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Explainer: भारत में संसद में किसी बिल को पारित करने की क्या प्रक्रिया है, यहां जाने विस्तार से
क्या आप जानते हैं कि भारत में संसद में किसी बिल को पारित करने की क्या प्रक्रिया होती है, आइये इसके बारे में विस्तार से जानते हैं।
Process of Passing a Bill in the Parliament of India (Image Credit-Social Media)
Parliament of India: भारत का संविधान संसद को कानून बनाने का सर्वोच्च अधिकार प्रदान करता है। कोई भी बिल, जो अंततः कानून बनता है लोकसभा और राज्यसभा के माध्यम से कई चरणों से गुजरता है। यह प्रक्रिया न केवल पारदर्शी और लोकतांत्रिक है बल्कि यह सुनिश्चित करती है कि कानून बनाने से पहले सभी हितधारकों की राय ली जाए। निम्नलिखित चरणों में इस प्रक्रिया को विस्तार से समझाया गया है।
1. बिल का प्रस्ताव और प्रारंभ
कानून बनाने की प्रक्रिया की शुरुआत एक बिल के प्रस्ताव से होती है। बिल दो प्रकार के होते हैं:
सार्वजनिक बिल: ये सरकार द्वारा पेश किए जाते हैं और आमतौर पर किसी नीति या सार्वजनिक हित से संबंधित होते हैं।
निजी बिल: इन्हें कोई सांसद (जो मंत्री नहीं है) पेश करता है।
बिल को संसद के किसी भी सदन (लोकसभा या राज्यसभा) में पहले पेश किया जा सकता है, सिवाय वित्त विधेयक (मनी बिल) के, जिसे केवल लोकसभा में ही पेश किया जा सकता है। बिल प्रस्तुत करने से पहले, इसे तैयार करने के लिए निम्नलिखित कदम उठाए जाते हैं:
विचार-मंथन और नीति निर्माण: सरकार या संबंधित मंत्रालय किसी मुद्दे पर नीति बनाता है। विशेषज्ञों, हितधारकों और जनता से सुझाव लिए जा सकते हैं।
मसौदा तैयार करना: मंत्रालय के कानूनी विशेषज्ञ और विधायी विभाग बिल का मसौदा तैयार करते हैं।
कैबिनेट की मंजूरी: सरकारी बिल को संसद में पेश करने से पहले केंद्रीय मंत्रिमंडल की मंजूरी आवश्यक होती है।
2. बिल का प्रथम वाचन
बिल को संसद में पेश करने का पहला चरण प्रथम वाचन कहलाता है। इस चरण में:
बिल को औपचारिक रूप से सदन में प्रस्तुत किया जाता है।
बिल का शीर्षक और उद्देश्य पढ़ा जाता है।
इस चरण में कोई विस्तृत चर्चा नहीं होती, लेकिन बिल को प्रकाशित करने या समिति को भेजने का प्रस्ताव रखा जा सकता है।
यदि कोई सांसद बिल के प्रस्ताव का विरोध करता है, तो इस पर मतदान हो सकता है।
3. समिति को भेजना
प्रथम वाचन के बाद, बिल को गहन जांच के लिए संसद की स्थायी समिति, संयुक्त समिति या विशेष समिति को भेजा जा सकता है। यह चरण वैकल्पिक है, लेकिन जटिल और महत्वपूर्ण बिलों के लिए इसे अक्सर अपनाया जाता है। समिति की भूमिका:
बिल के प्रत्येक प्रावधान की विस्तृत जांच करना।
विशेषज्ञों, हितधारकों और जनता से राय लेना।
आवश्यक संशोधन सुझाना।
समिति अपनी रिपोर्ट संसद में प्रस्तुत करती है, जिसमें संशोधन के सुझाव शामिल हो सकते हैं।
4. द्वितीय वाचन
द्वितीय वाचन बिल की प्रक्रिया का सबसे महत्वपूर्ण चरण है। यह दो उप-चरणों में विभाजित है:
सामान्य चर्चा: सांसद बिल के सिद्धांतों और उद्देश्यों पर चर्चा करते हैं। इस दौरान बिल की आवश्यकता, प्रभाव और प्रासंगिकता पर विचार-विमर्श होता है।
खंड-दर-खंड विचार: बिल के प्रत्येक खंड (क्लॉज) पर विस्तृत चर्चा होती है। सांसद संशोधन प्रस्ताव रख सकते हैं, जिन पर बहस और मतदान होता है।
इस चरण में बिल के हर पहलू पर गहन विचार-विमर्श होता है, और यह सुनिश्चित किया जाता है कि बिल जनहित में हो।
