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मराठी अस्मिता नहीं, 50,000 करोड़ पर नजर! अचानक क्यों एक्टिव हुई मनसे, उद्धव से गठबंधन का असली कारण?

Maharashtra Politics: मनसे की बढ़ती सक्रियता और बीएमसी चुनावों में उसकी रणनीति को समझें। मराठी अस्मिता के मुद्दे को उठाकर राज ठाकरे की पार्टी अपनी खोई हुई राजनीतिक जमीन वापस पाना चाहती है। जानिए, उद्धव ठाकरे के साथ गठबंधन और मनसे की आक्रामकता के पीछे के असली कारण।

Harsh Sharma
Published on: 9 July 2025 2:42 PM IST (Updated on: 9 July 2025 3:25 PM IST)
Not Marathi identity eyes on 50,000 crores Why did MNS suddenly become active, the real reason behind alliance with Uddhav
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Not Marathi identity eyes on 50,000 crores Why did MNS suddenly become active, the real reason behind alliance with Uddhav

Maharashtra Politics: राज ठाकरे की पार्टी, महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना , हाल ही में अपनी आक्रामक गतिविधियों की वजह से चर्चा में है। कहीं टोल नाकों पर तोड़फोड़ हो रही है, तो कहीं ऑटो चालकों से मारपीट, और दुकानदारों पर मराठी भाषा को लेकर हिंसक प्रदर्शन किए जा रहे हैं। ये सब तब हो रहा है, जब मुंबई नगर निगम (BMC) के चुनाव नजदीक हैं। आखिर मनसे इतनी सक्रिय क्यों हो गई है? क्या इसका कोई राजनीतिक मकसद है? चलिए, इसे समझने की कोशिश करते हैं।

मनसे की ताकत में लगातार गिरावट

राज ठाकरे ने 2006 में शिवसेना से अलग होकर महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) बनाई थी। पार्टी का मुख्य उद्देश्य मराठी मानुस के हितों की रक्षा करना और हिंदुत्व का प्रचार करना था। 2009 में मनसे ने 13 सीटें जीतकर अपनी ताकत दिखाई थी, लेकिन 2014 और 2019 के चुनावों में पार्टी का प्रदर्शन कमजोर हुआ। 2024 के विधानसभा चुनावों में तो मनसे एक भी सीट नहीं जीत सकी और 119 सीटों पर उसकी जमानत तक जब्त हो गई। ऐसे में, बीएमसी चुनाव मनसे के लिए अपनी साख बचाने का आखिरी मौका हैं। मुंबई हमेशा से मनसे का गढ़ रहा है, और बीएमसी पर कब्जा करना उनके लिए बेहद जरूरी है।


आखिर क्यों आक्रामक हुई मनसे?

मनसे की हालिया गतिविधियों को समझने के लिए इसके पीछे की रणनीति को जानना जरूरी है। मनसे की आक्रामकता के कुछ मुख्य कारण हो सकते हैं:

मराठी वोट बैंक को एकजुट करना:

मनसे हमेशा से मराठी मानुस और मराठी अस्मिता के मुद्दे पर काम करती रही है। हाल ही में, मराठी भाषा को लेकर हुए विवाद, जैसे दुकानदारों पर मराठी बोलने का दबाव और बैंकों में मराठी के इस्तेमाल की मांग, मनसे की पुरानी रणनीति का हिस्सा हैं। 2025 में ठाणे के भयंदर में एक दुकानदार को मारने की घटना इसी का उदाहरण है। इस तरह की घटनाएं मराठी वोटरों को यह संदेश देती हैं कि मनसे उनकी भाषा और पहचान की रक्षा के लिए संघर्ष कर रही है।

शिवसेना और बीजेपी को चुनौती देना:

मनसे का मुख्य प्रतिद्वंद्वी शिवसेना (शिंदे गुट) और बीजेपी हैं, जो महायुति का हिस्सा हैं। 2024 के विधानसभा चुनावों में मनसे ने मुंबई की 25 सीटों पर उम्मीदवार उतारे थे, लेकिन वह कोई सीट नहीं जीत पाई। फिर भी, उसने कुछ स्थानों पर वोटों को बांटकर शिवसेना (UBT) को फायदा पहुँचाया। अब बीएमसी चुनावों में, मनसे वही रणनीति अपनाना चाहती है, ताकि वह महायुति के वोट बैंक को कमजोर कर सके।


उद्धव ठाकरे के साथ गठबंधन की संभावना:

