TRENDING TAGS :
जज के घर से जली हुई नोटों की गंध अब सुप्रीम कोर्ट तक पहुंची! यशवंत वर्मा केस में नया धमाका, महाभियोग को किया चैलेंज
Justice Yashwant Verma Case: जस्टिस यशवंत वर्मा के घर से जली हुई करेंसी मिलने के सनसनीखेज मामले ने सुप्रीम कोर्ट और संसद दोनों में हलचल मचा दी है। वर्मा ने सुप्रीम कोर्ट की जांच रिपोर्ट को फर्जी बताते हुए महाभियोग प्रक्रिया को चुनौती दी है। क्या यह साजिश है या न्यायपालिका का काला सच?
Justice Yashwant Verma Case: भारत की न्यायपालिका के इतिहास में ऐसा तूफान शायद ही कभी उठा हो। एक हाईकोर्ट जज, जली हुई करेंसी, सुप्रीम कोर्ट की जांच समिति और अब संसद तक गूंजता हुआ सवाल,क्या भारत के न्याय मंदिरों में अब धुआं ही धुआं बचेगा? इलाहाबाद हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा के घर से भारी मात्रा में जलती हुई नकदी मिलने की सनसनीखेज घटना अब कानूनी और राजनीतिक दोनों मोर्चों पर भूचाल ला चुकी है। जज वर्मा न सिर्फ जांच रिपोर्ट को फर्जी बता रहे हैं, बल्कि उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में उस रिपोर्ट को ही चुनौती दे दी है, जिसे सुप्रीम कोर्ट की ही तीन सदस्यीय इन-हाउस समिति ने तैयार किया था। इससे भी बड़ा सवाल ये है कि क्या वाकई कोई साजिश थी? या सच में देश की न्यायपालिका का एक काला सच सामने आ गया है?
जब जली हुई नोटों से उठी साजिश की बू
14 मार्च 2025 की रात दिल्ली के एक पॉश इलाके में स्थित जस्टिस यशवंत वर्मा के सरकारी आवास से उठते धुएं ने सबका ध्यान खींचा। फायर ब्रिगेड की टीम जब मौके पर पहुंची, तो उन्हें वहां जलती हुई नकदी के बंडल मिले। एक जज के घर से जलते हुए नोटों का बरामद होना जितना असामान्य था, उतना ही डरावना भी। हालांकि घटना के वक्त जस्टिस वर्मा और उनकी पत्नी दिल्ली से बाहर थे, लेकिन घटना की गंभीरता को देखते हुए स्थानीय पुलिस ने दिल्ली हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को सूचना दी, जिन्होंने मामले को देश के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना के संज्ञान में डाला।
तीन जजों की जांच समिति और सत्तापक्ष की खलबली
CJI खन्ना ने तत्परता दिखाते हुए सुप्रीम कोर्ट की तीन सदस्यीय इन-हाउस जांच समिति गठित की। समिति ने सबूतों और गवाहों के आधार पर कैश कांड की पुष्टि की और यशवंत वर्मा को दोषी ठहराते हुए रिपोर्ट राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को भेज दी। रिपोर्ट के आधार पर सिफारिश की गई कि उनके खिलाफ महाभियोग की प्रक्रिया शुरू की जाए। लेकिन अब, जस्टिस वर्मा ने इस पूरी प्रक्रिया को ही सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दे दी है। उनका दावा है कि उन्हें जांच के दौरान अपनी बात कहने का पूरा मौका नहीं मिला और समिति ने उन्हें सुने बिना निष्कर्ष निकाल लिया।
जस्टिस वर्मा का पलटवार – “यह मेरे खिलाफ गहरी साजिश है”
याचिका में जस्टिस वर्मा ने साफ तौर पर कहा है कि यह सब एक साजिश का हिस्सा है। उन्होंने जांच समिति पर पक्षपात का आरोप लगाया है और कहा है कि उन्हें फंसाने के लिए साक्ष्य गढ़े गए। वर्मा का यह भी कहना है कि उनके दिल्ली से इलाहाबाद हाईकोर्ट ट्रांसफर का कारण भी यही विवाद था। अब सुप्रीम कोर्ट में यह याचिका दायर होते ही कानूनी गलियारों में चर्चा है कि क्या कोर्ट अपनी ही समिति की रिपोर्ट को खारिज करेगा? और अगर ऐसा हुआ, तो न्यायपालिका की निष्पक्षता पर गंभीर सवाल खड़े हो सकते हैं।
संसद में बम फूटने वाला है?
जस्टिस वर्मा की यह याचिका ऐसे वक्त में दाखिल की गई है, जब संसद का मानसून सत्र शुरू होने ही वाला है। सूत्रों की मानें तो सरकार इस सत्र में जस्टिस वर्मा के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव लाने की तैयारी में है। इसके लिए विपक्षी दलों से बातचीत भी शुरू हो चुकी है। सरकार चाहती है कि इस संवेदनशील मसले पर संसद एकजुट दिखे, ताकि संदेश साफ जाए,न्यायपालिका में भ्रष्टाचार किसी भी स्तर पर बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। लेकिन अगर सुप्रीम कोर्ट यशवंत वर्मा की याचिका पर रोक लगाता है या समिति की रिपोर्ट को खारिज कर देता है, तो संसद में सियासी हलचल और तेज हो सकती है। विपक्ष इसे न्यायपालिका पर सरकार के दबाव का मामला बना सकता है और सरकार की नैतिकता पर सवाल उठ सकते हैं।
कानून, राजनीति और नैतिकता की टकराहट
इस पूरे विवाद ने न्यायपालिका, कार्यपालिका और विधायिका,तीनों स्तंभों के बीच एक टकराव की स्थिति खड़ी कर दी है। जस्टिस वर्मा अगर सच कह रहे हैं, तो यह भारतीय न्याय व्यवस्था की एक खतरनाक चूक है, जिसमें एक जज को बिना सुने दोषी ठहराया गया। लेकिन अगर समिति की रिपोर्ट सही है, तो यह भारतीय न्यायपालिका की सबसे शर्मनाक घटनाओं में से एक बन सकती है। ऐसे में यह मामला सिर्फ एक जज की नियति का नहीं, बल्कि पूरे न्यायिक सिस्टम की विश्वसनीयता का सवाल बन गया है।
अगला मोर्चा – सुप्रीम कोर्ट या संसद?
अब सबकी निगाहें सुप्रीम कोर्ट पर टिकी हैं कि वह इस याचिका पर क्या रुख अपनाता है। क्या समिति की रिपोर्ट रद्द होगी? क्या संसद में प्रस्ताव रुकेगा? या फिर एक ऐतिहासिक महाभियोग प्रक्रिया शुरू होगी? एक बात तो तय है,जली हुई नोटों की दुर्गंध अब केवल एक घर तक सीमित नहीं रही। वह अब देश के सबसे ऊंचे न्यायिक मंच तक पहुंच गई है। और उसका असर देश के लोकतंत्र की सबसे बड़ी इमारत,संसद,पर पड़ने वाला है।
AI Assistant
Online👋 Welcome!
I'm your AI assistant. Feel free to ask me anything!