उत्तराखंड थराली में बादल फटा: तबाही से गूंजा हिमालय, खतरे की घंटी

चमोली जिले के थराली में बादल फटने से तबाही, कई घर मलबे में दबे। आपदा ने हिमालय की नाजुक पारिस्थितिकी और मानव हस्तक्षेप की हदें दिखाईं।

Ramkrishna Vajpei
Published on: 23 Aug 2025 10:55 AM IST
Uttarakhand Tharali
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Uttarakhand Tharali Cloudburst Sparks Himalayan Disaster (Image from Social Media))

Dehradun News: हिमालय की गोद में बसे उत्तराखंड पर एक बार फिर प्रकृति का कहर टूटा है। चमोली जिले के थराली क्षेत्र में 22 अगस्त की आधी रात बादल फटने से भारी तबाही मची। अचानक आई बाढ़ और मलबे ने न सिर्फ घरों को बहा दिया बल्कि सरकारी दफ्तरों और बुनियादी ढांचे को भी भारी नुकसान पहुँचाया।

रात के सन्नाटे में चीखों का सैलाब

रात करीब 1 बजे आई आपदा में एसडीएम आवास, तहसील परिसर और आसपास की कई बस्तियाँ मलबे में दब गईं। देखते ही देखते सड़कों पर पानी और मलबे की परतें बिछ गईं। प्रशासन को आशंका है कि कई लोग मलबे में दबे हो सकते हैं। राहत और बचाव के लिए एनडीआरएफ व एसडीआरएफ की टीमें तैनात की गई हैं, लेकिन ऊबड़-खाबड़ इलाक़ा और लगातार बारिश काम को कठिन बना रही है।

हाल की आपदाओं की गूंज

थराली की यह त्रासदी उत्तरकाशी की हालिया घटना की याद दिलाती है, जब 5 अगस्त को धराली और सुखी टॉप क्षेत्र में खीर गंगा नदी के उफान से भारी नुकसान हुआ था। इससे पहले 2021 की चमोली आपदा और 2013 की केदारनाथ त्रासदी भी उत्तराखंड के लोगों के लिए गहरे जख्म छोड़ चुकी हैं।

वैज्ञानिकों की चिंता

विशेषज्ञों का कहना है कि उत्तराखंड की इन आपदाओं के पीछे केवल बादल फटना ही नहीं, बल्कि ग्लेशियरों का तेजी से पिघलना भी बड़ा कारण है। पिघलते ग्लेशियरों से बनी झीलें कभी भी टूटकर तबाही मचा सकती हैं। इसे ग्लेशियल लेक आउटबर्स्ट फ्लड (GLOF) कहा जाता है। जलवायु परिवर्तन के कारण ऐसी घटनाएँ और तेज़ी से बढ़ रही हैं।

मानव की भूमिका भी कम नहीं

विशेषज्ञों का मानना है कि अंधाधुंध विकास, जंगलों की कटाई, अवैध खनन और अनियोजित शहरीकरण ने हिमालयी पारिस्थितिकी को बेहद कमजोर बना दिया है। चार धाम सड़क परियोजना जैसी योजनाएँ और पर्यटन स्थलों पर बढ़ता दबाव आपदा के खतरे को और बढ़ा रहे हैं।

सीखने का समय

हालांकि मौसम विभाग के पास ऐसी घटनाओं का 6–14 घंटे पहले अलर्ट देने की क्षमता है, लेकिन इन्हें स्थानीय स्तर तक पहुँचाना और समय रहते कार्रवाई करना अब भी बड़ी चुनौती है। विशेषज्ञों का कहना है कि यदि विकास योजनाओं को पारिस्थितिकी के अनुरूप बनाया जाए, स्थानीय समुदायों को आपदा प्रबंधन का प्रशिक्षण दिया जाए और चेतावनी प्रणालियों को मजबूत किया जाए, तभी भविष्य की त्रासदियों को रोका जा सकता है। उत्तराखंड बार-बार हमें चेतावनी दे रहा है कि हिमालय की नाजुक संरचना के साथ खिलवाड़ भारी पड़ सकता है।

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