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Black Day of Ahmedabad: काँप उठेंगे 26 जुलाई की कहानी सुन कर, नहीं भूलेगा अहमदाबाद का वो काला दिन
Ahmedabad Serial Blast Story: बाज़ारों में रौनक थी, दुकानों पर लोग सामान खरीद रहे थे, और सड़कों पर बसें, रिक्शे और गाड़ियां दौड़ रही थीं। लेकिन शाम होते-होते ये रौनक मातम में बदल गई।
Black Day of Ahmedabad (Image Credit-Social Media)
Black Day of Ahmedabad: 26 जुलाई, 2008 का दिन गुजरात के अहमदाबाद शहर के लिए एक ऐसा दिन बन गया, जिसे कोई भूल नहीं सकता। शाम के करीब 6:45 बजे, जब शहर की सड़कों पर रोज़मर्रा की चहल-पहल थी, बाज़ारों में लोग खरीदारी कर रहे थे, और अस्पतालों में मरीज़ों का इलाज चल रहा था, तभी एक जोरदार धमाका हुआ। ये धमाका मणिनगर के एक भीड़-भाड़ वाले बाज़ार में हुआ, जो उस समय के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी का विधानसभा क्षेत्र था। लोग अभी इस धमाके से उबर भी नहीं पाए थे कि अगले 70 मिनट में पूरे शहर में 21 और धमाके हुए। इन धमाकों ने अहमदाबाद को दहशत, तबाही और दर्द के एक अंतहीन सिलसिले में झोंक दिया। 56 लोगों की जान चली गई, 200 से ज़्यादा लोग घायल हुए, और शहर की रूह तक हिल गई। ये वो दिन था, जब अहमदाबाद की सड़कों पर खून, आंसुओं और डर का मंज़र फैल गया।
एक सामान्य दिन का खौफनाक मंज़र
उस दिन अहमदाबाद में सब कुछ सामान्य था। सुबह से ही लोग अपने काम-धंधों में व्यस्त थे। साबरमती नदी के किनारे बसा ये शहर, जो गुजरात का व्यापारिक और सांस्कृतिक केंद्र है, हमेशा की तरह गुलज़ार था। बाज़ारों में रौनक थी, दुकानों पर लोग सामान खरीद रहे थे, और सड़कों पर बसें, रिक्शे और गाड़ियां दौड़ रही थीं। लेकिन शाम होते-होते ये रौनक मातम में बदल गई। पहला धमाका मणिनगर में हुआ, जहां एक साइकिल पर रखे टिफिन में बम छिपाया गया था। ये धमाका इतना ज़ोरदार था कि आसपास की दुकानें हिल गईं, शीशे टूट गए, और लोग चीखते-चिल्लाते भागने लगे।
लोग अभी इस सदमे से बाहर निकलने की कोशिश ही कर रहे थे कि एक के बाद एक धमाकों की खबरें आने लगीं। सिविल अस्पताल, एलजी अस्पताल, बस स्टैंड, पार्किंग में खड़ी साइकिलें और कारें, हर जगह बम रखे गए थे। आतंकियों ने ऐसी जगहों को निशाना बनाया, जहां भीड़ ज़्यादा थी, ताकि ज़्यादा से ज़्यादा नुकसान हो सके। इन धमाकों में इस्तेमाल हुए बम कम तीव्रता वाले थे, लेकिन उनकी संख्या और सटीक योजना ने शहर को पूरी तरह से लकवाग्रस्त कर दिया।
आतंक की साजिश और उसका खुलासा
इन धमाकों की ज़िम्मेदारी आतंकी संगठन इंडियन मुजाहिदीन और हरकत-उल-जिहाद-अल-इस्लामी ने ली। जांच में पता चला कि ये हमले 2002 के गोधरा कांड और उसके बाद हुए दंगों का बदला लेने के लिए किए गए थे। आतंकियों ने धमाकों से कुछ मिनट पहले न्यूज़ चैनलों और मीडिया को एक ई-मेल भेजा था, जिसमें लिखा था, जो चाहो कर लो, रोक सकते हो तो रोक लो। इस ई-मेल ने पुलिस और प्रशासन के सामने एक खुली चुनौती रख दी थी।
धमाकों की जांच के लिए गुजरात पुलिस ने तुरंत एक विशेष जांच दल बनाया, जिसकी अगुवाई अहमदाबाद क्राइम ब्रांच के पुलिस कमिश्नर आशीष भाटिया ने की। इस दल में डीसीपी अभय चुडासमा, एएसपी हिमांशु शुक्ला, डीएसपी राजेंद्र असारी, मयूर चावड़ा, उषा राडा और वीआर टोलिया जैसे अधिकारी शामिल थे। जांच में पता चला कि आतंकियों ने अहमदाबाद के वटवा इलाके में एक घर को किराए पर लिया था, जिसे वे अपने मुख्यालय के तौर पर इस्तेमाल करते थे। इस घर को जाहिद शेख नाम के एक शख्स ने किराए पर लिया था, और यहां मुफ्ती अबू बशीर और मोहम्मद कयामुद्दीन जैसे आतंकी इकट्ठा होते थे।
पुलिस ने 19 दिनों के भीतर 30 आतंकियों को गिरफ्तार कर लिया, जिनमें से कई इंडियन मुजाहिदीन और स्टूडेंट्स इस्लामिक मूवमेंट ऑफ इंडिया (सिमी) से जुड़े थे। जांच में ये भी सामने आया कि इन आतंकियों ने जयपुर, वाराणसी और बेंगलुरु में भी धमाके किए थे। अहमदाबाद के धमाकों के बाद सूरत में भी 29 बम बरामद किए गए, जो गलत सर्किट और डेटोनेटर की वजह से फट नहीं पाए थे।
