हज़रतबल दरगाह: पैगेंबर मोहम्मद से जुड़ी ये जगह क्यों है खास, अशोक चिह्न पर विवाद का कारण क्या?

हज़रतबल दरगाह में अशोक चिह्न पर विवाद, जम्मू-कश्मीर में धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुँचाने को लेकर मचा हंगामा। जानें क्या है इस विवाद के कारण और हज़रतबल की विशेष महत्वता।

Harsh Sharma
Published on: 7 Sept 2025 9:47 AM IST
हज़रतबल दरगाह: पैगेंबर मोहम्मद से जुड़ी ये जगह क्यों है खास, अशोक चिह्न पर विवाद का कारण क्या?
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जम्मू-कश्मीर के श्रीनगर स्थित हज़रतबल दरगाह में लगे फाउंडेशन स्टोन पर अशोक चिह्न को लेकर विवाद शुरू हो गया है। कुछ लोगों ने जम्मू-कश्मीर वक्फ बोर्ड के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किया है, और सोशल मीडिया पर इस स्टोन पर बने अशोक चिह्न को तोड़ने के वीडियो भी वायरल हो रहे हैं। यह घटना शुक्रवार को, जब ईद-ए-मिलाद उन नबी मनाई जा रही थी, हुई। इसके बाद जम्मू-कश्मीर वक्फ बोर्ड की चेयरपर्सन दरक्शां अंद्राबी ने मामले में एफआईआर दर्ज करने की अपील की है। वहीं, सत्तारूढ़ पार्टी नेशनल कॉन्फ्रेंस (एनसी) ने कहा कि "हमारे मज़ार हमारे विश्वास, विनम्रता और एकता के प्रतीक हैं, इन स्थलों को केवल इबादत का स्थान होना चाहिए, न कि विभाजन का।

श्रीनगर में बीबीसी के हवाले से बताया गया कि कुछ समय पहले हज़रतबल दरगाह का पुनर्निर्माण कार्य शुरू हुआ था। इस दौरान हज़रतबल दरगाह में एक फाउंडेशन स्टोन लगाया गया, जिसमें जम्मू-कश्मीर वक्फ बोर्ड की चेयरपर्सन और बीजेपी नेता दरक्शां अंद्राबी सहित बोर्ड के कुछ अन्य सदस्यों के नाम थे।


इस स्टोन पर बने अशोक चिह्न ने विवाद पैदा कर दिया

लेकिन इस स्टोन पर बने अशोक चिह्न ने विवाद पैदा कर दिया, जिससे कई लोग नाराज़ हो गए। आलोचकों का कहना है कि अंद्राबी और उनके साथ काम करने वाले मौलवियों ने इस कदम से जम्मू-कश्मीर के मुसलमानों की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाई है। शुक्रवार को कुछ गुस्साए लोगों ने इस चिह्न को तोड़ने की कोशिश की। इस घटना के वीडियो सोशल मीडिया पर तेजी से फैल गए हैं। श्रीनगर की यह मस्जिद मुसलमानों के लिए बहुत खास है, क्योंकि मान्यता है कि यहां पैगंबर मोहम्मद की दाढ़ी का बाल (मोई-ए-मुकद्दस) रखा गया है। इसे अस्सार-ए-शरीफ़, दरगाह शरीफ़ और मदीनात-उस-सनी के नाम से भी जाना जाता है।


इस दरगाह का निर्माण 1968 में हुआ था

इस दरगाह का निर्माण 1968 में मुस्लिम औकाफ ट्रस्ट के शेख़ मोहम्मद अब्दुल्ला की देखरेख में शुरू हुआ था, और यह 1979 में पूरा हुआ। मोई-ए-मुकद्दस को 1699 में कश्मीर लाया गया था। पहले इसे नक्शबाद साहिब में रखा गया, लेकिन बाद में इसे हज़रतबल दरगाह में स्थानांतरित कर दिया गया। हर साल शब-ए-मेराज और मिलाद-उन-नबी जैसे विशेष मौकों पर, लोग इस दरगाह में पैगंबर मोहम्मद के मोई-ए-मुकद्दस को देखने के लिए जम्मू-कश्मीर के विभिन्न हिस्सों और दूर-दराज इलाकों से आते हैं। इस्लाम में यह माना जाता है कि शब-ए-मेराज की रात को ही इस्लाम के आख़िरी पैगंबर हज़रत मोहम्मद ने यात्रा की थी और अल्लाह से मुलाक़ात की थी।


