Upendra Kushwaha Profile: अग्नि परीक्षा के दौर में उपेंद्र कुशवाहा

Upendra Kushwaha Profile in Hindi: उपेंद्र कुशवाहा ने 1980–90 के दशक में युवा लोकदल, युवा जनता दल, समता पार्टी के संगठनात्मक पदों से शुरुआत की।

Yogesh Mishra
Published on: 17 Oct 2025 2:29 PM IST
Upendra Kushwaha Profile Political journey Bihar Assembly Election 2025 Latest Update
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Upendra Kushwaha Profile Political journey Bihar Assembly Election 2025 Latest Update

Upendra Kushwaha Profile in Hindi: 6 फ़रवरी, 1960 को बिहार के वैशाली में जन्मे उपेंद्र कुशवाहा बिहार की पिछड़ी जाति-कोयरी व कुशवाहा समाज के नेता है। उन्होंने पटना साइंस कॉलेज से स्नातक स्तर की पढ़ाई के बाद बी.आर. अंबेडकर बिहार विश्वविद्यालय से राजनीतिशास्त्र में एम.ए. किया। करियर की शुरुआत लेक्चरर के रूप में की। बाद में समाजवादी धारा से जुड़े दिग्गजों—जेपी व कर्पूरी परंपरा के प्रभाव में राजनीति में सक्रिय हुए। 2014–18 में केंद्र की मोदी-1 सरकार में मानव संसाधन विकास राज्य मंत्री रहे।

उपेंद्र कुशवाहा ने 1980–90 के दशक में युवा लोकदल, युवा जनता दल, समता पार्टी के संगठनात्मक पदों से शुरुआत की। 2000 में जंदाहा विधानसभा से पहली बार विधायक चुने गए। 2005 में इसी सीट से हारे। उन्होंने 2007–09 में राष्ट्रीय समता पार्टी बनाई। बाद में JDU में इसका विलय कर दिया। 2010 में जेडीयू कोटे से राज्यसभा भेजे गए। 2013 में जेडीयू छोड़कर नई पार्टी राष्ट्रीय लोक समता पार्टी (RLSP) खड़ी की।

RLSP ने 2014 में भाजपा-नीत NDA के साथ तालमेल में चुनाव लड़ा। उपेंद्र कुशवाहा काराकाट से जीते। केंद्र में राज्य मंत्री बने। यह उनकी ओबीसी-फेस की राष्ट्रीय पहचान का समय था।

2015 में NDA ने सीट बँटवारे में RLSP को 23 सीटें दीं। नतीजे आए तो RLSP 23 में 2 ही जीत सकी। यही वह चुनाव था जिसने दिखाया कि कुशवाहा-वोट का प्रभाव क्षेत्रीय पॉकेट में तो है, पर राज्य-व्यापी ‘कन्वर्ज़न’ सीमित है।

दिसंबर 2018 में उपेंद्र कुशवाहा ने मंत्री-पद से इस्तीफ़ा देकर NDA छोड़ दिया। सीट-शेयरिंग के असंतोष के साथ। 2019 में वे महागठबंधन के साथ गए और काराकाट व उजीयरपुर—दोनों सीटों से लड़े,। दोनों हारे। इसके साथ ही कुशवाहा-फैक्टर की सीमाएँ फिर उभर आईं।

2020 में RLSP ने RJD-कांग्रेस ब्लॉक से अलग होकर Grand Democratic Secular Front (GDSF) बनाया। इस फ्रंट में BSP व AIMIM शामिल थे। उन्होंने खुद को सीएम फेस प्रोजेक्ट किया। पर नतीजा शून्य रहा। GDSF का स्ट्राइक रेट सबसे कम रहा। AIMIM को सीमांचल में लाभ ज़रूर मिला।

चुनावी झटकों के बाद 2021 में RLSP का जदयू में विलय हुआ। कुशवाहा जेडीयू के पार्लियामेंटरी बोर्ड चेयरमैन तथा MLC बने। पर फ़रवरी 2023 में मतभेद उभरने पर उन्होंने जदयू छोड़ा। नई पार्टी राष्ट्रीय लोक मोर्चा (RLM) खड़ी की।

2024 लोकसभा का चुनाव काराकाट से लड़ें। पर तीसरे स्थान पर रहे। CPI(ML) के राजा राम कुशवाहा जीते, भोजपुरी अभिनेता पवन सिंह (निर्दलीय) ने NDA-समर्थित वोटों में सेंध लगाई। इसके तुरंत बाद अगस्त 2024 में वे राज्यसभा के लिए एनडीए कोटे से निर्विरोध चुन लिए गए।

2025 के चुनावी समीकरण में NDA (BJP-JDU बराबरी 101-101) के साथ RLM को 6 सीटें मिलीं हैं। वे सार्वजनिक रूप से असंतोष जताते रहे कि LJP(RV) को 29 मिलने के बाद छोटे सहयोगियों की हिस्सेदारी दब रही है। RLM ने अब अपनी प्रथम सूची जारी कर दी है। इनमें उनकी पत्नी स्नेहलता कुशवाहा के भी मैदान में उतरने की घोषणा है। यह बताता है कि वे seat-for-influence रिश्ते को अजमाते हुए आगे बढ़ रहे हैं।

