Indian Pakistan War: जानें भारत और पाकिस्तान केताकतवर जनरल की कहानी

Bharat Pakistan War: भारत और पाकिस्तान के जनरल्स का इतिहास, वर्तमान और भविष्य, इन दोनों देशों की नीतियों और अंतरराष्ट्रीय छवि को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

Shivani Jawanjal
Published on: 9 May 2025 8:33 AM IST
India Pakistan War Update History Of Military General
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India Pakistan War Update History Of Military General

Indian Pakistan War Update: भारत और पाकिस्तान के रिश्ते हमेशा से जटिल और संवेदनशील रहे हैं कभी युद्ध की ज्वाला में झुलसते, तो कभी शांति की उम्मीदों में डूबते। इन दोनों पड़ोसी देशों के इतिहास में जहां एक ओर कूटनीति और राजनीति की भूमिका महत्वपूर्ण रही है, वहीं दूसरी ओर सेनाओं के शीर्ष जनरलों का प्रभाव कहीं अधिक निर्णायक रहा है। ये सैन्य जनरल केवल रणनीति के निर्माता नहीं, बल्कि कई बार नीति निर्धारकों की पंक्ति में खड़े नज़र आते हैं। उनकी सोच, अनुभव और निर्णय दोनों देशों की सुरक्षा नीतियों से लेकर अंतरराष्ट्रीय मंचों पर रुख तक को प्रभावित करते हैं।

इस लेख में हम भारत और पाकिस्तान के प्रमुख सैन्य जनरलों के इतिहास, वर्तमान नेतृत्व, उनकी विचारधारा और उनकी भूमिका की समीक्षा करेंगे

जनरल्स की भूमिका की शुरुआत

स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद भारत और पाकिस्तान की सेनाओं की भूमिका और राजनीतिक हस्तक्षेप की दिशा एक-दूसरे से बिल्कुल भिन्न रही। भारत में सेना को राजनीति से दूर रखते हुए लोकतांत्रिक ढांचे के अधीन विकसित किया गया। जनरल के. एम. करिअप्पा, जिन्होंने 15 जनवरी 1949 को स्वतंत्र भारत के पहले भारतीय सेनाध्यक्ष के रूप में पदभार संभाला, ने सेना को पेशेवर, निष्पक्ष और लोकतांत्रिक मूल्यों के अनुरूप आकार दिया। इसके विपरीत, पाकिस्तान में जनरल अय्यूब खान 1951 में पहले पाकिस्तानी सेनाध्यक्ष बने और 1958 में राष्ट्रपति इस्कंदर मिर्ज़ा को अपदस्थ कर स्वयं सत्ता पर काबिज़ हो गए। उन्होंने मार्शल लॉ लागू कर राजनीतिक दलों पर प्रतिबंध, प्रेस पर सेंसरशिप और लोकतांत्रिक प्रक्रिया को बाधित किया। यह अंतर दर्शाता है कि जहां भारत में सेना ने लोकतंत्र की मर्यादाओं का सम्मान किया, वहीं पाकिस्तान में सेना ने राजनीतिक सत्ता हथियाने की परंपरा की शुरुआत कर दी।

वर्तमान सैन्य नेतृत्व - विचारधारा और रणनीतिक दृष्टिकोण


भारत के वर्तमान सेना प्रमुख - जनरल मनोज पांडे

जनरल मनोज पांडे (Manoj Pandey)2022 में भारतीय सेना के 29वें सेनाध्यक्ष बने। वे भारतीय सेना की इंजीनियरिंग कोर से आने वाले पहले सेनाध्यक्ष हैं। उनका नेतृत्व अत्याधुनिक रक्षा तकनीकों के उपयोग, पूर्वी सीमाओं (विशेषतः चीन) पर सामरिक संतुलन बनाए रखने और 'आत्मनिर्भर भारत' अभियान के तहत रक्षा उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए जाना जाता है।