पीड़ितों की कहानियां: दर्द और हिम्मत
इन धमाकों ने न सिर्फ शहर को हिलाया, बल्कि कई परिवारों की ज़िंदगी को हमेशा के लिए बदल दिया। यश व्यास की कहानी इसका एक जीता-जागता उदाहरण है। यश उस समय सिर्फ 10 साल का था, जब असारवा के एक अस्पताल में हुए धमाके में उसके पिता और बड़े भाई की मौत हो गई। यश खुद भी महीनों अस्पताल में भर्ती रहा। आज, 24 साल की उम्र में, वो विज्ञान में स्नातक की पढ़ाई कर रहा है, लेकिन उस दिन की यादें आज भी उसे सताती हैं। वो कहता है, मैं हर दिन अपने पिता और भाई को याद करता हूं। भगवान का शुक्र है कि मेरी जान बच गई, लेकिन वो दर्द आज भी मेरे साथ है।
इसी तरह, असारवा से विधायक परमार, जो उस समय धमाके में घायल हुए थे, बताते हैं कि उनका एक पैर 90 प्रतिशत तक क्षतिग्रस्त हो गया था। डॉक्टर उनके पैर को काटने की सोच रहे थे, लेकिन सौभाग्य से वो इसे बचा पाए। परमार कहते हैं, उस दिन कई लोगों ने अपनों को खोया। मैं खुशकिस्मत था कि ज़िंदा बच गया, लेकिन वो मंज़र मेरे दिमाग से कभी नहीं जाएगा।
कानूनी लड़ाई और ऐतिहासिक फैसला
अहमदाबाद धमाकों के बाद पुलिस ने 20 FIR अहमदाबाद में और 15 सूरत में दर्ज कीं। कुल 78 आरोपियों पर मुकदमा चला, जिसमें से एक सरकारी गवाह बन गया। 13 साल तक चली लंबी कानूनी लड़ाई के बाद, 8 फरवरी 2022 को विशेष अदालत ने 49 आरोपियों को दोषी ठहराया। 18 फरवरी 2022 को विशेष न्यायाधीश ए आर पटेल की अदालत ने 38 दोषियों को फांसी की सजा सुनाई, जो भारत के इतिहास में एक साथ इतनी बड़ी संख्या में फांसी की सजा का पहला मामला था। बाकी 11 दोषियों को आजीवन कारावास की सजा दी गई।
अदालत ने अपने 6,752 पन्नों के फैसले में 1,163 गवाहों के बयान और 6,000 से ज़्यादा सबूतों को आधार बनाया। कोर्ट ने मृतकों के परिजनों को एक लाख रुपये, गंभीर रूप से घायल लोगों को 50 हज़ार रुपये, और मामूली रूप से घायल लोगों को 25 हज़ार रुपये का मुआवज़ा देने का भी आदेश दिया।
शहर पर असर और सबक
इन धमाकों ने अहमदाबाद के लोगों के दिलों में डर तो पैदा किया, लेकिन साथ ही उनके हौसले को भी मज़बूत किया। शहर ने धीरे-धीरे इस सदमे से उबरना शुरू किया। साबरमती आश्रम, जो महात्मा गांधी की शांति और अहिंसा का प्रतीक है, आज भी शहर की आत्मा को दर्शाता है। अहमदाबाद ने न सिर्फ इस त्रासदी से उबरकर अपने आपको फिर से संभाला, बल्कि ये भी दिखाया कि दहशत के आगे हार मानना इस शहर के स्वभाव में नहीं है।
इन धमाकों ने देश की सुरक्षा व्यवस्था को भी कई सबक दिए। पुलिस और खुफिया एजेंसियों ने आतंकी हमलों से निपटने के लिए अपनी रणनीतियों को और मज़बूत किया। सूरत में बरामद हुए 29 बमों ने ये साफ कर दिया कि आतंकी संगठनों की साजिश कितनी खतरनाक थी, और अगर वो कामयाब हो जाते, तो नुकसान का अंदाज़ा लगाना भी मुश्किल था।
आज भी ज़िंदा है वो दर्द
26 जुलाई 2008 का दिन अहमदाबाद के इतिहास में एक काले अध्याय के रूप में दर्ज है। ये वो दिन था, जब एक शहर की रौनक कुछ पलों में मातम में बदल गई। लेकिन इस त्रासदी ने ये भी दिखाया कि इंसान कितना भी दुख झेल ले, वो फिर से उठ खड़ा होता है। यश व्यास जैसे लोग, जो अपने परिवार को खो चुके हैं, आज भी उस दर्द को अपने सीने में लिए जी रहे हैं। लेकिन उनकी हिम्मत और ज़िंदादिली इस बात का सबूत है कि अहमदाबाद का दिल आज भी धड़कता है।
आज, जब हम उस दिन को याद करते हैं, तो ये सिर्फ एक तारीख नहीं, बल्कि एक सबक है। ये हमें याद दिलाता है कि शांति और सुरक्षा कितनी कीमती है, और इसे बनाए रखने के लिए हमें कितनी सतर्कता चाहिए। अहमदाबाद ने उस दिन बहुत कुछ खोया, लेकिन उसने ये भी साबित किया कि वो हर मुश्किल से उबर सकता है।
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