Naxalite Movement Ka Itihas: कैसे एक छोटे से गाँव से शुरू हुआ नक्सल आंदोलन बना भारत के 'रेड कॉरिडोर' की बड़ी कहानी

नक्सल आंदोलन की जड़ें भारत की सामाजिक और आर्थिक असमानता में हैं, जानिए पूरी कहानी सच्चाई, कारण और असर

Shivani Jawanjal
Published on: 3 Jun 2025 8:25 PM IST
History of Naxalite Movement
X

History of Naxalite Movement (Image Credit-Social Media)

History Of Naxalite Movement: भारत की आंतरिक सुरक्षा के सामने नक्सलवाद एक गंभीर और जटिल चुनौती के रूप में खड़ा है। यह समस्या केवल कानून-व्यवस्था तक सीमित नहीं है, बल्कि इसके मूल में गहराई से जमी सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक असमानताएँ हैं। नक्सल आंदोलन की शुरुआत एक वैचारिक क्रांति के रूप में हुई थी, जिसका उद्देश्य शोषित और वंचित वर्गों के अधिकारों के लिए संघर्ष करना था। लेकिन समय के साथ यह आंदोलन उग्रवाद और हिंसा की राह पर चल पड़ा, जिससे देश के कई हिस्सों में अस्थिरता और विकास में बाधा उत्पन्न हुई। इस आंदोलन का प्रभाव विशेष रूप से उन क्षेत्रों में अधिक दिखाई देता है, जिन्हें 'रेड कॉरिडोर' या 'लाल गलियारा' कहा जाता है एक ऐसा भू-भाग जहाँ राज्य की पहुँच कमजोर है और नक्सली प्रभाव मजबूत। इस लेख में हम नक्सलवाद के ऐतिहासिक परिपेक्ष्य पर प्रकाश डालेंगे।

नक्सल आंदोलन की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि


नक्सल आंदोलन की शुरुआत 1967 में पश्चिम बंगाल के दार्जिलिंग जिले के नक्सलबाड़ी गांव से हुई, जब स्थानीय किसानों और आदिवासियों ने जमींदारों के अत्याचार और शोषण के खिलाफ विद्रोह किया। इस आंदोलन का नेतृत्व चारु मजूमदार, कानू सान्याल, कन्हाई चटर्जी और जंगल संथाल जैसे वामपंथी विचारधारा से प्रेरित नेताओं ने किया था । इन नेताओं ने माओ त्से तुंग की क्रांतिकारी विचारधारा माओवाद से प्रभावित होकर भारत में सशस्त्र क्रांति का आह्वान किया। उनका मानना था कि राज्य तंत्र, जमींदारी प्रथा और पूंजीवादी ढांचा गरीबों, विशेषकर किसानों और आदिवासियों, के शोषण का कारण है, जिसे केवल हथियारबंद संघर्ष के माध्यम से ही बदला जा सकता है। आंदोलन का मूल उद्देश्य भारतीय राज्य व्यवस्था को उखाड़ फेंककर एक समानतावादी साम्यवादी समाज की स्थापना करना था।

नक्सलवाद और माओवाद में अंतर


नक्सलवाद और माओवाद अक्सर एक-दूसरे के पर्याय के रूप में प्रयुक्त होते हैं, लेकिन दोनों में कुछ सूक्ष्म अंतर हैं।नक्सलवाद भारत में उत्पन्न एक आंदोलन है, जिसकी नींव 1967 में पश्चिम बंगाल के नक्सलबाड़ी गांव में रखी गई थी। यह आंदोलन मुख्यतः जमींदारों और सरकारी तंत्र द्वारा गरीब किसानों और आदिवासियों पर किए जा रहे शोषण के खिलाफ एक प्रतिक्रिया थी, जिसका आधार गहरे सामाजिक-आर्थिक असंतोष में निहित था। धीरे-धीरे इस आंदोलन में माओ त्से तुंग की विचारधारा माओवाद का प्रभाव बढ़ता गया, जो सशस्त्र संघर्ष और हिंसक क्रांति के माध्यम से सत्ता परिवर्तन की वकालत करता है। यद्यपि माओवाद एक विदेशी (चीनी) राजनीतिक विचारधारा है, लेकिन भारतीय नक्सल आंदोलन के साथ इसका मेल ऐसा हुआ कि आज यह आंदोलन माओवादी विद्रोह के रूप में जाना जाता है। नक्सलवाद जहां स्थानीय समस्याओं और असंतोष से उपजा था, वहीं माओवाद एक संगठित और वैचारिक रणनीति है, जो सशस्त्र क्रांति को एकमात्र समाधान मानती है। यही कारण है कि समय के साथ नक्सलवाद ने माओवाद का स्वरूप ग्रहण कर लिया है।