उनकी रणनीति संयमित लेकिन सटीक मानी जाती है, जहाँ वह प्रत्यक्ष युद्ध के बजाय निगरानी, उन्नत हथियारों, साइबर युद्ध और अंतरराष्ट्रीय सैन्य सहयोग के माध्यम से भारत की सैन्य शक्ति को मजबूती देने पर बल देते हैं।

पाकिस्तान के वर्तमान सेना प्रमुख - जनरल आसिम मुनीर


जनरल सैयद असीम मुनीर अहमद शाह (General Aseem Munir) 2022 में पाकिस्तान के सेनाध्यक्ष बने। वे पहले ऐसे जनरल हैं जो ISI (इंटर-सर्विसेज इंटेलिजेंस) और MI (मिलिट्री इंटेलिजेंस) दोनों के प्रमुख रह चुके हैं। इससे उनकी पृष्ठभूमि न केवल सामरिक बल्कि खुफिया रणनीति में भी गहरी मानी जाती है।

हालांकि उन्होंने सत्ता में सीधे हस्तक्षेप से दूरी बनाए रखने की कोशिश की है, लेकिन पाकिस्तान की अस्थिर राजनीतिक स्थिति और सेना की पारंपरिक भूमिका के चलते उनका प्रभाव अभी भी निर्णायक बना हुआ है। भारत के प्रति उनका दृष्टिकोण पारंपरिक पाकिस्तान नीति जैसा ही कठोर है, और वे कश्मीर को मुख्य मुद्दा बनाए रखते हैं।

सैन्य नेतृत्व - विचारधारा और रणनीतिक दृष्टिकोण

भारत एक लोकतांत्रिक गणराज्य है जहाँ सेना पूरी तरह से नागरिक सरकार के अधीन कार्य करती है। भारतीय सेना का दायरा संविधान द्वारा निर्धारित है देश की बाहरी सुरक्षा, आपातकालीन स्थितियों में सहायता, और सीमाओं की रक्षा इसका मुख्य उत्तरदायित्व है। भारतीय सैन्य परंपरा हमेशा से पेशेवर आचरण, अनुशासन और लोकतांत्रिक मूल्यों के अनुरूप रही है, और इसमें जनरल बिपिन रावत तथा जनरल वी.पी. मलिक जैसे उच्चकोटि के सैन्य नेताओं का योगदान विशेष उल्लेखनीय रहा है।


जनरल बिपिन रावत(General Bipin Rawat) को 1 जनवरी 2020 को भारत का पहला चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (CDS) नियुक्त किया गया था । इस नई भूमिका में उन्होंने थल, वायु और नौसेना तीनों सेनाओं के बीच प्रभावी समन्वय स्थापित करने, एकीकृत "थिएटर कमांड" की आधारशिला रखने और सैन्य आधुनिकीकरण की दिशा में कई महत्वपूर्ण पहल कीं। दुर्भाग्यवश, एक हेलिकॉप्टर दुर्घटना में उनका निधन हो गया, लेकिन उनकी सोच और सुधार आज भी देश की रक्षा नीतियों को दिशा प्रदान कर रहे हैं।


दूसरी ओर, 1999 के कारगिल युद्ध के दौरान सेनाध्यक्ष रहे जनरल वी.पी. मलिक(general V.P. Malik) ने सीमित संसाधनों के बावजूद भारतीय सेना का साहसिक नेतृत्व किया। उनका प्रसिद्ध कथन “We will fight with what we have” युद्ध की कठिन परिस्थितियों में सेना के मनोबल और आत्मबल का प्रतीक बन गया। उनकी रणनीतिक सूझबूझ और निर्णायक नेतृत्व ने कारगिल युद्ध में भारत की विजय सुनिश्चित की। ये दोनों सेनानायक भारतीय सैन्य इतिहास में प्रेरणा और समर्पण की मिसाल बने हुए हैं।