एक शर्मनाक हमला बताया

तोड़फोड़ की घटना के बाद दरक्शां अंद्राबी ने शुक्रवार शाम को मीडिया से बात करते हुए इसे एक शर्मनाक हमला बताया। उन्होंने बिना किसी पार्टी का नाम लिए हुए एक राजनीतिक दल की ओर इशारा करते हुए कहा, "नेशनल एम्बलेम को तोड़ना एक अपराध है। यह एक राजनीतिक पार्टी के गुंडों ने किया है।" कहा जा रहा है कि अंद्राबी का इशारा नेशनल कॉन्फ्रेंस की ओर था। उन्होंने आरोप लगाते हुए कहा, "यह वही पार्टी है जिसने पहले कश्मीर में तबाही मचाई थी, और अब यह दरगाह शरीफ़ में भी घुस आई है।"


गुंडे भेजे और हमला करवा दिया

उन्होंने यह भी कहा, "हमारा प्रशासनिक अधिकारी मरते-मरते बचा है, उन पर भी हमला हुआ था। शुक्रवार को पूरी दुनिया में दरगाह शरीफ़ का वीडियो वायरल हो रहा था, लेकिन इन लोगों को यह सब चुभ रहा था, इसलिए इन्होंने अपने गुंडे भेजे और हमला करवा दिया।" दरक्शां अंद्राबी ने पब्लिक सेफ्टी एक्ट के तहत एफआईआर दर्ज करने की अपील की और कहा, "कानूनी तौर पर नेशनल एम्बलेम को नुकसान पहुंचाना अपराध है। उन्होंने दरगाह की संपत्ति को भी नुकसान पहुंचाया है। इन लोगों की पहचान की जाएगी, और जिन्हें पहचाना जाएगा, उन्हें उम्र भर के लिए दरगाह से बैन कर दिया जाएगा और उनके खिलाफ एफआईआर दर्ज की जाएगी।"


पत्थर लगाने की क्या जरूरत थी

सत्ताधारी नेशनल कॉन्फ्रेंस (एनसी) के नेता और जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्लाह ने हज़रतबल दरगाह में लगे एम्बलेम पर सवाल उठाया। उन्होंने कहा, "क्या इस पत्थर पर एम्बलेम लगाना जरूरी था? यह सवाल उठता है।" मीडिया से बातचीत करते हुए उमर अब्दुल्लाह ने कहा, "मैंने कभी भी किसी धार्मिक स्थल या धार्मिक आयोजन में एम्बलेम का इस्तेमाल होते हुए नहीं देखा। क्या यह मजबूरी थी कि हज़रतबल दरगाह पर एम्बलेम लगाया गया?"उन्होंने आगे कहा, "पत्थर लगाने की क्या जरूरत थी? क्या जो काम हुआ, वह पर्याप्त नहीं था? अगर काम सही तरीके से किया जाता, तो लोग खुद ही उस काम को पहचानते।" उमर अब्दुल्लाह ने माफी की मांग करते हुए कहा, "मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारा, ये सभी धार्मिक स्थल हैं, जहां नेशनल एम्बलेम का इस्तेमाल नहीं होना चाहिए। यह सिर्फ सरकारी कार्यक्रमों में इस्तेमाल होता है।"

इससे पहले जम्मू-कश्मीर नेशनल कॉन्फ्रेंस (जेकेएनसी) ने अंद्राबी के आरोपों का जवाब देते हुए सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर एक बयान जारी किया। बयान में कहा गया कि पार्टी हमेशा शेख़ मोहम्मद अब्दुल्ला के मार्गदर्शन में काम करती है, जिन्होंने हिंदू, मुस्लिम, सिख सभी धर्मों में एकता, एक-दूसरे का सम्मान और सभी आस्थाओं की गरिमा को पार्टी की विचारधारा का मूल बताया था।