नक्सल आंदोलन का विस्तार

1967 में पश्चिम बंगाल से शुरू हुआ नक्सल आंदोलन धीरे-धीरे देश के विभिन्न हिस्सों में फैलता गया और बिहार, झारखंड, ओडिशा, छत्तीसगढ़, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, महाराष्ट्र तथा मध्य प्रदेश जैसे राज्यों में इसकी मजबूत पकड़ बन गई। इन इलाकों को आज 'लाल गलियारा' (Red Corridor) कहा जाता है, जो मुख्यतः आदिवासी बहुल, आर्थिक रूप से पिछड़े और विकास की दौड़ में उपेक्षित क्षेत्र हैं। यहां के लोग वर्षों से भूमि विवाद, सरकारी उपेक्षा, बेरोजगारी और पुलिस अत्याचार जैसी समस्याओं से जूझते रहे हैं, जिसने उन्हें नक्सलवाद की ओर मोड़ दिया। 2000 के दशक में यह आंदोलन अधिक संगठित रूप में उभरा और 2004 में ‘पीपुल्स वार ग्रुप’ (PWG) तथा ‘माओवादी कम्युनिस्ट सेंटर’ (MCC) के विलय से 'भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी)' का गठन हुआ, जो आज भी नक्सली गतिविधियों का नेतृत्व कर रहा है। यह संगठन अब भी इन क्षेत्रों में राज्य सत्ता को चुनौती देता है, और हिंसक गतिविधियों के ज़रिए अपनी विचारधारा फैलाने की कोशिश करता है।

रेड कॉरिडोर क्या है?


रेड कॉरिडोर उस भौगोलिक क्षेत्र को कहा जाता है जहाँ नक्सलवादी गतिविधियाँ अत्यधिक सक्रिय हैं। यह क्षेत्र पूर्वी, मध्य और दक्षिण भारत के कई हिस्सों में फैला हुआ है, जिसमें झारखंड, छत्तीसगढ़, ओडिशा, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, पश्चिम बंगाल, बिहार और मध्य प्रदेश जैसे राज्य प्रमुख हैं। 2019 तक भारत सरकार ने 11 राज्यों के लगभग 90 जिलों को वामपंथी उग्रवाद (Left Wing Extremism - LWE) से प्रभावित क्षेत्र घोषित किया था, जो पहले 100 से अधिक थे। इन क्षेत्रों को सरकार ने सुरक्षा की दृष्टि से संवेदनशील और सामाजिक-आर्थिक रूप से पिछड़ा मानते हुए विशेष निगरानी और विकास के लिए चिन्हित किया है। नक्सल प्रभाव को कम करने के लिए सरकार इन इलाकों में सड़क, शिक्षा, स्वास्थ्य, और रोजगार जैसे बुनियादी विकास कार्यों के साथ-साथ सुरक्षा अभियानों को भी समानांतर रूप से चला रही है।

नक्सल आंदोलन के कारण

नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में नक्सलवाद के उभार के पीछे कई गहरे सामाजिक और आर्थिक कारण हैं, जिनमें गरीबी, बेरोजगारी, शिक्षा की कमी और बुनियादी सुविधाओं का अभाव प्रमुख हैं। दशकों से लंबित भूमि सुधार और विकास की धीमी गति ने लोगों के भीतर असंतोष को जन्म दिया है। खनिज संसाधनों से समृद्ध इन क्षेत्रों में जबरन भूमि अधिग्रहण, अपर्याप्त मुआवजा और उचित पुनर्वास की कमी ने आदिवासियों और स्थानीय निवासियों के जीवन को बुरी तरह प्रभावित किया है, जिससे नक्सल आंदोलन को अप्रत्यक्ष रूप से समर्थन मिला है। इसके अलावा, राजनीतिक उपेक्षा, प्रशासनिक भ्रष्टाचार, पुलिस अत्याचार और न्यायिक तंत्र की विफलता ने शासन के प्रति लोगों का विश्वास कमजोर किया है। आदिवासियों के पारंपरिक अधिकारों जैसे जंगल, जमीन और जल की उपेक्षा ने उन्हें अपने ही क्षेत्र में पराया बना दिया है, जिससे वे सामाजिक रूप से हाशिए पर चले गए हैं। यही सब कारण नक्सलवाद की जड़ें गहराई तक फैलाने में सहायक रहे हैं।

