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कांग्रेस में महा-घमासान! 'टिकट बेच रहे राहुल गांधी के सिपहसालार', तारिक अनवर ने भी खड़े किए सवाल
Bihar Election 2025: कांग्रेस में टिकट बंटवारे को लेकर विवाद बढ़ गया है, जहां पार्टी के कई नेताओं ने गंभीर आरोप लगाए हैं। बिहार विधानसभा चुनाव में महागठबंधन की स्थिति कमजोर होती दिख रही है, और कांग्रेस के भीतर भी घमासान मचा हुआ है। पढ़ें पूरी खबर।
Bihar Election 2025: बिहार विधानसभा चुनाव के लिए कांग्रेस ने रविवार रात को अपने छह उम्मीदवारों की चौथी सूची जारी की है. इस तरह अब तक कांग्रेस ने 60 सीटों पर अपने उम्मीदवार तय किए हैं, लेकिन टिकट वितरण को लेकर पार्टी में विवाद पैदा हो गया है. कांग्रेस के कई वरिष्ठ नेताओं ने नाराजगी जताते हुए बागी रुख अपनाया है और टिकट बेचने के आरोप तक लगाए जा रहे हैं. राहुल गांधी ने बिहार में कांग्रेस को फिर से मजबूत करने के लिए अपने करीबी नेताओं को जिम्मेदारी दी थी. कृष्णा अल्लवरू को राज्य का प्रभारी और राजेश राम को प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया था. इसके अलावा शाहनवाज आलम और देवेंद्र यादव को सह-प्रभारी के रूप में नियुक्त किया गया था. लेकिन अब यही नेता कांग्रेस के अंदर विवादों के घेरे में हैं.
महागठबंधन में घमासान
बिहार कांग्रेस के कई नेता कृष्णा अल्लवरू और राजेश राम पर गंभीर आरोप लगा रहे हैं, जिनमें टिकट बेचने का आरोप प्रमुख है. इसके अलावा विधायक शकील अहमद और सांसद पप्पू यादव भी विवादों में हैं. इन नेताओं की वजह से महागठबंधन में भी तकरार हुई है और कांग्रेस में अंदरूनी कलह मची हुई है, बिहार में कांग्रेस की सीट शेयरिंग और टिकट वितरण की जिम्मेदारी राहुल गांधी के करीबी नेताओं के पास थी, लेकिन वे न तो आरजेडी के साथ सही तरीके से सीटें बांट पाए और न ही कांग्रेस के लिए अच्छे उम्मीदवारों का चयन कर पाए. इसका परिणाम यह हुआ कि बिहार की 60 सीटों पर महागठबंधन के दल एक-दूसरे के खिलाफ चुनाव लड़ रहे हैं. खासकर लालगंज, वैशाली, राजापाकर, बछवाड़ा, रोसड़ा, बिहार शरीफ, गौड़ाबौराम और कहलगांव सीटों पर सख्त विवाद नजर आ रहा है.
महागठबंधन में आपसी तालमेल की कमी के कारण कई सीटों पर सहयोगी दल एक-दूसरे के खिलाफ चुनाव मैदान में हैं। जबकि एनडीए ने अपनी सीटों के उम्मीदवारों का ऐलान कर लिया है और एक स्पष्ट रणनीति बनाई है, वहीं विपक्षी महागठबंधन की स्थिति पूरी तरह से अव्यवस्थित नजर आ रही है। इसके अलावा, कांग्रेस जिन सीटों पर लंबे समय से चुनाव लड़ती आ रही थी, अब वो भी उसके हाथ से निकल चुकी हैं।
कांग्रेस के टिकट बंटवारे में बदलाव
उदाहरण के लिए, प्राणपुर सीट पर कांग्रेस के सचिव तौकीर आलम ने पहले चुनाव लड़ा था, लेकिन इस बार उनकी सीट बदल दी गई है। अब वे बरारी से उम्मीदवार बनाए गए हैं, जबकि आरजेडी ने प्राणपुर से अपना उम्मीदवार खड़ा कर दिया है। जाले सीट पर कांग्रेस पहले हमेशा मुस्लिम उम्मीदवार को टिकट देती रही है, लेकिन इस बार उसे पैराशूट उम्मीदवार दिया गया है। कांग्रेस ने मशकूर की जगह नौशाद को उम्मीदवार घोषित किया था, लेकिन बाद में उनका टिकट काटकर ऋषि मिश्रा को प्रत्याशी बना दिया। दिलचस्प यह है कि ऋषि मिश्रा का टिकट पहले से ही घोषित हो चुका था और फिर उन्होंने कांग्रेस जॉइन किया।
