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धरती कांपी, 'ज्वालामुखी' फटा! भारत पर मंडरा रहा है विनाश का खतरा: रिपोर्ट
India Volcano Erupts: भारत का एकमात्र सक्रिय ज्वालामुखी 20 सितंबर को फिर से फट गया। यह दावा एक्सपर्ट ने किया है।
India Active Volcano Erupts
India Volcano Erupts: अंडमान द्वीप समूह के बैरन द्वीप पर स्थित भारत का एकमात्र सक्रिय ज्वालामुखी 20 सितंबर को फिर से फट गया। यह घटना इतनी दुर्लभ थी कि इसने पूरे दक्षिण एशिया के लिए एक असाधारण दृश्य पेश किया। विस्फोट के बाद आसमान में राख और धुआं फैल गया, और नारंगी रंग का लावा धीरे-धीरे बहने लगा। वैज्ञानिकों के मुताबिक, यह घटना दो दिन पहले आए 4.2 तीव्रता के भूकंप के कारण हुई।
भूकंप और ज्वालामुखी का है गहरा नाता
यह विस्फोट भले ही छोटा था और आसपास के बस्तियों, जहां लोग रहते हैं, के लिए कोई खतरा नहीं था, लेकिन इसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है। यह 1991 के बाद से चौथी बार हुआ है, जब इस ज्वालामुखी में विस्फोट हुआ है, और सबसे जरूरी बात यह है कि यह द्वीप एक फॉल्ट लाइन पर स्थित है, जो 2004 की विनाशकारी सुनामी का कारण बनी थी।
राष्ट्रीय भूकंप विज्ञान केंद्र के निदेशक ओ. पी. मिश्रा ने बताया कि यह फॉल्ट लाइन ठीक उसी अक्षांश पर है, जहां बैरन द्वीप का ज्वालामुखी है। इस भूकंप ने ज्वालामुखी के अंदर मौजूद मैग्मा चैंबर को हिला दिया, जिससे "समय से पहले मैग्मैटिक विस्फोट" हो गया।
क्यों फटता है बैरन ज्वालामुखी?
ओ. पी. मिश्रा के मुताबिक, अंडमान-निकोबार द्वीप समूह एक सबडक्शन कॉम्प्लेक्स पर स्थित है, जहां भारतीय प्लेट नीचे की ओर खिसक रही है और सुंडा प्लेट से टकरा रही है। इस प्रक्रिया में लगातार भूकंप आते रहते हैं, जिससे मैग्मा चैंबर में हलचल होती है।
बैरन ज्वालामुखी का व्यास लगभग 3.2 किलोमीटर है और यह समुद्र तल से लगभग 2 किलोमीटर ऊपर उठा हुआ है, जिसकी औसत ऊंचाई 300 मीटर है। हालांकि यह सालों से सक्रिय है, लेकिन इसमें विस्फोट रुक-रुक कर होते हैं। जब 18-20 किलोमीटर की गहराई पर स्थित मैग्मा चैंबर भूकंप की ऊर्जा से हिलते हैं, तो लावा सतह की ओर धकेला जाता है और ज्वालामुखी से बाहर निकलता है।
ओ. पी. मिश्रा ने बताया कि इस तरह के रुक-रुक कर होने वाले ज्वालामुखी विस्फोट पहले भी देखे गए हैं। 1991 में, फिर 2004 और 2005 में और अब 2025 में। उन्होंने समझाया कि लावा और मैग्मा हमेशा हिलती हुई अवस्था में रहते हैं और जब भूकंप की हलचल दरारों और फ्रैक्चर को चौड़ा कर देती है, तो यह गर्म सामग्री सतह की ओर धकेल दी जाती है। इस क्षेत्र में एक और ज्वालामुखी है, जिसका नाम है नार्कोंडम, लेकिन वह फिलहाल निष्क्रिय है।
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