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धर्मस्थल सामूहिक दफन मामले से उठा मौतों का बवंडर, लापता महिलाएं व लड़कियां और राजनीति
Dharmasthala Mass Burial Case: कर्नाटक के धर्मस्थल मंदिर में सामूहिक दफन मामले ने सनसनी मचा दी है। यौन उत्पीड़न, हत्या और दफन के आरोपों ने इसे आपराधिक जांच से आगे बढ़ाकर एक बड़े राजनीतिक विवाद में बदल दिया है।
Dharmasthala Mass Burial Case
Dharmasthala Mass Burial Case: कर्नाटक का धर्मस्थल सामूहिक दफन मामला एक जटिल और बहुआयामी मुद्दा बन गया है, जो अब केवल एक आपराधिक जांच तक सीमित नहीं रह गया है, बल्कि यह एक राजनीतिक तूफान का रूप ले चुका है। हालांकि इसमें गंभीर आपराधिक आरोप, सामाजिक संवेदनशीलता, और धार्मिक आस्था से जुड़े कई पहलू शामिल हैं।
मामले का आधार और जांच की स्थिति
धर्मस्थल, कर्नाटक का एक प्रमुख हिंदू तीर्थस्थल, जहां भगवान मंजुनाथ स्वामी की पूजा होती है, इस मामले के केंद्र में है। एक पूर्व सफाईकर्मी द्वारा लगाए गए सनसनीखेज आरोपों ने इस मामले को सुर्खियों में लाया, जिसमें उसने दावा किया कि 1995 से 2014 के बीच उसे सैकड़ों शवों, खासकर महिलाओं और नाबालिगों के, जिन पर यौन उत्पीड़न और हत्या के निशान थे, को दफनाने के लिए मजबूर किया गया। इस शिकायत के आधार पर कर्नाटक सरकार ने 19 जुलाई 2025 को विशेष जांच दल (SIT) का गठन किया, जिसकी अगुवाई डीजीपी प्रणब मोहंती कर रहे हैं।
SIT ने अब तक 17 स्थानों पर खुदाई की है, लेकिन मामला बहुत कुछ साफ नहीं हो सका है
स्थल संख्या 6 और 11-ए: यहां से मानव कंकाल के अवशेष मिले, जिनमें हड्डियां, खोपड़ी के हिस्से, और एक लाल साड़ी शामिल हैं। प्रारंभिक फोरेंसिक जांच में ये अवशेष पुरुषों के बताए गए हैं, जो शिकायतकर्ता के दावों (महिलाओं और नाबालिगों के शव) से मेल नहीं खाते।
स्थल संख्या 13: शिकायतकर्ता ने इसे सबसे बड़ा दफन स्थल बताया, जहां 60-100 शव होने का दावा किया गया। ग्राउंड पेनेट्रेटिंग रडार (GPR) और खुदाई के बावजूद कोई ठोस सबूत नहीं मिला।
स्थल संख्या 14: यहां 81 हड्डियां और पुरुष के कपड़े मिले, फिलहाल स्थिति अस्पष्ट बताई जा रही है।
सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि शिकायतकर्ता के दावों में कई असंगतियां सामने आई हैं। उसके द्वारा पेश किए गए अवशेष, जो उसने महिला के बताए थे, फोरेंसिक जांच में पुरुष के निकले। इसके अलावा, उसके द्वारा बताए गए कई स्थानों पर कोई अवशेष नहीं मिले, जिससे उसकी विश्वसनीयता पर सवाल उठ रहे हैं। RTI के आंकड़ों के अनुसार, 1987 से 2025 के बीच 279 शव दफनाए गए, जिनमें ज्यादातर लावारिस या आत्महत्या के मामले थे। इनमें 219 पुरुष, 46 महिलाएं, और 14 अज्ञात लिंग के शव थे, लेकिन यह साबित नहीं हुआ कि ये आपराधिक हत्याएं थीं।
राजनीतिक तनाव और आरोप-प्रत्यारोप
अब यह मामला अब पूरी तरह से राजनीतिक रंग ले चुका है, और दोनों प्रमुख दल—भाजपा और कांग्रेस—इसमें गहरे उलझ गए हैं। भाजपा ने इस मामले को कांग्रेस सरकार द्वारा धर्मस्थल की धार्मिक छवि को खराब करने की साजिश करार दिया है। पार्टी ने 'धर्मस्थल चलो' अभियान शुरू किया, जिसमें सैकड़ों वाहनों के काफिले के साथ प्रदर्शन की योजना है। भाजपा विधायक एस.आर. विश्वनाथ और अन्य नेताओं ने इसे हिंदू आस्था पर हमला बताया और शिकायतकर्ता को "नकाबपोश" कहकर उसकी विश्वसनीयता पर सवाल उठाए। कुछ नेताओं ने इसे NIA को सौंपने की मांग भी की है। उधर उपमुख्यमंत्री डी.के. शिवकुमार ने इसे धर्मस्थल को बदनाम करने की साजिश बताया और कहा कि सरकार मंदिर प्रशासन के साथ खड़ी है। गृह मंत्री जी. परमेश्वर ने जांच की पारदर्शिता का बचाव करते हुए कहा कि अगर शिकायतकर्ता के दावे झूठे साबित हुए, तो उसके खिलाफ कार्रवाई होगी।
बता दें कि धर्मस्थल मंजुनाथ मंदिर का प्रबंधन जैन हेगड़े परिवार के पास है, जिसके प्रमुख वीरेंद्र हेगड़े राज्यसभा सांसद हैं। इस मामले ने धार्मिक भावनाओं को आहत किया है, और कुछ समूह इसे हिंदू आस्था पर हमले के रूप में देख रहे हैं। सोशल मीडिया पर भी तनाव बढ़ा है, जहां यूट्यूबर्स और पत्रकारों पर हमले की खबरें आई हैं।शिकायतकर्ता ने गंभीर आरोप लगाए हैं, जैसे बलात्कार, हत्या, और सामूहिक दफन। कुछ स्थानों पर कंकाल अवशेष उसके दावों की आंशिक पुष्टि करते हैं।
दूसरी बात कई परिवारों, जैसे सुजाता भट्ट और पद्मलता के परिजनों, ने अपनी लापता बेटियों के अवशेषों की जांच की मांग की है।इसके अलावा आरटीआई का 279 शवों के दफन का आंकड़ा दर्शाता है कि धर्मस्थल में लंबे समय से लावारिस शवों को दफनाने की प्रक्रिया चल रही थी। मोटे तौर पर इस संवेदनशील मुद्दे का दोनों पार्टियां अपने हित में इस्तेमाल कर रही हैं। भाजपा इसे धार्मिक भावनाओं से जोड़कर हिंदू वोटरों को लामबंद करने की कोशिश कर रही है, जबकि कांग्रेस इसे एक आपराधिक जांच के रूप में पेश कर रही है, ताकि वह निष्पक्ष दिखे। यह स्पष्ट है कि मामला अब केवल जांच तक सीमित नहीं है, बल्कि यह कर्नाटक की राजनीति में एक बड़ा हथियार बन गया है।
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