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तेजस्वी और राहुल में टूट-फूट! NDA मार लेगी बाजी, महागठबंधन में एक नया विवाद; याद दिलाया इतिहास
Bihar Assembly Elections 2025: महागठबंधन में शामिल आरजेडी और कांग्रेस दोनों दल इस वर्ग को साधने में लगे हैं। कांग्रेस नेता राहुल गांधी बीते पांच महीनों में पांच बार बिहार का दौरा कर चुके हैं।
tejaswi yadav-rahul gandhi
Bihar Assembly Elections 2025: बिहार विधानसभा चुनाव 2025 की तैयारियां जोरों पर हैं और राजनीतिक गलियारों में हलचल बढ़ती जा रही है। इस बार मुकाबला न सिर्फ एनडीए और महागठबंधन के बीच कांटे का होगा, बल्कि महागठबंधन के भीतर भी दलित और अति पिछड़ा वर्ग के वोट बैंक को लेकर रस्साकशी तेज हो गई है।
महागठबंधन में शामिल आरजेडी और कांग्रेस दोनों दल इस वर्ग को साधने में लगे हैं। कांग्रेस नेता राहुल गांधी बीते पांच महीनों में पांच बार बिहार का दौरा कर चुके हैं। उनका मकसद कांग्रेस के पारंपरिक दलित और अति पिछड़ा वोट बैंक को फिर से हासिल करना है। उधर, आरजेडी नेता तेजस्वी यादव भी अपने जनाधार को बढ़ाने के लिए इसी वर्ग को निशाना बना रहे हैं।
कांग्रेस के लिये संकट
कांग्रेस के सामने चुनौती बड़ी है। 1990 के दशक में जहां उसका वोट शेयर करीब 25फीसदी था, वहीं अब वह घटकर 9.5 फीसदी रह गया है। राहुल गांधी की सक्रियता और संगठनात्मक बदलाव पार्टी को कितनी मजबूती देंगे, इसका फैसला आने वाले चुनाव परिणाम करेंगे। दूसरी तरफ तेजस्वी यादव की युवा छवि और आरजेडी का मजबूत ज़मीनी संगठन उन्हें एक प्रमुख चेहरा बनाता है। लेकिन अंदरूनी खींचतान के चलते महागठबंधन को वोटों के बिखराव का खतरा भी सता रहा है।
NDA को मिलेगा पूरा फायदा!
इसी राजनीतिक उथल-पुथल के बीच एनडीए इस स्थिति का पूरा फायदा उठाने की कोशिश में है। बीजेपी और जेडीयू, मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के नेतृत्व में, विकास, राष्ट्रवाद और धर्म के एजेंडे को सामने रखकर मतदाताओं को लुभा रहे हैं। चिराग पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) के एनडीए में शामिल होने से पासवान समुदाय पर उनकी पकड़ और मजबूत हुई है। नीतीश कुमार की ’महादलित’ नीति भी दलित समुदाय में प्रभाव छोड़ चुकी है। बीजेपी ने सभी सीटों पर सर्वे शुरू कर दिया है और सीटों के बंटवारे को लेकर रणनीति अंतिम चरण में है। वहीं, महागठबंधन के भीतर नेतृत्व को लेकर भी असमंजस है। सबसे बड़े घटक दल आरजेडी के नेता तेजस्वी यादव को स्वाभाविक मुख्यमंत्री पद का दावेदार माना जा रहा है, लेकिन कांग्रेस की केंद्रीय नेतृत्व वाली प्रणाली में अंतिम निर्णय पार्टी हाईकमान से ही होगा।
याद दिलाया इतिहास
कांग्रेस के कुछ वरिष्ठ नेताओं ने आरजेडी पर भरोसे की कमी जाहिर की है। उनका कहना है कि सीट बंटवारे में सम्मानजनक हिस्सेदारी जरूरी है। एक पूर्व मंत्री ने याद दिलाया कि 2010 में कांग्रेस और आरजेडी का गठबंधन इसीलिए टूटा था, क्योंकि आरजेडी कांग्रेस को पर्याप्त सीटें देने को तैयार नहीं थी और फिर जो हुआ वह इतिहास में दर्ज है। अब देखना होगा कि क्या महागठबंधन आपसी मतभेद भुलाकर एकजुट हो पाता है या फिर यह आपसी खींचतान एनडीए को फायदा पहुंचाने का मौका देगी।
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