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खुलासा सड़क दुर्घटनाओं का! सिर की चोट के 49% पीड़ित इलाज से पहले ही दम तोड़ देते हैं
Road Accident Report: नवीनतम चिकित्सा अध्ययन में पाया गया है कि सिर की चोट के शिकार लगभग 49% घायलों की मौत इलाज शुरू होने से पहले ही हो जाती है।
Road Accident Report
Road Accident Report: भारत में सड़क सुरक्षा के बिगड़ते हालात और आपातकालीन चिकित्सा सहायता की सीमाओं को उजागर करते हुए एक नवीनतम चिकित्सा अध्ययन में पाया गया है कि सिर की चोट के शिकार लगभग 49% घायलों की मौत इलाज शुरू होने से पहले ही हो जाती है। इनमें से अधिकांश की मृत्यु दुर्घटनास्थल पर या अस्पताल पहुंचने से पहले रास्ते में होती है।
यह अध्ययन ‘जर्नल ऑफ फॉरेंसिक मेडिसिन एंड साइंस’ (मई 2025 अंक) में प्रकाशित हुआ है और इसमें उत्तर प्रदेश के तीन प्रतिष्ठित चिकित्सा संस्थानों—केजीएमयू, डॉ. राम मनोहर लोहिया संस्थान, और प्रयागराज स्थित मोतीलाल नेहरू (एमएलएन) मेडिकल कॉलेज के विशेषज्ञों ने भाग लिया है।
सिर की चोट: मौत की सबसे बड़ी वजह
अध्ययन के प्रमुख लेखक डॉ. आशीष कुमार सिंह (एमएलएन मेडिकल कॉलेज), डॉ. सचिन कुमार त्रिपाठी (केजीएमयू), और डॉ. राजीव रतन सिंह, डॉ. रिचा चौधरी व डॉ. प्रदीप कुमार यादव (लोहिया संस्थान) ने एक वर्ष (अप्रैल 2021 से मार्च 2022) के दौरान स्वरूप रानी नेहरू अस्पताल (एसआरएन हॉस्पिटल), प्रयागराज में भर्ती 604 सड़क दुर्घटना पीड़ितों का विश्लेषण किया।
निष्कर्ष बेहद चौंकाने वाले हैं:
• 21.85% मरीजों की मौत मौके पर ही हो गई।
• 26.82% मरीजों की मौत अस्पताल ले जाते समय रास्ते में हो गई।
• यानी कुल मिलाकर 48.67% मरीज अस्पताल पहुंचने से पहले ही दम तोड़ देते हैं।
• शेष 51.32% मरीजों की मौत इलाज के दौरान अस्पताल में हुई।
AIIMS और WHO की 2022 की एक साझा रिपोर्ट में भी यही चिंता जताई गई थी कि “TBI (Traumatic Brain Injury) भारत में दुर्घटना से जुड़ी मौतों की प्रमुख वजह है,” और आपातकालीन चिकित्सा सेवाओं तक देर से पहुंचना मृत्यु दर को दोगुना कर देता है।
दोपहिया वाहन चालक सबसे ज्यादा जोखिम में
अध्ययन में सामने आया कि सिर की चोट के पीड़ितों में 52.48% दोपहिया वाहन चालक थे। इसके अलावा:
• 25.17% चारपहिया वाहन चालकों को चोट लगी।
• 8.44% पैदल यात्री,
• 6.24% साइकिल सवार,
• 2.48% तिपहिया वाहन सवार,
• और 5.13% धीमी गति के वाहन चालक घायल हुए।
सड़क सुरक्षा विशेषज्ञ डॉ. सुरेंद्र श्रीवास्तव (पूर्व अध्यक्ष, इंडियन ट्रॉमा सोसाइटी) के अनुसार,
“भारत में हेलमेट और सुरक्षा गियर की उपेक्षा, खासकर दोपहिया चालकों के बीच, सड़क दुर्घटनाओं को जानलेवा बनाती है। जब सिर पर चोट लगती है, तो ‘गोल्डन ऑवर’ के भीतर इलाज न मिल पाने से मस्तिष्क में सूजन और रक्तस्राव का खतरा कई गुना बढ़ जाता है।”
दुर्घटना स्थल: मुख्य मार्गों पर सबसे ज्यादा टक्कर
रिपोर्ट में यह भी सामने आया कि:
• 52.98% टक्कर मुख्य मार्गों पर हुई।
• 26.16% मोड़ों पर,
• 8.11% गलियों में, और
• 11.42% गली के मोड़ों पर दुर्घटनाएं हुईं।
43.71% मामलों में सीधी टक्कर, और 21.52% में स्वयं के वाहन से गिरकर चोट लगने की घटनाएं दर्ज की गईं।
प्रणालीगत समस्या: ट्रॉमा केयर का अभाव
अध्ययन यह भी इंगित करता है कि प्राथमिक ट्रॉमा केयर सिस्टम की कमी और एम्बुलेंस की समय पर उपलब्धता न होने से मरीजों को उचित समय पर इलाज नहीं मिल पाता।
लखनऊ ट्रॉमा सेंटर के वरिष्ठ सर्जन डॉ. मनोज अग्रवाल के अनुसार, “जब तक भारत में हर 50 किमी पर एक ट्रॉमा सेंटर और हर 5 किमी पर प्राथमिक जीवन रक्षक सेवाएं उपलब्ध नहीं होंगी, तब तक ऐसी मौतों को रोका नहीं जा सकेगा।”
अध्ययन का सारांश: क्यों ज़रूरी है तत्काल इलाज
बिंदु
प्रतिशत (%)
मौके पर मौत
21.85%
रास्ते में मौत
26.82%
अस्पताल में मौत
51.32%
अस्पताल पहुंचने से पहले दम तोड़ने वाले
48.67%
यह अध्ययन केवल आंकड़ों का संकलन नहीं, बल्कि भारत के आपातकालीन स्वास्थ्य तंत्र की एक गहरी पड़ताल है। अगर हम ‘गोल्डन ऑवर’ में त्वरित चिकित्सा सहायता नहीं पहुंचा पा रहे हैं, तो ट्रैफिक नियम, हेलमेट अनिवार्यता और ट्रॉमा केयर इंफ्रास्ट्रक्चर के सुधार के सारे प्रयास अधूरे रहेंगे।
यह वक्त है सिर्फ हेलमेट लगाने का नहीं, सिस्टम की हेल्थ चेक करने का भी है।
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