इस्लाम के मूल सिद्धांतों के खिलाफ काम किया जा रहा है

नेशनल कॉन्फ्रेंस ने अपने बयान में कहा, "यह एक गंभीर चिंता का विषय है कि इस्लाम के मूल सिद्धांतों के खिलाफ काम किया जा रहा है। जैसे कि हज़रतबल दरगाह के अंदर किसी जीवित प्राणी की तस्वीर या कोई सांकेतिक चित्र का इस्तेमाल किया गया है। यह जगह हज़ारों लोगों के लिए आस्था का केंद्र है। इस्लाम में तौहीद के सिद्धांत के अनुसार इस तरह के प्रतीकों का उपयोग नहीं किया जा सकता। यह केवल एक छोटा मुद्दा नहीं है, बल्कि यह श्रद्धालुओं की धार्मिक भावनाओं से गहरे तौर पर जुड़ा है।" वक्फ कोई निजी संपत्ति नहीं है, बल्कि यह एक ट्रस्ट है जो आम मुसलमानों के योगदान से चलता है। इसका संचालन लोगों की आस्था और परंपरा के अनुसार ही होना चाहिए।

नेशनल कॉन्फ्रेंस ने अपने बयान में वक़्फ़ बोर्ड की चेयरपर्सन पर तंज कसते हुए कहा, "हम देख रहे हैं कि ऐसे लोग, जिनका चुनाव नहीं हुआ और जिनके पास जम्मू-कश्मीर के लोगों का समर्थन नहीं है, वे इस पवित्र स्थल पर उच्च पदों पर बैठे हुए हैं। यह न सिर्फ दरगाह की पवित्रता का अपमान है, बल्कि यह जिम्मेदारी और विनम्रता जैसे मूल सिद्धांतों का भी मजाक उड़ाता है।"

पब्लिक सेफ्टी कानून के तहत गिरफ्तारी की धमकियां

एनसी ने आगे कहा, "यह चिंताजनक है कि लोगों की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने के बाद, माफी मांगने की बजाय पब्लिक सेफ्टी कानून के तहत गिरफ्तारी की धमकियां दी जा रही हैं।" बयान में अंत में यह भी लिखा गया, "हमारे पवित्र स्थल हमारी आस्था, विनम्रता और एकता के प्रतीक हैं। इन स्थानों को विभाजन का कारण नहीं बनना चाहिए, बल्कि यह हमेशा इबादत का स्थान बने रहना चाहिए।" वहीं, एनसी के मुख्य प्रवक्ता और ज़ादीबल से विधायक तनवीर सादिक़ ने कहा कि दरगाह पर जीवित प्राणी की तस्वीर लगाना इस्लाम के खिलाफ है, क्योंकि इस्लाम में मूर्ति पूजा मना है। उन्होंने समाचार एजेंसी से कहा, "किसी भी धार्मिक भावना को ठेस पहुंचाना गलत है। हम इसकी कड़ी आलोचना करते हैं। उन्हें यह समझना चाहिए कि इस्लाम में मूर्ति पूजा पर सख्त पाबंदी है। यह कोई सरकारी इमारत नहीं, बल्कि एक दरगाह है।


किसी भी प्रकार की बेअदबी को सहन नहीं किया जाएगा

पीडीपी प्रमुख महबूबा मुफ्ती ने शुक्रवार को श्रीनगर में हुई घटना की कड़ी निंदा की है। समाचार एजेंसी पीटीआई से बात करते हुए उन्होंने कहा, "यह दरगाह पैगंबर मोहम्मद से जुड़ी हुई है, और यहां किसी भी प्रकार की बेअदबी को सहन नहीं किया जाएगा।" महबूबा ने आगे कहा, "मुसलमानों के लिए पैगंबर मोहम्मद से बड़ा कोई नहीं है, और इस तरह की बेअदबी से लोगों की भावनाएं आहत हो गई हैं। लोग एम्बलेम के खिलाफ नहीं हैं, लेकिन इस्लाम में मूर्ति पूजा मना है, इसलिए उनका सवाल है कि यह यहां क्यों लगाया गया।"