कोयरी/कुशवाहा बेल्ट की असलियत

बिहार की नवीनतम जातिगत आँकड़ों की सार्वजनिक रिपोर्टिंग के अनुसार कुशवाहा/कोयरी 4.2 फ़ीसदी आबादी हैं। जबकि पासवान व दुसाध ~5.3 फ़ीसदी और यादव 14.3 फ़ीसदी हैं। कुशवाहा वोट का क्षेत्रीय प्रभाव सबसे अधिक शाहाबाद,बक्सर,भोजपुर,काइमूर, रोहतास और मगध- औरंगाबाद,गया, जहानाबाद, अरवल के हिस्सों में दिखता है। काराकाट तो खुद ‘कुशवाहा-डॉमिनेटेड’ माना जाता है। इन जिलों की दर्जनों विधानसभा सीटों में यह वोट प्रभावी भूमिका की तरह काम करता है। पर राज्य-स्तरीय ट्रांसफ़र हर बार संभव नहीं होता। यही उपेंद्र कुशवाहा के चुनावी रिकॉर्ड में दिखता है।

पार्टी बनाम गठबंधन

2014 में लोकसभा चुनाव RLSP-NDA; काराकाट जीते, मंत्री बने। 2015 के विधानसभा चुनाव में NDA में 23 सीटों पर लड़ें । जीती केवल 2। 2019 के लोकसभा चुनाव में NDA से अलग होकर UPA के साथ—काराकाट, उजीयरपुर—दोनों सी से लड़ें। दोनों सीटें हारे। 2020 के विधानसभा चुनाव में GDSF (RLSP+ BSP+ AIMIM आदि), 0 सीट। 2021: RLSP का JDU में विलय; वे JDU संसदीय बोर्ड प्रमुख/MLC बने।2023 में JDU से अलग; नई पार्टी RLM। 2024 के लोकसभा चुनाव में RLM प्रत्याशी काराकाट से बने। तीसरे स्थान पर रहे।

2025 के विधानसभा चुनाव में एनडीए में उन्हें में 6 सीटें हाथ लगी है।जिसे लेकर सार्वजनिक असंतोष वह जता चुके हैं।

उपेंद्र कुशवाहा का मूल आधार कुशवाहा व कोयरी ही है। यही वजह है कि अगले व पिछड़े मतदाताओं की उप-क्लस्टरों की काउंटर-मोबिलाइज़ेशन समीकरण बदल देता है।

स्ट्रेंथ

कोयरी व कुशवाहा समाज के 4.2 फ़ीसदी वोटों का स्वाभाविक नेतृत्व। शाहाबाद–मगध पट्टी में पकड़। NDA/UPA/तीसरे मोर्चे—हर फ्रेम में काम करने का अनुभव।HRD-MoS के रूप में शिक्षा-पहलों की दृश्यता—KV/NCERT/AICTE/विद्यालय-गुणवत्ता विमर्श इत्यादि।

वीकनेस

कन्वर्ज़न गैप उनकी सबसे बड़ी कमजोरी है। 2015 (23→2), 2020 (0), 2024 (LS-Karakat 3rd)—वोट को सीट में बदलने में लगातार कठिनाई। कोर से बाहर ‘क्रॉस-कम्युनिटी’ वोट का स्थायी विस्तार सीमित। यही वजह है कि लोकल तिकोने या चौकोने मुक़ाबलों में समीकरण पलट जाते हैं। NDA में सीट-शेयरिंग पर बार-बार असंतोष पार्टी-स्केल और संसाधन-घनत्व सीमित।

उपेंद्र कुशवाहा बिहार की OBC राजनीति के कोर-क्लस्टर—कोयरी व कुशवाहा से निकले वह चेहरा हैं जो शाहाबाद–मगध में चुनावी नतीजों को प्रभावित करने की क्षमता रखते हैं। 2014 के बाद से उनकी राजनीतिक यात्रा—NDA में उभार, 2018 में अलगाव, 2019/2020 की पराजय, 2021 में JDU में वापसी, 2023 में फिर अलग पार्टी, 2024 लोकसभा में हार और तत्पश्चात राज्यसभा—यह बताती है कि वे हार के बाद भी पावर-सर्किट से बाहर नहीं होते। 2025 में उनकी असली परीक्षा यह है कि 6 सीटों के सीमित कोटे के बावजूद क्या वे अपने कोर वोट को समेटकर एक दो सीटों पर निर्णायक जीतें दिला पाते है। और क्या उनकी राजनीति जाति-केन्द्र से निकलकर स्थायी बहुजन-प्लस-युवा नैरेटिव गढ़ पाती है। अगर हाँ, तो वे बिहार के दाएँ-बाएँ दोनों खेमों के लिए किंगमेकर व स्पॉइलर दोनों बन सकते हैं। अगर नहीं, तो उनकी छवि ‘वोट-कटर से राज्यसभा तक’ वाली सीमित-प्रभाव वाली राजनीति तक सिमटने का जोखिम बनी रहेगा।

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