सरकार की प्रतिक्रिया

नक्सलवाद से निपटने के लिए भारत सरकार ने एक दोहरी नीति अपनाई है, जिसमें सुरक्षा और विकास दोनों पहलुओं को प्राथमिकता दी गई है। सुरक्षा के मोर्चे पर केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (CRPF), कोबरा कमांडो और विशेष टास्क फोर्स (STF) जैसी सशस्त्र इकाइयों की तैनाती की गई है। वहीं विकास के लिए प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना, एकलव्य मॉडल आवासीय विद्यालय, राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन और वन अधिकार अधिनियम जैसे कार्यक्रमों को लागू किया गया है, ताकि स्थानीय जनता को मुख्यधारा से जोड़ा जा सके। 2009 में शुरू किए गए 'ऑपरेशन ग्रीन हंट' के तहत माओवादी नेटवर्क को तोड़ने और राज्य की पकड़ मजबूत करने के लिए बड़े पैमाने पर सैन्य अभियान चलाया गया। इन प्रयासों का परिणाम यह हुआ कि नक्सल प्रभावित जिलों की संख्या, जो 2010 में 200 से अधिक थी, वह 2023-24 तक घटकर लगभग 70-90 के बीच रह गई है। हालांकि, विशेषज्ञों का मानना है कि नक्सलवाद पूरी तरह समाप्त नहीं हुआ है; इसकी रणनीति और गतिविधियाँ भले ही बदली हों, लेकिन यह कई क्षेत्रों में अब भी एक गंभीर चुनौती बना हुआ है।

नक्सल आंदोलन के प्रभाव


नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में नक्सलवाद ने न केवल सुरक्षा और शासन व्यवस्था को चुनौती दी है, बल्कि इसके कारण गंभीर मानवीय, विकासात्मक और राजनीतिक समस्याएँ भी उत्पन्न हुई हैं। नक्सली और सुरक्षाबल दोनों ही मानवाधिकार उल्लंघनों के आरोपों में घिरे रहे हैं, और निर्दोष ग्रामीण, विशेषकर आदिवासी समुदाय, इन दोनों पक्षों के बीच सबसे अधिक पीड़ित हुए हैं। मानवाधिकार आयोगों और अंतरराष्ट्रीय संगठनों ने बार-बार इस मुद्दे पर चिंता व्यक्त की है। इसके अतिरिक्त, लगातार हिंसा और असुरक्षा के माहौल ने रेड कॉरिडोर के इलाकों में सड़क, स्कूल, अस्पताल, बिजली जैसी बुनियादी सुविधाओं के विकास को गंभीर रूप से बाधित किया है। कई बार नक्सलियों द्वारा सरकारी संपत्तियों को नुकसान पहुँचाने से विकास कार्य रुक गए या पूरी तरह नष्ट हो गए। राजनीतिक दृष्टि से भी स्थिति अस्थिर रही है चुनाव प्रक्रिया बार-बार बाधित हुई, मतदान केंद्रों पर हमले हुए, और ग्रामीणों को वोट न डालने की धमकियाँ दी गईं। परिणामस्वरूप, लोकतांत्रिक प्रक्रिया कमजोर हुई और लोगों का शासन प्रणाली पर विश्वास भी डगमगाया।

क्या है समाधान?

नक्सलवाद से स्थायी समाधान के लिए केवल सुरक्षा कार्रवाई पर्याप्त नहीं, बल्कि व्यापक सामाजिक पुनर्संरचना और संवाद पर आधारित नीति की आवश्यकता है। नक्सलियों को मुख्यधारा में लाने के लिए संवाद और आत्मसमर्पण एक प्रभावी रणनीति मानी जाती है। कई राज्यों ने आत्मसमर्पण और पुनर्वास नीतियाँ लागू की हैं, जिनके अंतर्गत आत्मसमर्पण करने वाले नक्सलियों को रोजगार, शिक्षा और सम्मानजनक जीवन की सुविधा दी जाती है। विकास योजनाओं में स्थानीय समुदाय की भागीदारी से उनकी स्वीकार्यता और सफलता में वृद्धि होती है, जिससे लोगों को निर्णय प्रक्रिया का हिस्सा महसूस होता है और लोकतांत्रिक मूल्यों को बल मिलता है। शिक्षा, कौशल विकास और रोजगार के अवसर युवाओं को हिंसा और कट्टरपंथ से दूर रखने में सहायक होते हैं, जिससे वे आर्थिक और सामाजिक रूप से सशक्त बनते हैं। साथ ही, पुलिस व्यवस्था में सुधार, संवेदनशीलता का प्रशिक्षण और जनता से संवाद पर बल देकर प्रशासन में विश्वास का माहौल बनाया जा सकता है। एक मानवीय, उत्तरदायी और सहभागी दृष्टिकोण ही नक्सलवाद जैसी जटिल समस्या के दीर्घकालिक समाधान का मार्ग प्रशस्त कर सकता है।

Start Quiz

This Quiz helps us to increase our knowledge

Ramkrishna Vajpei

Ramkrishna Vajpei

Next Story