NDA ने उम्मीदवार नहीं उपराष्ट्रपति घोषित किया! अब बस शपथ लेना बाकी, विपक्ष बजाएगा तालियां

Vice President Election: 9 सितंबर को सिर्फ चुनाव नहीं, एक संवैधानिक औपचारिकता पूरी होगी और वो भी बहुमत की मुस्कान के साथ।

Snigdha Singh
Published on: 18 Aug 2025 12:21 PM IST
NDA ने उम्मीदवार नहीं उपराष्ट्रपति घोषित किया! अब बस शपथ लेना बाकी, विपक्ष बजाएगा तालियां
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Vice President Election: राजनीति के इस मौसम में जहां विपक्ष अब तक अपनी रणनीति की ‘प्रेस कॉन्फ्रेंस’ भी तय नहीं कर पाया, वहीं एनडीए ने रविवार को सीपी राधाकृष्णन का नाम उपराष्ट्रपति पद के लिए घोषित कर दिया। घोषणा कोई बड़ी बात नहीं थी लेकिन जेपी नड्डा की वह बात गौर करने लायक थी कि 'हम विपक्ष से बात करेंगे, ताकि निर्विरोध चुनाव हो सके।' यानी गेंद आपके पाले में है, पर हम बैट भी थामे हैं और फील्डिंग भी कर लेंगे।

सीपी राधाकृष्णन वर्तमान में महाराष्ट्र के राज्यपाल हैं। अब वह ‘राज भवन’ से निकलकर 'राज्यसभा भवन' की सीढ़ियां चढ़ने को तैयार हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह ने तुरंत बधाई दे दी और बीजेपी के एक्स हैंडल पर भी मिठाइयों की तस्वीरें डाल दी गईं। भले विपक्ष अभी तक बैठक की तारीख तय कर रहा हो। आंकड़ों को देखें तो ऐसा लग रहा है कि विपक्ष एनडीए बिना किसी मेहनत और रणनीति के ही उपराष्ट्रपति बना लेंगा।

नंबर गेम की कहानी – सत्ता का गणित

उपराष्ट्रपति पद के चुनाव में संख्या बल की बात करें तो एनडीए की स्थिति फर्स्ट बेंच टॉपर जैसी दिख रही है। लोकसभा और राज्यसभा मिलाकर कुल 786 सदस्य होते हैं हालांकि 6 सीटें खाली हैं, और वे भी इस बात पर हैरान कि अब तक उन्हें क्यों नहीं भरा गया। जीत के लिए कम से कम 349 वोटों की जरूरत है और एनडीए के पास 422 का मैजिक नंबर पहले से ही जेब में है यानी विपक्ष मैदान में उतरे भी तो खेल वन-साइडेड होने वाला है।

विपक्षअब भी 'उम्मीदवार खोजो अभियान' में

विपक्षी INDIA गठबंधन अभी तक उम्मीदवार की तलाश में है। कुछ कहते हैं, वो अब भी ये तय कर रहे हैं कि चाय के साथ समोसा हो या खजूर। बहरहाल, बीजेपी ने गेंद फेंक दी है और विपक्ष को सहमत होने का न्योता दिया है। लोकतंत्र की भाषा में इसे ‘निर्विरोध’ कहा जाता है, लेकिन राजनीति की व्याख्या में ये रणनीतिक आत्मसमर्पण भी माना जा सकता है।

‘मैच तो एनडीए जीत चुका है, बस स्कोर बोर्ड पर नाम चढ़ना बाकी है’

संविधान कहता है कि उपराष्ट्रपति का पद खाली न रहे, लेकिन राजनीतिक धरातल पर ऐसा लग रहा है जैसे यह पद एनडीए के लिए आरक्षित हो गया हो। अब देखना है कि विपक्ष इस बार मैदान में उतरता है या दर्शक दीर्घा में बैठकर तालियां बजाने का फैसला करता है। तो 9 सितंबर को सिर्फ चुनाव नहीं, एक संवैधानिक औपचारिकता पूरी होगी और वो भी बहुमत की मुस्कान के साथ।

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