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जातिगत जनगणना के लिए सरकार के पास बजट ही नहीं! कैसे और कब तक संभव है गणना; देखिए आंकड़े
Caste Census Budget: मोदी सरकार ने जातिगत गणना की मंजूरी तो दे दी लेकिन बजट की स्थिति देखिए क्या कहती है-
Caste Census Budget: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में बुधवार को हुई राजनीतिक मामलों की कैबिनेट कमेटी की बैठक में एक ऐतिहासिक फैसला लिया गया। सरकार ने आगामी जनगणना में जातिगत गणना को शामिल करने की मंज़ूरी दे दी है। जातिगत गणना की मंजूरी तो दे दी लेकिन प्रस्तावित बजट के आंकड़े देखकर यह कसह पाना मुश्किल की गणना कब तक और कैसे हो सकती है?
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार हालिया बजट दस्तावेजों से खुलासा हुआ है कि देश में जनगणना से जुड़ी गतिविधियों पर खर्च लगातार घट रहा है। वित्त वर्ष 2026 के लिए जनगणना पर महज 574 करोड़ रुपए का प्रावधान किया गया है, जो कि 2025 के संशोधित आंकड़े 1,341 करोड़ की तुलना में लगभग आधा है। यह इशारा करता है कि अगले वित्तीय वर्ष में भी जनगणना की प्रक्रिया में कोई विशेष तेजी नहीं आने वाली है। बता दें कि 2011 में 1,999 करोड़ के बजट के मुकाबले 2,726 करोड़ खर्च किए गए थे। विशेषज्ञों के अनुसार लगातार बजट में आ रही कमी से फिलहाल इस वर्ष या अगले वित्तीय वर्ष में गणना शुरू हो पाना मुश्किल है।
क्या कहते हैं बजट के आंकड़े
कोविड-19 महामारी के बाद से इस दिशा में खर्च में स्थायी गिरावट देखने को मिली है। उदाहरण के तौर पर, वित्त वर्ष 2022 में 3,768 करोड़ रुपए का प्रावधान था, लेकिन असल में केवल 505 करोड़ रुपए ही खर्च किए गए। इसी तरह, 2024 में 1,564 करोड़ रुपए के अनुमान के बावजूद व्यय 572 करोड़ तक ही सीमित रहा। विशेषज्ञों का मानना है कि इस स्तर की कटौती से जनगणना प्रक्रिया की गति और गुणवत्ता दोनों प्रभावित हो सकती हैं। जहां 2011 की जनगणना 27 लाख कर्मियों की मदद से मात्र 12 महीनों में पूरी हुई थी, वहीं अब कम बजट के कारण अगली जनगणना की समयसीमा और कार्यबल पर सवाल खड़े हो रहे हैं।
क्या आगे बढ़ाई जा सकती है जनगणना?
यह स्थिति 2011 की जनगणना के दौरान से बिल्कुल विपरीत है, जब सरकार ने इस प्रक्रिया पर भारी निवेश किया था। 2009 में जहां 316 करोड़ का बजट प्रावधान था, वहां खर्च 437 करोड़ तक पहुंच गया था। 2011 में 1,999 करोड़ के बजट के मुकाबले 2,726 करोड़ खर्च किए गए, और 2012 में 4,123 करोड़ रुपए के अनुमान की तुलना में 2,638 करोड़ खर्च हुए थे। अंततः जनगणना रिपोर्ट अप्रैल 2011 में जारी की गई थी। विशेषज्ञों का मानना है कि बजट में लगातार हो रही यह कटौती देशव्यापी जनगणना की समयसीमा को और आगे खिसका सकती है।
2011 की जनगणना पर डालिए एक नजर
2011 की जनगणना देश की सबसे व्यापक जनसांख्यिकीय कवायदों में से एक थी, जिसे रिकॉर्ड समय में पूरा किया गया। इस जनगणना के लिए सरकार ने शुरुआत में 2,200 करोड़ रुपए का बजटीय प्रावधान किया था, लेकिन प्रक्रिया की विशालता और जमीनी जरूरतों को देखते हुए वास्तविक खर्च 2,726 करोड़ रुपए तक पहुंच गया।
इस जनगणना को महज 12 महीनों में पूरा किया गया था, जिसमें लगभग 27 लाख अधिकारियों और कर्मचारियों ने हिस्सा लिया था। यह कार्यबल घर-घर जाकर आंकड़े जुटाने के काम में जुटा था, जिससे भारत की जनसंख्या, सामाजिक-आर्थिक स्थितियों और आवासीय आंकड़ों की एक सटीक तस्वीर तैयार की जा सकी।
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