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क्या है 'मराठा आरक्षण?' विधानसभा चुनाव में BJP को मिलेगी मात, बढ़ गई है टेंशन
Maratha Reservation: मराठा आरक्षण पर बवाल, बीजेपी चुनावी नुकसान से डरी, जानिए पूरा सच।
Maratha reservation Politics in Maharashtra: एक तरफ जहां पूरा महाराष्ट्र 10 दिवसीय गणेशोत्सव की भक्ति में लीन है, वहीं दूसरी तरफ राज्य की राजनीति में मराठा आरक्षण का मुद्दा एक बार फिर जोर पकड़ चुका है। सामाजिक कार्यकर्ता मनोज जरांगे पाटिल ने मुंबई के आजाद मैदान में अपना अनिश्चितकालीन अनशन शुरू कर दिया है, जिससे देवेंद्र फडणवीस के नेतृत्व वाली महायुति सरकार की टेंशन बढ़ गई है। यह आंदोलन ऐसे नाजुक समय में शुरू हुआ है जब राज्य विधानसभा चुनाव नजदीक हैं और लोकसभा चुनावों में भाजपा को मराठा समुदाय की नाराजगी का खामियाजा भुगतना पड़ा था। सवाल यह है कि मराठा आरक्षण क्या है, बीजेपी इससे क्यों डरी हुई है और इसका राजनीति पर क्या असर पड़ेगा?
मराठा आरक्षण: क्या है पूरा मुद्दा?
मराठा आरक्षण का मुद्दा दशकों पुराना है। मराठा समुदाय, जो महाराष्ट्र की कुल आबादी का लगभग 33% हिस्सा है, खुद को सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़ा मानता है और सरकारी नौकरियों और शिक्षा में आरक्षण की मांग करता है। इस समुदाय के कुछ प्रभावशाली परिवारों के पास राजनीतिक और आर्थिक शक्ति रही है, लेकिन एक बड़ा वर्ग गरीबी और बेरोजगारी से जूझ रहा है।
सबसे बड़ी मुश्किल यह है कि मराठा समुदाय ओबीसी (अन्य पिछड़ा वर्ग) श्रेणी के तहत आरक्षण चाहता है। यह मांग ओबीसी समुदाय के लिए एक बड़ी चिंता का विषय बन गई है, क्योंकि उन्हें लगता है कि मराठों को ओबीसी कोटे में शामिल करने से उनके आरक्षण का हिस्सा कम हो जाएगा। इसी वजह से दोनों समुदायों के बीच तनाव पैदा हो गया है, जो सीधे तौर पर महाराष्ट्र की राजनीति को प्रभावित करता है।
बीजेपी क्यों डरी हुई है?
भाजपा के लिए मराठा आरक्षण एक 'करो या मरो' की स्थिति बन गया है। इसके कई कारण हैं:
लोकसभा चुनाव का सबक: 2024 के लोकसभा चुनावों में जरांगे पाटिल ने मराठा समुदाय से भाजपा का बहिष्कार करने का आह्वान किया था। इसका नतीजा यह हुआ कि भाजपा को महाराष्ट्र में बड़ी हार का सामना करना पड़ा। पार्टी 28 में से केवल 9 सीटें जीत पाई, जबकि उनके सहयोगी दल 20 में से 8 सीटें ही जीत सके। भाजपा को डर है कि अगर विधानसभा चुनावों में भी ऐसा हुआ तो सत्ता उनके हाथ से निकल सकती है।
ओबीसी समुदाय की नाराजगी: अगर सरकार मराठों को ओबीसी कोटे में आरक्षण देती है, तो ओबीसी समुदाय नाराज हो जाएगा। ओबीसी महासंघ के अध्यक्ष बबनराव तायवाड़े ने स्पष्ट कर दिया है कि वे मराठा आरक्षण के खिलाफ नहीं हैं, लेकिन इसे ओबीसी कोटे से अलग देना चाहिए। ओबीसी राज्य की कुल आबादी का लगभग 38% हैं और भाजपा उन्हें नाराज करने का जोखिम नहीं उठा सकती।
गठबंधन में फूट की आशंका: महायुति गठबंधन में भाजपा, एकनाथ शिंदे की शिवसेना और अजित पवार की एनसीपी शामिल है। ओबीसी नेता छगन भुजबल, जो अजित पवार की पार्टी से हैं, मराठा आरक्षण का कड़ा विरोध कर रहे हैं। यह स्थिति गठबंधन में फूट पैदा कर सकती है।
किसको है मराठा आरक्षण का समर्थन?
मनोज जरांगे पाटिल के नेतृत्व में चल रहे इस आंदोलन को व्यापक समर्थन मिल रहा है। मराठा समुदाय के लाखों लोग उनके साथ सड़कों पर उतर रहे हैं। विपक्षी महा विकास अघाड़ी (एमवीए) गठबंधन, जिसमें कांग्रेस, शरद पवार की एनसीपी और उद्धव ठाकरे की शिवसेना (यूबीटी) शामिल हैं, ने इस आंदोलन का समर्थन किया है। वे सरकार पर वादा पूरा करने का दबाव बना रहे हैं। यह आंदोलन सिर्फ आरक्षण की मांग तक सीमित नहीं है, बल्कि यह महाराष्ट्र के सामाजिक और राजनीतिक समीकरणों को भी बदल रहा है। भाजपा के लिए यह एक बड़ी चुनौती है, क्योंकि उन्हें मराठों को संतुष्ट करते हुए ओबीसी वोट बैंक को भी बचाना है। फडणवीस ने कहा है कि सरकार मराठा और ओबीसी दोनों समुदायों के हितों का ध्यान रखेगी, लेकिन जिस तरह से आंदोलन बढ़ रहा है, उससे लगता है कि यह मुद्दा जल्द शांत नहीं होगा।
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