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चुनाव में खेल! सुप्रीम कोर्ट ने सामने EVM मशीन से कराई गिनती और पलट गई पूरी कहानी; न्याय ने जीता भरोसा
Panipat Sarpanch Election: भारतीय लोकतंत्र की उस बारीकी की मिसाल है, जहाँ हर नागरिक को न्याय पाने का हक है। चाहे वह राष्ट्रपति हो या सरपंच का उम्मीदवार।
Panipat Sarpanch Election: देश की लोकतांत्रिक व्यवस्था ने इस बार एक नया मुकाम छू लिया है, जब ग्राम पंचायत स्तर के चुनाव की गूंज सीधे सुप्रीम कोर्ट की दीवारों से टकराई। अब चुनावी लड़ाइयाँ सिर्फ गाँव की चौपालों में नहीं बल्कि संविधान की सबसे ऊँची अदालत के गलियारों में तय होती हैं। और इस ऐतिहासिक उपलब्धि का श्रेय जाता है हरियाणा के बुआना लाखू गाँव को। यहाँ सरपंची का ताज पहनने की जिद ने न्याय व्यवस्था की परतें तक खोल दीं।
ग्राम पंचायत चुनाव में हार-जीत आम बात है लेकिन यहाँ बात आम नहीं रही। 2 नवंबर 2022 को हुए चुनाव में कुलदीप सिंह को विजेता घोषित कर दिया गया। लेकिन प्रतिद्वंद्वी मोहित कुमार इस फैसले से संतुष्ट नहीं हुए उन्हें शक था कि EVM मशीनों ने गाँव की आवाज ठीक से नहीं सुनी।
EVM पहुँची सुप्रीम कोर्ट, साक्षात लोकतंत्र की देवी के सामने
मोहित कुमार ने पहले तो पानीपत के अतिरिक्त सिविल जज और इलेक्शन ट्रिब्यूनल का दरवाजा खटखटाया। वहाँ से 22 अप्रैल 2025 को पुनर्गणना के आदेश मिले। लेकिन हाईकोर्ट ने इस आदेश को उलट दिया। अब तक किसी को भी अंदाजा नहीं था कि बात कहाँ तक जाएगी लेकिन मोहित कुमार ने तय कर लिया था कि अगर पंचायत भवन नहीं मिला तो सुप्रीम कोर्ट जरूर मिलेगा।
और फिर आया वो दिन 6 अगस्त 2025, जब भारत की सबसे बड़ी अदालत में EVM मशीनें लाई गईं। ठीक वैसे जैसे किसी ऐतिहासिक साक्ष्य को पेश किया जाता है। अदालत ने आदेश दिए कि पुनर्गणना सुप्रीम कोर्ट परिसर में हो और गिनती कोर्ट की OSD कावेरी करें। मतगणना की वीडियो रिकॉर्डिंग भी कराई गई ताकि कोई कह न सके कि पर्दे के पीछे कुछ और खेल हो गया।
ग्राम पंचायत की गिनती में हाई प्रोफाइल पारदर्शिता
मतगणना हुई और कुल 3,767 वोट गिने गए। नतीजा पलट गया मोहित कुमार को मिले 1051 वोट जबकि पहले विजयी घोषित किए गए कुलदीप सिंह को सिर्फ 1000। शेष वोट बाकी उम्मीदवारों में बँट गए, जो शायद अब यही सोच रहे होंगे कि अगली बार चुनाव नहीं केस लड़ा जाएगा।
सुप्रीम कोर्ट ने पूरी प्रक्रिया को पारदर्शी बताते हुए रिपोर्ट को स्वीकार किया और आदेश दिया कि मोहित कुमार को दो दिन के अंदर निर्वाचित घोषित किया जाए। अदालत ने यह भी स्पष्ट कर दिया कि अगर अब भी किसी को कुछ कहने की इच्छा हो तो वह चुनाव ट्रिब्यूनल में जाकर दिल की भड़ास निकाल सकता है।
सरपंची की कुर्सी अब सिर्फ वोटों से नहीं, वकीलों से भी मिलती है
इस पूरे घटनाक्रम ने एक बात तो साफ कर दी कि अब पंचायत चुनाव भी हाई प्रोफाइल हो चुके हैं। भविष्य में शायद उम्मीदवार चुनाव प्रचार से पहले वकीलों की फीस जोड़कर बजट बनाएँगे। वोट मांगो, केस लड़ो, और सुप्रीम कोर्ट चलो ये नया चुनावी फॉर्मूला हो सकता है। और जहाँ EVM पर शक हो वहाँ अब कोर्ट नंबर सात में गिनती करा लेना कोई बड़ी बात नहीं रही।
बुआना लाखू गाँव की यह घटना सिर्फ चुनावी लड़ाई नहीं बल्कि भारतीय लोकतंत्र की उस बारीकी की मिसाल है, जहाँ हर नागरिक को न्याय पाने का हक है। चाहे वह राष्ट्रपति हो या सरपंच का उम्मीदवार।
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