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डिलीवरी बॉय बनेगा चुनावी किंगमेकर? राहुल-मोदी की नींद उड़ाने आया 'गिग वर्कर्स', कांग्रेस और BJP के बीच छिड़ी सबसे बड़ी जंग

BJP Congress on gig workers: देश में तेजी से बढ़ रही गिग इकोनॉमी अब केवल रोजगार का नहीं, राजनीतिक दबदबे का नया ज़रिया बन चुकी है। कैब ड्राइवर से लेकर डिलीवरी बॉय तक और कंटेंट राइटर से लेकर फ्रीलांसर तक, हर वो व्यक्ति जो बिना स्थायी अनुबंध के किसी ऐप, एजेंसी या प्लेटफॉर्म के लिए काम करता है, अब चुनावी पटल का केंद्र बन चुका है।

Harsh Srivastava
Published on: 30 Jun 2025 8:25 PM IST
डिलीवरी बॉय बनेगा चुनावी किंगमेकर? राहुल-मोदी की नींद उड़ाने आया गिग वर्कर्स, कांग्रेस और BJP के बीच छिड़ी सबसे बड़ी जंग
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BJP Congress on gig workers: रोज़ सुबह एक नोटिफिकेशन आता है — "डिलीवरी के लिए तैयार हो जाइए", "आज आपकी 6 राइड्स पेंडिंग हैं", "आज का टारगेट 12 ऑर्डर", और फिर शुरू होती है एक ऐसी रेस, जिसमें मंज़िल तो है, लेकिन मंज़ूरी नहीं। भारत के शहरों और कस्बों की गलियों में दोपहिया वाहनों की घरघराहट से एक पूरी गिग इकॉनमी जिंदा है, जिसमें करोड़ों युवा अपना भविष्य तलाश रहे हैं — मगर बिना किसी सुरक्षा के, बिना बीमा के, बिना पेंशन के। और अब इस 'गिग वर्ग' पर भारत की राजनीति की सबसे बड़ी लड़ाई शुरू हो चुकी है। राजनीतिक दलों को अब समझ आ गया है — जो जीतेगा गिग वर्कर्स का दिल, वही जीतेगा देश का सिंहासन!

‘गिग’ बनाम ‘गौरव’: जब मजदूर बना देश का नया राजनीतिक मोहरा

देश में तेजी से बढ़ रही गिग इकोनॉमी अब केवल रोजगार का नहीं, राजनीतिक दबदबे का नया ज़रिया बन चुकी है। कैब ड्राइवर से लेकर डिलीवरी बॉय तक और कंटेंट राइटर से लेकर फ्रीलांसर तक, हर वो व्यक्ति जो बिना स्थायी अनुबंध के किसी ऐप, एजेंसी या प्लेटफॉर्म के लिए काम करता है, अब चुनावी पटल का केंद्र बन चुका है। झारखंड में हेमंत सोरेन सरकार ने विधानसभा में गिग वर्कर्स के लिए विधेयक लाने की मंज़ूरी देकर इस राजनीतिक होड़ को और तेज कर दिया। उधर, तेलंगाना की कांग्रेस सरकार ने भी ऐलान किया कि राज्य के 4.2 लाख गिग वर्कर्स के लिए एक सुरक्षात्मक कानून लाया जाएगा, जिसमें कंपनियों को गिग वर्कर्स का रजिस्ट्रेशन करना अनिवार्य होगा। लेकिन कहानी यहीं नहीं रुकती…

'श्रमिक न्याय' बनाम 'सशक्त भारत': कांग्रेस और बीजेपी आमने-सामने

जयराम रमेश ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में जब यह कहा कि “तेलंगाना जल्द ही गिग वर्कर्स के लिए त्रिपक्षीय बोर्ड बनाएगा,” तो यह साफ हो गया कि कांग्रेस इस वर्ग को लेकर बेहद आक्रामक रणनीति पर काम कर रही है। राजस्थान और कर्नाटक में पहले ही इस तरह के कानून बनाए जा चुके हैं। रमेश ने इस कदम को राहुल गांधी के ‘श्रमिक न्याय’ विज़न से जोड़ा। दूसरी ओर, मोदी सरकार की ओर से भी गिग वर्कर्स के लिए कई घोषणाएं हो चुकी हैं। 2023-24 के बजट में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने राष्ट्रीय डाटाबेस, सामाजिक सुरक्षा योजनाओं और कोड ऑन सोशल सिक्योरिटी के ज़रिए गिग वर्कर्स को संरक्षण देने की बात कही थी। लेकिन अभी तक ज़मीनी हकीकत ये है कि अधिकांश राज्यों में न तो डाटाबेस बना है और न ही किसी लाभ की शुरुआत हुई है। बीजेपी आरोप लगा रही है कि कांग्रेस सिर्फ 'वोट के लालच' में ये सब कर रही है, जबकि वह खुद 2019 से ही गिग वर्कर्स के लिए नीति बनाने में जुटी है।