पाकिस्तान के जनरल्स - सैन्य तानाशाही की छाया में राजनीतिक दखल

पाकिस्तान में सेना का इतिहास सिर्फ राष्ट्रीय रक्षा तक सीमित नहीं रहा, बल्कि उसने देश के राजनीतिक परिदृश्य में भी गहरी भूमिका निभाई है। कई बार सेना प्रमुखों ने तख्तापलट कर सत्ता अपने हाथ में ली और राजनीतिक मामलों में सीधा हस्तक्षेप किया। जनरल कमर जावेद बाजवा और जनरल परवेज मुशर्रफ जैसे सैन्य नेताओं ने अपने-अपने कार्यकाल में पाकिस्तान की राजनीति और सैन्य नीति पर महत्वपूर्ण प्रभाव डाला।


जनरल बाजवा, जो 2016 में पाकिस्तान के 16वें सेनाध्यक्ष बने और 2022 तक इस पद पर रहे, के कार्यकाल में पुलवामा (2019) और बालाकोट एयरस्ट्राइक (2019) जैसी महत्वपूर्ण घटनाएँ हुईं। इसके अलावा, FATF (Financial Action Task Force) के दबाव में पाकिस्तान ने आतंकवाद के खिलाफ कुछ कदम उठाए, हालांकि यह कदम अंतरराष्ट्रीय दबाव के तहत ही माने गए। बाजवा के समय में सेना का राजनीतिक प्रभाव बढ़ा, खासकर इमरान खान सरकार के साथ उनके संबंधों और बाद में सरकार के पतन में सेना की भूमिका को लेकर चर्चा हुई।


वहीं, जनरल परवेज मुशर्रफ ने 1999 में नवाज शरीफ की सरकार का तख्तापलट किया और खुद पाकिस्तान के राष्ट्रपति बने। वे करगिल युद्ध के मुख्य योजनाकार थे, और उनके शासन में पाकिस्तान और अमेरिका के बीच सैन्य सहयोग में वृद्धि हुई, खासकर 9/11 के बाद। हालांकि, मुशर्रफ के शासन में लोकतंत्र कमजोर हुआ, संविधान निलंबित हुआ और कई बार आपातकाल लागू किया गया। 2007 में वे राष्ट्रपति पद से हटे और देश छोड़कर चले गए। इन दोनों जनरलों ने पाकिस्तान की सैन्य और राजनीतिक दिशा को गहराई से प्रभावित किया।

भारत - पाकिस्तान सैन्य जनरल्स और राजनीतिक हस्तक्षेप

भारत और पाकिस्तान में सेना का भूमिका और राजनीतिक हस्तक्षेप बेहद भिन्न है। भारत में सेना हमेशा लोकतांत्रिक परंपराओं का पालन करती रही है और राजनीति से दूरी बनाए रखी है। भारतीय सेना का कार्यक्षेत्र राष्ट्रीय सुरक्षा, युद्धनीति और सीमाओं की रक्षा तक सीमित है, और यह चुनी हुई सरकार के आदेशों के तहत एक पेशेवर संस्था के रूप में कार्य करती है। भारतीय लोकतंत्र में सेना का राजनीतिक हस्तक्षेप लगभग न के बराबर है, और इसकी छवि एक अनुशासित, गैर-राजनीतिक संस्था की रही है। इसके विपरीत, पाकिस्तान में सेना ने कई बार सत्ता अपने हाथों में ली है, जैसे जनरल अय्यूब खान (1958), जनरल याह्या खान (1969), जनरल जिया-उल-हक (1977), और जनरल परवेज़ मुशर्रफ (1999) द्वारा किए गए तख्तापलट इसका स्पष्ट उदाहरण हैं। पाकिस्तान में सेना का देश की विदेश नीति, विशेषकर भारत, अफगानिस्तान और अमेरिका के साथ संबंधों पर गहरा प्रभाव है, और सरकारें सेना की मंजूरी के बिना कोई बड़ा निर्णय नहीं ले सकतीं। इसके अलावा, सेना का आर्थिक, सामाजिक और मीडिया पर भी गहरा प्रभाव है, और ISI जैसी एजेंसियों के जरिए सेना राजनीतिक मामलों में भी सक्रिय रूप से हस्तक्षेप करती है। पाकिस्तान में कोई भी प्रधानमंत्री अब तक अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाया है, और इसके पीछे सेना का दबदबा और तख्तापलट की परंपरा है।

