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Su-57E या सस्पेंस जेट? सोर्स कोड, मेक इन इंडिया और मिसाइलों की बरसात... फिर भी भारत क्यों नहीं खरीद रहा रूस से मिसाइल
No Missiles From Russia: एक वक़्त था जब भारत हर नई रूसी सैन्य तकनीक का पहला ग्राहक बनता था लेकिन अब समय बदल रहा है और समीकरण बदलते भी दुनिया देख रही है।
No Missiles From Russia (Image Credit-Social Media)
No Missiles From Russia: कभी रूस था भारत का वो भरोसेमंद साथी, जिसके बिना हमारे लड़ाकू बेड़े की कल्पना तक नहीं की जा सकती थी। मिग-21 से लेकर सुखोई-30 तक भारत की वायुसेना की रीढ़ रूस की तकनीक रही। लेकिन अब वक्त बदल रहा है। एक दौर था जब भारत हर नई रूसी सैन्य तकनीक का पहला ग्राहक बनता था। मगर अब, जब रूस अपना सबसे उन्नत स्टील्थ फाइटर जेट Su-57E भारत को बेचने के लिए आतुर है — भारत है कि एक ठंडी मुस्कान के सिवा कुछ नहीं दे रहा। यह कहानी सिर्फ एक लड़ाकू विमान की नहीं, बदलते वैश्विक समीकरणों की भी है। जब रूस अपने 'गर्व' यानी Su-57E को दुनिया के सामने पेश करता है, तो उसकी आंखों में भारत के लिए उम्मीद दिखती है। एक समय भारत रूस के फाइव्थ जेनरेशन फाइटर एयरक्राफ्ट (FGFA) प्रोजेक्ट का अभिन्न हिस्सा था। लेकिन 2018 में भारत ने इससे हाथ खींच लिए — प्रदर्शन, लागत और भरोसे के मुद्दे पर। अब रूस फिर उसी दरवाजे पर है, शायद आखिरी बार दस्तक दे रहा है।
Su-57E: रूस का सैन्य सिग्नेचर
Su-57E को रूस ने अमेरिकी F-22 और F-35 को टक्कर देने के लिए डिज़ाइन किया। यह स्टील्थ तकनीक, सुपर मैन्युवरेबिलिटी, और R-37M जैसी 500 किमी रेंज की लंबी दूरी की मिसाइलों से लैस है। यह तकनीकी रूप से किसी भी आधुनिक फाइटर जेट से कम नहीं, बल्कि कई मामलों में बेहतर कहा जा रहा है। रूसी विश्लेषक इसे 'राफेल बीटर' तक कहते हैं। फिर भी, एक सवाल है जो रूस को परेशान कर रहा है — "अगर यह इतना शानदार है, तो कोई इसे खरीद क्यों नहीं रहा?"
रूस की पेशकश: सोर्स कोड तक ट्रांसफर
भारत को लुभाने के लिए रूस ने इस बार कोई कसर नहीं छोड़ी। फरवरी 2025 के एयरो इंडिया शो में रूस ने Su-57E को 'मेक इन इंडिया' के तहत भारत में बनाने का प्रस्ताव दिया। उसने यहां तक वादा किया कि भारत के लिए ‘Su-57MKI’ वर्जन तैयार किया जाएगा — विशेष रूप से भारतीय जरूरतों के हिसाब से, लंबी दूरी की मिसाइलों से लैस और घरेलू कंपनियों द्वारा निर्माण योग्य। यह प्रस्ताव इतना खुला था कि रूस ने 'सोर्स कोड' ट्रांसफर की बात तक कर दी — वो तकनीकी खजाना जो पश्चिमी देश कभी किसी को नहीं देते। सोर्स कोड वो चाबी है जिससे किसी फाइटर जेट की आत्मा को समझा जा सकता है — उसकी उड़ान, उसकी फायरिंग क्षमता, उसकी रणनीतिक सोच। फ्रांस की कंपनी डसॉल्ट ने जब राफेल का सोर्स कोड देने से मना कर दिया था, तो भारत में कुछ हलचल ज़रूर हुई थी। ऐसे में रूस का प्रस्ताव आश्चर्यजनक था।
तो फिर भारत क्यों नहीं खरीद रहा?