गिग वर्कर्स: जो हर घर पहुंचते हैं, लेकिन खुद बेघर सुविधाओं से

गिग वर्कर्स की हालत ऐसी है, जैसे युद्ध में लगे सैनिक जिनके पास न हथियार हैं, न सुरक्षा। न कोई तय सैलरी, न मेडिकल बेनिफिट्स। रोज़ी है लेकिन रोज़गार नहीं। काम है लेकिन करार नहीं। अब जब राजनीतिक दल इन्हें समझने लगे हैं, तो ये वर्ग खुद भी जागरूक हो रहा है। कई राज्यों में गिग वर्कर्स यूनियन बना रहे हैं, हड़तालें कर रहे हैं और ऑनलाइन संगठित हो रहे हैं। यही वो वर्ग है, जो सोशल मीडिया से लेकर सड़कों तक अपनी आवाज़ बुलंद करने की ताकत रखता है। राजनीतिक पंडितों का मानना है कि 2029 तक देश में गिग वर्कर्स की संख्या 2.3 करोड़ को पार कर जाएगी और अगर इनके परिवार और प्रभाव को भी जोड़ लें, तो ये 10 करोड़ से ज़्यादा वोटर्स को प्रभावित करने वाली बड़ी चुनावी ताकत बन सकते हैं।

राजनीति की नई पाठशाला: ऐप्स से नहीं, अब वोट से चलेगी डिलीवरी

गिग वर्कर्स अब चुनावी घोषणापत्रों का हिस्सा बन चुके हैं। 2024 के लोकसभा चुनावों के लिए कांग्रेस और बीजेपी दोनों अपने ‘गिग पॉलिसी फ्रेमवर्क’ को अंतिम रूप दे रहे हैं। कांग्रेस इसे ‘श्रमिक क्रांति’ की संज्ञा दे रही है तो बीजेपी इसे ‘डिजिटल श्रम सशक्तिकरण’ कह रही है। लेकिन जनता जानती है — कौन सिर्फ ऐप में नोटिफिकेशन भेज रहा है और कौन वाकई पॉलिसी में बदलाव लाना चाहता है।

क्या ये चुनाव 'गिग वर्सेज़ गवर्नमेंट' का होगा?

राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि 2025 के बिहार और 2027 के उत्तर प्रदेश जैसे बड़े चुनावों में गिग वर्कर्स का मुद्दा फोकस में होगा। जाति और धर्म के बाहर का एक नया वोट बैंक तैयार हो रहा है, जो न सामाजिक समीकरण से जुड़ा है, न धर्म की राजनीति से। ये वर्ग केवल नौकरी, सुरक्षा और सम्मान चाहता है और शायद यही वजह है कि गिग वर्कर्स आज भारत की सबसे खामोश लेकिन सबसे ताकतवर राजनीतिक आवाज़ बनते जा रहे हैं।

अंत में सवाल बस एक है —

“जो रोज़ हमारे लिए खाना, दवा, सवारी और सुविधा पहुंचाता है... क्या अब उसकी बारी है वोट से अपनी किस्मत बदलने की?” राजनीति जवाब देगी — लेकिन देर न हो जाए, क्योंकि गिग वर्कर्स अब “ऑर्डर कैंसिल” करना भी जानते हैं।

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Harsh Srivastava

News Coordinator and News Writer

Harsh Shrivastava is an enthusiastic journalist who has been actively writing content for the past one year. He has a special interest in crime, politics and entertainment news. With his deep understanding and research approach, he strives to uncover ground realities and deliver accurate information to readers. His articles reflect objectivity and factual analysis, which make him a credible journalist.

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