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SC ने मचाई हलचल, एक साथ कई बड़े मुद्दों पर की सुनवाई, सरकार को भी लगाई फटकार
SC big decisions: सुप्रीम कोर्ट ने एक ही दिन में कई बड़े मुद्दों पर सुनवाई की। ISL फुटबॉल लीग से लेकर सेना के घायल कैडेट्स और AMU की कुलपति नियुक्ति तक, अदालत ने सरकार को कड़ी फटकार लगाई और पारदर्शिता पर जोर दिया।
SC big decisions: आज का दिन देश के लिए एक 'सुपर' सोमवार साबित हुआ, जब सुप्रीम कोर्ट ने एक साथ कई बड़े और संवेदनशील मुद्दों पर सरकार से जवाब मांगा। देश की सबसे बड़ी अदालत ने न सिर्फ लाखों फुटबॉल प्रेमियों की उम्मीद जगाई, बल्कि सेना के घायल जवानों और एक प्रतिष्ठित विश्वविद्यालय की कुलपति की नियुक्ति पर भी गंभीर सवाल उठाए। सुप्रीम कोर्ट का यह रुख दर्शाता है कि वह जनता से जुड़े हर मुद्दे पर नजर रख रहा है।
फुटबॉल फैंस की उम्मीद जागी, ISL की याचिका पर सुनवाई
लाखों फुटबॉल प्रशंसकों के लिए एक बड़ी खबर सामने आई है। सुप्रीम कोर्ट ने इंडियन सुपर लीग (ISL) की स्थिति से जुड़ी याचिकाओं पर सुनवाई करने की सहमति दे दी है। इस फैसले ने नए सीजन का बेसब्री से इंतजार कर रहे फुटबॉल प्रेमियों को बड़ी राहत दी है। यह याचिका इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि यह देश के सबसे बड़े फुटबॉल टूर्नामेंट के भविष्य से जुड़ी है, जिस पर कई सवाल उठ रहे थे। सुप्रीम कोर्ट की इस पहल से उम्मीद है कि जल्द ही इस मामले का समाधान निकलेगा और फुटबॉल का रोमांच फिर से लौट सकेगा।
सेना के घायल कैडेट्स का दर्द, SC ने सरकार को घेरा
एक बेहद संवेदनशील मामले में सुप्रीम कोर्ट ने तीनों सशस्त्र बलों के प्रमुखों से जवाब मांगा है। यह मामला उन सैन्य कैडेट्स की दुर्दशा से जुड़ा है जो कठोर प्रशिक्षण के दौरान घायल या विकलांग हो गए। न्यायमूर्ति बीवी नागरत्ना और आर. महादेवन की पीठ ने केंद्र और रक्षा बलों से पूछा है कि इन बहादुर जवानों के सामने आने वाली कठिनाइयों का समाधान कैसे किया जाएगा।
'बहादुरों को मदद मिलनी चाहिए'
कोर्ट ने साफ कहा कि 'सेना में बहादुर लोगों की जरूरत है', और घायल कैडेट्स को हर हाल में मदद मिलनी चाहिए। पीठ ने सरकार को सुझाव दिया कि इन कैडेट्स के लिए बीमा कवर और बेहतर आर्थिक सहायता की योजना बनाई जाए। अदालत ने 40,000 रुपये की मौजूदा अनुग्रह राशि को 'नाकाफी' बताते हुए इसे बढ़ाने पर भी विचार करने को कहा।
पुनर्वास की मांग
कोर्ट ने केंद्र को इन दिव्यांग कैडेट्स के पुनर्वास के लिए एक व्यापक योजना तैयार करने का निर्देश दिया है। अदालत ने कहा कि इलाज के बाद ऐसे कैडेट्स को डेस्क जॉब या रक्षा सेवाओं से जुड़ा कोई अन्य काम सौंपा जा सकता है, ताकि उनका करियर पूरी तरह समाप्त न हो। यह मामला 12 अगस्त को एक मीडिया रिपोर्ट के आधार पर सुप्रीम कोर्ट ने स्वतः संज्ञान लिया था।
AMU में 'हितों का टकराव', कुलपति की नियुक्ति पर सवाल
सुप्रीम कोर्ट ने एक और बड़े मामले में हस्तक्षेप किया है, जिसने अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (AMU) की पहली महिला कुलपति प्रोफेसर नईमा खातून की नियुक्ति पर सवाल खड़े कर दिए हैं। मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि जिस बैठक में नईमा खातून का नाम चुना गया, उस बैठक में उनके पति और तत्कालीन कुलपति का मौजूद रहना 'संदेह' पैदा करता है।
'भविष्य में क्या होगा, सोचकर कांप जाता हूं'
याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश हुए वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने कहा कि अगर कुलपतियों की नियुक्ति इस तरह होती है, तो भविष्य में क्या होगा, मैं सोचकर ही कांप जाता हूं। सिब्बल ने दलील दी कि जिस कार्यकारी परिषद की बैठक में प्रोफेसर खातून की नियुक्ति पर फैसला हुआ, उसकी अध्यक्षता उनके पति मोहम्मद गुलरेज ने की थी।
सुप्रीम कोर्ट भी सहमत
कपिल सिब्बल की दलील पर सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने भी माना कि उस बैठक में तत्कालीन कुलपति को शामिल नहीं होना चाहिए था। हालांकि, सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने 'आवश्यकता के सिद्धांत' का हवाला देते हुए इस प्रक्रिया का बचाव करने की कोशिश की, लेकिन कोर्ट का रुख साफ था कि यहां हितों के टकराव का मामला बनता है। इस सुनवाई ने देश के प्रतिष्ठित विश्वविद्यालयों में नियुक्ति प्रक्रिया की पारदर्शिता पर एक बार फिर बहस छेड़ दी है।
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