फाउंडेशन स्टोन में ऐसी चीज़ क्यों रखी जो इस्लाम में वर्जित है

उन्होंने कहा, "यह कहना कि पब्लिक सेफ्टी क़ानून के तहत लोगों के खिलाफ गिरफ्तारी की जानी चाहिए, यह गलत है। मुझे लगता है कि इसके खिलाफ 295A के तहत मामला दर्ज किया जाना चाहिए, क्योंकि यह मुसलमानों के लिए ईश निंदा के बराबर है।" महबूबा मुफ्ती ने मुख्यमंत्री से कार्रवाई की अपील करते हुए कहा, "मैं मुख्यमंत्री से गुज़ारिश करूंगी कि इस मामले में वक्फ़ बोर्ड को जिम्मेदार ठहराया जाए, क्योंकि यह एक धार्मिक स्थल है और सभी मुसलमान इस्लाम की मान्यताओं से भली-भांति परिचित हैं। उन्हें यह समझना चाहिए था कि उन्होंने फाउंडेशन स्टोन में ऐसी चीज़ क्यों रखी जो इस्लाम में वर्जित है।

पूरे देश में शुक्रवार को ईद-ए-मिलाद उन नबी मनाई गई, लेकिन जम्मू-कश्मीर में इसके लिए सरकारी छुट्टी शनिवार को दी गई थी। जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्लाह ने इस पर एक सोशल मीडिया पोस्ट में कहा कि प्रशासन का यह फैसला, छुट्टी को शुक्रवार से शनिवार पर स्थानांतरित करने का, असंवेदनशील था और यह लोगों की भावनाओं को ठेस पहुँचाने के लिए लिया गया था। उमर अब्दुल्लाह ने सरकारी प्रेस द्वारा छापे गए कैलेंडर की एक तस्वीर साझा की, जिसमें 5 सितंबर को ईद-ए-मिलाद-उन-नबी की छुट्टी चांद दिखने के आधार पर घोषित की गई थी। उन्होंने लिखा, "इसका मतलब यह है कि छुट्टी चांद दिखने पर बदल सकती है। फिर भी, गैर-निर्वाचित सरकार ने जानबूझकर यह निर्णय लिया, जो असंवेदनशील था और लोगों की भावनाओं को ठेस पहुँचाने के लिए किया गया।"



वहीं, प्रदेश सरकार में मंत्री सकीना इट्टू ने भी सवाल उठाते हुए कहा कि "चांद दिखने के आधार पर" छुट्टी का क्या मतलब जब इस पर पालन ही न किया जाए। उन्होंने सोशल मीडिया पर लिखा, "चुनी हुई सरकार द्वारा कई बार छुट्टी के दिन को बदलने की मांग की गई, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं की गई। इस तरह के फैसले चुनी हुई सरकार को ही लेने चाहिए।" पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) की इल्तजा मुफ़्ती ने इस मुद्दे के लिए एनसी सरकार को जिम्मेदार ठहराया। उन्होंने कहा, "यह दुखद है कि दुनियाभर के मुसलमानों के लिए महत्वपूर्ण ईद-ए-मिलाद जैसे मुबारक मौके को जम्मू-कश्मीर में सही दिन पर नहीं मनाया गया। हम देख रहे हैं कि बहुमत होने के बावजूद एनसी सरकार ऐसे फैसलों को सामान्य और वैध बना देती है।" ऑल पार्टीज़ हुर्रियत कॉन्फ्रेंस के मीरवाइज़ उमर फ़ारूख़ ने भी इस पर प्रतिक्रिया दी और कहा, "यह दूसरी बार है जब प्रदेश के मुसलमानों की भावनाओं को नजरअंदाज करते हुए छुट्टी की तारीख नहीं बदली गई। इस मामले में प्रदेश की चुनी हुई सरकार चुप है, यह देखकर बहुत दुःख होता है।"

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