युद्ध और संकट में जनरलों की भूमिका

युद्ध और संकट के समय जनरलों की भूमिका इतिहास में महत्वपूर्ण रही है, और भारतीय तथा पाकिस्तानी सेनाओं के जनरलों ने इन संघर्षों में निर्णायक नेतृत्व का उदाहरण प्रस्तुत किया।

1965 के युद्ध में, जनरल जे. एन. चौधरी के नेतृत्व में भारतीय सेना ने पाकिस्तान के खिलाफ साहस और रणनीति से मोर्चा संभाला। कठिन परिस्थितियों के बावजूद, उन्होंने भारतीय सेना को सफलता की ओर अग्रसर किया।

1971 के युद्ध में भारतीय सेना के सेनाध्यक्ष फील्ड मार्शल जनरल सैम मानेकशॉ का नेतृत्व भारतीय सैन्य इतिहास का स्वर्णिम युग साबित हुआ। उनकी रणनीतिक निपुणता, स्पष्ट निर्णय और राजनीतिक-सैन्य समन्वय ने भारत को निर्णायक विजय दिलाई, जिसके परिणामस्वरूप बांग्लादेश का निर्माण हुआ।

1999 के कारगिल युद्ध में, जनरल वेद प्रकाश मलिक के नेतृत्व में भारतीय सेना ने अद्वितीय अनुशासन और रणनीति का परिचय दिया, जिससे पाकिस्तानी घुसपैठियों को कारगिल क्षेत्र से खदेड़ा गया और युद्ध में भारतीय सेना की जीत सुनिश्चित हुई।

पाकिस्तान के संदर्भ में, 1971 का युद्ध जनरल याह्या खान के नेतृत्व में हुआ, जो उस समय पाकिस्तान के राष्ट्रपति और सेना प्रमुख थे। उनके नेतृत्व में, विशेषकर जनरल टिक्का खान द्वारा पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) में की गई बर्बर सैन्य कार्रवाई और राजनीतिक असफलताओं के कारण पाकिस्तान को विभाजन और हार का सामना करना पड़ा। युद्ध के अंत में, लेफ्टिनेंट जनरल ए. ए. के. नियाज़ी ने 16 दिसंबर 1971 को भारतीय सेना के सामने आत्मसमर्पण कर दिया।

कारगिल युद्ध (1999) के दौरान, जनरल परवेज़ मुशर्रफ ने युद्ध की योजना बनाई और इसे अंजाम तक पहुँचाया। हालांकि, पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ को इस युद्ध की पूरी जानकारी नहीं थी। इसके बाद, सेना और सरकार के बीच बढ़े तनाव के परिणामस्वरूप, अक्टूबर 1999 में मुशर्रफ ने तख्तापलट कर सत्ता अपने हाथों में ले ली।

जनरलों की रणनीतिक सोच और रक्षा नीति पर प्रभाव

भारत के सैन्य जनरल आमतौर पर "defensive-offensive doctrine" का पालन करते हैं—यानी भारत पहले हमला नहीं करता, लेकिन हमला होने पर पूरी शक्ति से जवाब देता है। उन्होंने तकनीकी आधुनिकीकरण, संयुक्त सैन्य अभ्यास, और वैश्विक सहयोग को प्राथमिकता दी है।

वहीं पाकिस्तान के जनरल अक्सर असममित युद्ध (asymmetric warfare), आतंकवाद के सहारे छद्म युद्ध (proxy war), और कूटनीतिक रूप से भारत को अंतरराष्ट्रीय मंचों पर घेरने की रणनीति अपनाते रहे हैं।