5. तृतीय वाचन
तृतीय वाचन में बिल पर अंतिम चर्चा होती है। इस चरण में:
बिल को समग्र रूप से स्वीकार या अस्वीकार करने पर विचार किया जाता है।
संशोधन की संभावना बहुत कम होती है, और चर्चा मुख्य रूप से बिल को अंतिम रूप देने पर केंद्रित होती है।
बिल को स्वीकार करने के लिए मतदान होता है। यदि बहुमत से पारित हो जाता है, तो बिल उस सदन से पास हो जाता है।
6. दूसरे सदन में प्रक्रिया
पहले सदन (लोकसभा या राज्यसभा) से पास होने के बाद, बिल को दूसरे सदन में भेजा जाता है। वहां भी यह प्रथम, द्वितीय और तृतीय वाचन के समान चरणों से गुजरता है। दूसरे सदन के पास निम्नलिखित विकल्प होते हैं:
बिल को बिना किसी संशोधन के पास करना।
बिल में संशोधन सुझाना और उसे वापस पहले सदन को भेजना।
बिल को पूरी तरह अस्वीकार करना।
यदि दोनों सदनों के बीच मतभेद होते हैं, तो संयुक्त बैठक (जॉइंट सिटिंग) बुलाई जा सकती है। हालांकि, यह दुर्लभ होता है।
7. वित्त विधेयक (मनी बिल) की विशेष प्रक्रिया
वित्त विधेयक, जो कराधान, सरकारी व्यय या उधार से संबंधित होते हैं, केवल लोकसभा में पेश किए जा सकते हैं। राज्यसभा केवल सुझाव दे सकती है, लेकिन इन्हें स्वीकार करना लोकसभा की मर्जी पर निर्भर करता है। राज्यसभा को 14 दिनों के भीतर सुझाव देने होते हैं, अन्यथा बिल स्वतः पारित माना जाता है।
8. राष्ट्रपति की मंजूरी
दोनों सदनों से पास होने के बाद, बिल को राष्ट्रपति के पास मंजूरी के लिए भेजा जाता है। राष्ट्रपति के पास निम्नलिखित विकल्प होते हैं:
मंजूरी देना: बिल कानून बन जाता है और इसे राजपत्र में प्रकाशित किया जाता है।
बिल को वापस भेजना: राष्ट्रपति बिल पर पुनर्विचार के लिए संसद को वापस भेज सकते हैं (वित्त विधेयक को छोड़कर)।
बिल को रोकना: राष्ट्रपति बिल पर हस्ताक्षर करने से इनकार कर सकते हैं (पॉकेट वीटो), लेकिन यह बहुत दुर्लभ है।
9. कानून का लागू होना
राष्ट्रपति की मंजूरी के बाद, बिल कानून बन जाता है। इसे अधिनियम (एक्ट) कहा जाता है। सरकार इसे लागू करने की तारीख अधिसूचित करती है, जिसके बाद यह पूरे देश (या निर्दिष्ट क्षेत्रों) में लागू होता है।
विशेष परिस्थितियां
संयुक्त बैठक: यदि दोनों सदन बिल पर सहमत नहीं होते, तो संयुक्त बैठक बुलाई जा सकती है। इसमें दोनों सदनों के सभी सदस्य हिस्सा लेते हैं, और बहुमत से निर्णय लिया जाता है। संयुक्त बैठक का उपयोग बहुत कम हुआ है, जैसे कि 2002 में POTA (Prevention of Terrorism Act) के लिए।
अध्यादेश: आपात स्थिति में, जब संसद का सत्र नहीं चल रहा हो, सरकार अध्यादेश जारी कर सकती है। यह अस्थायी कानून होता है, जिसे छह महीने के भीतर संसद से मंजूरी लेनी होती है।
संवैधानिक संशोधन बिल: संविधान संशोधन के लिए बिल को दोनों सदनों में दो-तिहाई बहुमत से पारित करना होता है। कुछ मामलों में, राज्यों की विधानसभाओं से भी मंजूरी आवश्यक होती है।
भारत में कानून बनाने की प्रक्रिया एक संतुलित और लोकतांत्रिक व्यवस्था का हिस्सा है, जो सुनिश्चित करती है कि कोई भी कानून बिना गहन विचार-विमर्श और जांच के लागू न हो। यह प्रक्रिया न केवल सरकार और सांसदों को जनता के प्रति जवाबदेह बनाती है, बल्कि यह भी सुनिश्चित करती है कि कानून देश के संवैधानिक मूल्यों और जनहित के अनुरूप हो। इस प्रक्रिया में समय और संसाधनों की आवश्यकता होती है, लेकिन यह भारत के लोकतंत्र की मजबूती का प्रतीक है।
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