इसके अलावा, कांग्रेस के विधायक और पूर्व मंत्री मोहम्मद आफाक आलम का भी टिकट काट दिया गया है, जबकि वे लगातार तीन बार जीत चुके थे। आफाक आलम ने पार्टी के वरिष्ठ नेताओं पर टिकट बेचने का गंभीर आरोप लगाया है। उनका राजेश राम के साथ बातचीत का एक वीडियो भी वायरल हो रहा है, जिससे पार्टी के भीतर कई सवाल उठ रहे हैं। आफाक आलम ने विधायक दल के नेता शकील अहमद खान, प्रदेश अध्यक्ष राजेश राम, कांग्रेस प्रभारी कृष्ण अल्लवरू और पूर्णिया सांसद पप्पू यादव पर गंभीर आरोप लगाए हैं।
तारिक अनवर का टिकट बंटवारे पर विरोध
कांग्रेस सांसद तारिक अनवर भी पार्टी के टिकट बंटवारे से नाराज हैं। उन्होंने बरबीघा सीट से मुन्ना शाही का टिकट काटे जाने पर सवाल उठाए। उनका कहना था कि गजेंद्र शाही उर्फ मुन्ना शाही ने 2020 के चुनाव में बहुत कम अंतर से हार मानी थी, लेकिन उन्हें फिर भी टिकट से वंचित कर दिया गया। तारिक अनवर का आरोप था कि मुन्ना शाही को सिर्फ 113 वोट से हराया गया था, और यह हार किसी और कारण से हुई थी, न कि उनकी असमर्थता से। उन्होंने कहा, "ऐसे व्यक्ति को टिकट न देना पूरी तरह से अन्याय है, जबकि कई ऐसे नेताओं को टिकट दे दिया गया है, जो 30 हजार वोटों के बड़े अंतर से हार चुके थे।" उनका यह भी मानना था कि ऐसे फैसले कार्यकर्ताओं का हौसला तोड़ेंगे और जमीन से जुड़े नेताओं को हतोत्साहित करेंगे।
कांग्रेस के रणनीतिकारों की विफलता
राहुल गांधी ने बिहार चुनाव की जिम्मेदारी अपने कुछ करीबी नेताओं को सौंपी थी, लेकिन सवाल यह है कि ये नेता चुनावी मैदान में कभी उतरे ही नहीं। जैसे कृष्णा अल्लावरु और शाहनवाज आलम, जो न तो विधानसभा चुनाव में उतर चुके हैं और न ही लोकसभा चुनाव में। ऐसे में इन नेताओं को टिकट वितरण और सीट शेयरिंग का जिम्मा देना गलत साबित हुआ। यही कारण है कि आरजेडी और लेफ्ट जैसे महागठबंधन के दलों के साथ कांग्रेस का तालमेल नहीं बन पाया है। अब कांग्रेस के भीतर भी इन नेताओं पर सवाल उठने लगे हैं। राहुल गांधी के सिपहसालार बिहार में पूरी तरह से असफल होते हुए नजर आ रहे हैं, और यही वजह है कि कांग्रेस की स्थिति चुनावी रूप से कमजोर होती जा रही है।
कांग्रेस का ध्यान आरजेडी को मात देने पर
जानकारी के मुताबिक, कांग्रेस के नेताओं का बिहार में मुख्य ध्यान खुद को मजबूत करने से ज्यादा आरजेडी को मात देने पर था। उन्हें लगता था कि आरजेडी वही राजनीतिक आधार हासिल कर चुकी है, जो कभी कांग्रेस का हुआ करता था। इसी वजह से कांग्रेस तेजस्वी यादव को महागठबंधन का मुख्यमंत्री पद का चेहरा बनाने को लेकर राजी नहीं हुई। अब इसका असर पार्टी पर साफ देखा जा रहा है, क्योंकि इस निर्णय का खामियाजा कांग्रेस को सीट बंटवारे और टिकट वितरण में भुगतना पड़ रहा है।
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