हाल ही में उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे ने मराठी भाषा और पहचान के मुद्दे पर एक साथ मंच साझा किया, जो राजनीतिक हलकों में बड़ी चर्चा का विषय बना। उद्धव ने संकेत दिए कि वह बीएमसी चुनावों में मनसे के साथ गठबंधन के लिए तैयार हैं। अगर यह गठबंधन हुआ, तो मनसे और शिवसेना (यूबीटी) मिलकर मराठी वोटों को एकजुट कर सकते हैं, जिससे बीजेपी और शिंदे गुट के लिए मुश्किलें बढ़ सकती हैं। मनसे की आक्रामकता इस गठबंधन की दिशा में एक कदम हो सकता है।


सुर्खियों में बने रहना और कार्यकर्ताओं में जोश:

मनसे को यह अच्छी तरह से समझ में आ गया है कि उसकी साख और वोट बैंक कमजोर हो चुका है। इसलिए, टोल नाकों पर तोड़फोड़, ऑटो चालकों और दुकानदारों से मारपीट जैसी घटनाएं मीडिया की सुर्खियों में लाती हैं। भले ही ये घटनाएं नकारात्मक हों, लेकिन इससे पार्टी यह संदेश देती है कि वह मराठी हितों के लिए लड रही है। साथ ही, ऐसे प्रदर्शन उनके कार्यकर्ताओं में जोश भरते हैं और यह दिखाते हैं कि पार्टी मैदान में सक्रिय है। मनसे जानती है कि बीएमसी चुनावों में उसकी जीत उसके कार्यकर्ताओं की मेहनत और संगठन की ताकत पर निर्भर करेगी।


बीएमसी चुनावों का महत्व

बीएमसी देश की सबसे अमीर नगर निगम है, जिसका बजट सालाना करीब 45,000 से 50,000 करोड़ रुपये के बीच होता है, यह मुंबई की राजनीति का केंद्र है, और जिस पार्टी का बीएमसी पर नियंत्रण होता है, उसे न सिर्फ आर्थिक ताकत मिलती है, बल्कि राजनीतिक प्रभाव भी बढ़ता है। शिवसेना ने लंबे समय तक बीएमसी पर कब्जा किया, लेकिन 2022 में पार्टी में विभाजन के बाद उद्धव ठाकरे और एकनाथ शिंदे के बीच संघर्ष बढ़ गया है। इसके साथ ही, बीजेपी भी मुंबई में अपनी पकड़ मजबूत करने की कोशिश कर रही है। मनसे के लिए यह चुनाव इसलिए अहम हैं, क्योंकि इससे उनकी राजनीतिक स्थिति बनी रह सकती है।

अपनी खोई हुई जमीन वापस पाना चाहती है मनसे

मनसे की बढ़ती सक्रियता और आक्रामकता बीएमसी चुनावों से पहले उसकी रणनीति का हिस्सा हैं। पार्टी अब मराठी पहचान को उठाकर अपनी खोई हुई राजनीतिक जमीन को फिर से पाना चाहती है। इसके साथ ही, उद्धव ठाकरे के साथ संभावित गठबंधन और सुर्खियों में बने रहने की कोशिशें मनसे को फिर से प्रासंगिक बनाने के लिए हैं।

लेकिन, पार्टी के खिलाफ जनता की नाराजगी और उसकी हिंसक छवि भी एक बड़ी चुनौती है। बीएमसी चुनावों में मनसे का प्रदर्शन इस बात पर निर्भर करेगा कि वह अपनी रणनीति को कैसे लागू करती है और क्या वह मराठी वोटरों का विश्वास जीत पाती है। क्या मनसे अपनी पुरानी ताकत वापस पा सकेगी, या यह उसका आखिरी दांव साबित होगा? यह तो आने वाला समय ही बताएगा।

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Harsh Sharma

Harsh Sharma

Content Writer

हर्ष नाम है और पत्रकारिता पेशा शौक बचपन से था, और अब रोज़मर्रा की रोटी भी बन चुका है। मुंबई यूनिवर्सिटी से मास कम्युनिकेशन में ग्रेजुएशन किया, फिर AAFT से टीवी पत्रकारिता की तालीम ली। करियर की शुरुआत इंडिया न्यूज़ से की, जहां खबरें बनाने से ज़्यादा, उन्हें "ब्रेकिंग" बनाने का हुनर सीखा। इस समय न्यूज़ ट्रैक के लिए खबरें लिख रहे हैं कभी-कभी संजीदगी से, और अक्सर सिस्टम की संजीदगी पर हल्का-फुल्का कटाक्ष करते हुए। एक साल का अनुभव है, लेकिन जज़्बा ऐसा कि मानो हर प्रेस कॉन्फ्रेंस उनका पर्सनल डिबेट शो हो।

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