यह सवाल जितना सरल लगता है, उतना है नहीं। दरअसल, भारत के सामने दो सबसे बड़े सवाल हैं: भरोसा और परफॉर्मेंस। Su-57E भले ही कागजों पर शानदार हो, लेकिन इसकी तैनाती खुद रूस की वायुसेना में सीमित रही है। इससे भी बड़ी बात ये कि LIMA 2025 जैसे बड़े एयरशो में Su-57E का कोई असली मॉडल नहीं दिखा — सिर्फ एक स्केल मॉडल दिखाया गया। क्या इसका उत्पादन धीमा है? क्या रूस इसे अभी तक मास प्रोडक्शन के लायक नहीं समझता? भारत के रक्षा विशेषज्ञों को ये बातें चुभती हैं। भारत पहले भी FGFA प्रोजेक्ट में भारी निवेश कर चुका है, लेकिन जब परफॉर्मेंस नहीं मिली, तो बाहर आ गया। अब फिर से उसी विमान को खरीदने का विचार सिर्फ प्रस्ताव और वादों के आधार पर एक जोखिम भरा दांव होगा।
पैसे का मामला भी है बड़ा फैक्टर
Fifth generation फाइटर जेट्स की कीमत आसमान छूती है। जब अमेरिका ने प्रधानमंत्री मोदी के दौरे के वक्त F-35 ऑफर करने की बात की, तो वायुसेना प्रमुख ने साफ कहा, “यह कोई फ्रिज नहीं कि दरवाज़ा खोलकर घर ले आएं।” यानी यह निर्णय सोच-समझ कर ही लिया जाएगा। Su-57E की कीमत को लेकर भी स्पष्टता नहीं है। कई रिपोर्ट्स में यह सामने आया है कि इसकी लागत अपेक्षा से कहीं ज़्यादा है, और इस परफॉर्मेंस के लिए ये कीमत वाजिब नहीं लगती। रूस के साथ डील करने में वित्तीय जोखिम का पहलू भी शामिल है खासकर तब जब उसकी अर्थव्यवस्था पश्चिमी प्रतिबंधों के तहत दबाव में है।
क्या भारत Su-57E का पहला इंटरनेशनल ग्राहक बनेगा?
रूस को उम्मीद है कि भारत उसका पहला ग्राहक बने। अब तक मलेशिया, अल्जीरिया जैसे संभावित खरीदारों के नाम आए, लेकिन किसी ने पुष्टि नहीं की। Su-57E की 'ग्लोबल डेब्यू' की जिम्मेदारी अब भी अधूरी है। रूस के लिए भारत एक 'ट्रॉफी कस्टमर' है, जिससे बाकी देश भी आकर्षित हो सकते हैं। लेकिन भारत अब पुराने भारत जैसा नहीं है। अब वो हर रक्षा डील को रणनीतिक, आर्थिक और दीर्घकालिक दृष्टिकोण से देखता है। सिर्फ भावनात्मक या ऐतिहासिक रिश्तों पर अब फैसले नहीं होते।
क्या भविष्य में बदल सकती है तस्वीर?
हां, अगर रूस अपने प्रस्ताव को और व्यवहारिक बनाए यानी कीमत कम करे, परफॉर्मेंस में पारदर्शिता दिखाए, और भारत की तकनीकी जरूरतों के मुताबिक लचीलापन रखे तो भारत के दरवाजे अब भी बंद नहीं हैं। Su-57E वाकई अगर रडार को चकमा देने वाला घातक फाइटर है, तो भारत जैसे उभरते सैन्य शक्ति को उसकी जरूरत भी पड़ेगी। लेकिन जब तक रूस इस विमान को अपने एयरशो में उड़ते नहीं दिखाता, या अपने वायुसेना में बड़े पैमाने पर शामिल नहीं करता भारत जैसा रणनीतिक ग्राहक शायद ही कोई फैसला ले।
उड़ने से पहले भरोसा क्यों नहीं उड़ रहा?
Su-57E का रडार से बचना बड़ी बात नहीं, जब तक वो विश्वास की जद में नहीं आता। भारत केवल मिसाइल रेंज नहीं देखता, वह डील के पीछे की रणनीति, ट्रांसपेरेंसी और भविष्य की संभावनाएं भी देखता है। अगर रूस यह सब दिखा पाया — तो हो सकता है, भारत उस दरवाज़े को फिर से खोले, जिस पर रूस लगातार दस्तक दे रहा है।
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