अंतरराष्ट्रीय दृष्टिकोण और जनरलों की छवि

भारत के जनरल्स को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एक जिम्मेदार, शांतिप्रिय और लोकतांत्रिक सैन्य नेतृत्व के रूप में देखा जाता है। भारतीय सेनाओं की संयुक्त राष्ट्र शांति मिशनों में सक्रिय भागीदारी भी इसकी पुष्टि करती है।

पाकिस्तानी जनरलों की छवि अक्सर विवादित रही है, विशेषकर आतंकवादी संगठनों के साथ कथित संबंधों और लोकतंत्र विरोधी हस्तक्षेपों के कारण। हालांकि, अंतरराष्ट्रीय दबाव और FATF जैसी संस्थाओं के चलते हाल के वर्षों में पाकिस्तान की सेना ने अपनी छवि सुधारने की कोशिश की है।

नेतृत्व का फर्क, रणनीति का असर

भारत और पाकिस्तान की सेनाओं के जनरल्स का दृष्टिकोण और प्रभाव एक-दूसरे से काफी भिन्न रहा है। जहां भारत में सैन्य नेतृत्व पेशेवर मूल्यों, तकनीकी नवाचार और लोकतांत्रिक नियंत्रण के तहत कार्य करता है, वहीं पाकिस्तान में सेना अक्सर सत्ता की असली धुरी बनकर उभरती है।

इन दोनों देशों के बीच संबंधों को समझने के लिए केवल राजनीतिक पहलुओं को देखना पर्याप्त नहीं है—बल्कि यह जानना भी आवश्यक है कि सैन्य जनरल्स किस सोच और रणनीति के साथ देश को सुरक्षा के मार्ग पर आगे बढ़ा रहे हैं। क्योंकि कई बार युद्ध और शांति—दोनों का निर्णय युद्ध के मैदान से पहले जनरल्स की सोच में तय होता है।

भारत और पाकिस्तान की रक्षा रणनीतियाँ

भारत के लिए रक्षा रणनीति - भारत ने अपनी रक्षा रणनीति में कई महत्वपूर्ण पहलुओं को प्राथमिकता दी है। सबसे पहले, चीन के साथ सीमा पर सतर्कता बनाए रखना, विशेषकर लद्दाख और अरुणाचल प्रदेश क्षेत्रों में, भारतीय सेना की एक प्रमुख चिंता है। इसके साथ ही, भारत ने अपने रक्षा बजट का कुशल उपयोग करने की दिशा में कदम बढ़ाए हैं, ताकि संसाधनों का अधिकतम लाभ उठाया जा सके। आत्मनिर्भर भारत (Make in India) पहल के तहत भारत रक्षा उपकरणों का घरेलू निर्माण बढ़ाने का प्रयास कर रहा है, जिससे विदेशी निर्भरता कम हो सके। इसके अलावा, सायबर युद्ध और ड्रोन तकनीक पर जोर देते हुए, भारत अपनी सैन्य क्षमता को आधुनिक और अत्याधुनिक बनाने की दिशा में आगे बढ़ रहा है।

पाकिस्तान के लिए रक्षा रणनीति -पाकिस्तान की रक्षा रणनीति में सबसे बड़ा मुद्दा आंतरिक आतंकवाद पर नियंत्रण रखना है, जिसमें सेना की भूमिका महत्वपूर्ण रही है। इसके साथ ही, पाकिस्तान के लिए एक और चुनौती राजनीतिक स्थिरता बनाए रखना है, जिसमें सेना की भूमिका को सीमित करने के प्रयास किए गए हैं। अंतरराष्ट्रीय दबावों के बावजूद, पाकिस्तान को सामरिक संतुलन बनाए रखने की कोशिश करनी पड़ती है, खासकर भारत के साथ अपनी सीमाओं को लेकर। आर्थिक संकट के बीच, पाकिस्तान अपनी रक्षा रणनीतियों को प्रभावी बनाए रखने के लिए निरंतर प्रयास कर रहा है, ताकि सीमाओं पर सुरक्षा बनी रहे और आंतरिक सुरक्षा की स्थिति मजबूत हो।

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