छापों में मिले बुलेटप्रूफ, पर वोटर फिर भी प्रूफ देते हैं

2005 से अब तक मोकामा में अनंत सिंह का दबदबा ऐसे बना हुआ है जैसे सीमेंट से दीवार।

2019 में यूएपीए में 10 साल की सजा, 2024 में बरी।

2015 में गिरफ्तारी, 500 पुलिसकर्मी, बुलेटप्रूफ जैकेट, खून से सने कपड़े और जनता अब भी कहती है, अनंत बाबू तो दिल के साफ हैं।

कहना पड़ेगा, बिहार में कैरेक्टर सर्टिफिकेट अब जनता देती है, अदालत नहीं।

और अब जन सुराज बनाम छोटे सरकार

दुलारचंद के जन सुराज में आने से समीकरण बिगड़े। अनंत सिंह को लगा जैसे किसी ने उनका पुराना वफादार छीन लिया हो। बाकी काम नेताओं की प्रतिष्ठा और कार्यकर्ताओं के जोश ने किया जिसका परिणाम सामने है। अब बयानबाजी का दौर शुरू है कहीं साजिश तो कहीं हमले की योजना। सब अपने-अपने चैनलों पर लोकतंत्र की हत्या का शोक मना रहे हैं, जबकि असली लोकतंत्र ICU में है।

मोकामा का यह चुनाव फिर साबित करता है कि बिहार में लोकतंत्र गोली की नोक पर जनमत संग्रह करवाता है। यहां जन सुराज भी बिना जन सुरक्षा के और विकास सिर्फ भाषणों में जीवित है। बाकी नेताओं के हाथ में बंदूकें हैं, जनता के हाथ में बस वोट जिसे वो हर बार उसी को दे देती है जिसने उसे डराया होता है। मोकामा में राजनीति नहीं चलती, गोलीतंत्र चलता है। और लोकतंत्र? वह हर बार पोस्टर पर लिखा रहता है वोट दीजिए, बदलाव कीजिए। बस फर्क इतना है इस बार बदलने वाला दुलारचंद था, बदला गया वो खुद।

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