धनतेरस पर जाग उठा बांके बिहारी मंदिर- आधी सदी बाद खुला खजाने का कमरा, जानें मंदिर का इतिहास और रहस्य

धनतेरस 2025 पर मथुरा का बांके बिहारी मंदिर आधी सदी बाद चर्चा में आया, जब मंदिर का बंद खजाने का कमरा खोला गया। जानिए 350 साल पुराने इस मंदिर के इतिहास, रहस्यों, खजाने में मिली वस्तुओं और ठाकुर बांके बिहारी की दिव्य कथा के बारे में विस्तार से।

Jyotsna Singh
Published on: 20 Oct 2025 12:51 AM IST
Banke Bihari Temple Treasure Room
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Banke Bihari Temple Treasure Room (Image Credit-Social Media)

Banke Bihari Temple Treasure Room: इस बार धनतेरस मथुरा की प्राणवायु कहे जाने वाले मथुरा का विश्व विख्यात ठाकुर बांकेबिहारी मंदिर बड़ा ही ऐतिहासिक दिन बनकर आया। बांके बिहारी मंदिर अपने भक्तों के लिए सदियों से आस्था और रहस्य का केंद्र रहा है। इस मंदिर का विशेष कमरा, जिसे आधी सदी से बंद रखा गया था, धनतेरस 2025 पर आखिरकार खुल गया। यह कमरा मंदिर के गर्भगृह के ठीक पीछे स्थित है और इसे लंबे समय तक सुरक्षा कारणों से बंद रखा गया था। इस ऐतिहासिक दिन मंदिर परिसर में भारी पुलिस बल और कड़े सुरक्षा इंतजाम किए गए थे। बांके बिहारी मंदिर का यह कमरा सिर्फ एक सुरक्षा हेतु बंद किया गया तहखाना नहीं, बल्कि मंदिर की प्राचीन परंपरा और श्रद्धा का प्रतीक भी है। आज यह खजाना खुलने के साथ ही मंदिर का इतिहास और रहस्य सामने आया। आइए जानते हैं बांके बिहारी मंदिर खजाने से जुड़ी जानकारी के बारे में विस्तार से -

क्या है इस खजाने के कमरे का रहस्य


मंदिर में सेवायत गोस्वामी आभास के अनुसार, यह कमरा पहले ठाकुर जी की दैनिक सेवा के सामान जैसे बर्तन, कलसे, स्नान सामग्री और छोटे आभूषणों को सुरक्षित रखने के लिए इस्तेमाल होता था। सुरक्षा की कमी के कारण इसे बंद कर दिया गया था।

आज कमरे का ताला खोलते ही अंदर पानी भरा और काफी कीचड़ मौजूद था, वहीं चूहे भी दिखाई दिए। शुरुआती निरीक्षण में कोई बेहद कीमती वस्तुएं नहीं मिलीं। मंदिर प्रशासन ने स्पष्ट किया कि यह खजाना महाराजा या राज्य द्वारा जमा किया गया धन नहीं है। इसमें केवल ठाकुर जी की सेवा और पूजा से संबंधित वस्तुएं ही रखी गई थीं।

खजाने के कमरे में जो भी सामग्री निकलेगी, वह प्राचीन तांबे और चांदी के बर्तन, कलसे, स्नान सामग्री, लकड़ी का सिंहासन और पुराने आभूषण जैसी वस्तुएं होंगी। मंदिर प्रशासन ने इस प्रक्रिया में सभी सुरक्षा और धार्मिक नियमों का पालन सुनिश्चित किया।

पहले दिन की जांच में क्या आया सामने

पहले दिन जब तहखाना खोला गया, तो इसमें कुछ बर्तन, लकड़ी का सिंहासन और भक्तों के बक्से मिले। समय कम होने के कारण कमरे को फिर से बंद कर दिया गया और जांच प्रक्रिया अगले दिन के लिए बढ़ा दी गई।

दूसरे दिन की खोज में क्या आया सामने


हाई पावर्ड कमेटी के सदस्य दिनेश गोस्वामी ने बताया कि दूसरे दिन खजाने की पूरी जांच और सूचीकरण (इन्वेंटरी) पूरी कर ली गई। इस दौरान तिजोरियों में 1942 के आसपास के दो तांबे के सिक्के, कुछ पुराने सिक्के, तीन चांदी की छड़ियां और एक सोने की छड़ी मिली। सोने की छड़ी पर गुलाल लगा हुआ था। नीचे के कमरे की भी पूरी तलाशी ली गई, लेकिन वहां कुछ भी नहीं मिला। अब खजाने का कमरा पूरी तरह से खाली हो चुका है।

सभी वस्तुओं का फोटोग्राफिक डाक्यूमेंटेशन और इन्वेंटरी लिस्ट तैयार कर ली गई है।

बांके बिहारी मंदिर का 350 साल पुराना इतिहास

ठाकुर बांके बिहारी मंदिर सिर्फ एक धार्मिक स्थल नहीं, बल्कि इतिहास और संस्कृति का जीवंत प्रतीक भी है। बांके बिहारी मंदिर मंदिर में हर दिन हजारों भक्त दर्शन के लिए आते हैं और अपनी मनोकामना पूर्ण करने की प्रार्थना करते हैं। मंदिर का निर्माण वृंदावन के गोस्वामियों ने निजी धन से कराया था। उस समय मंदिर निर्माण में लाखों रुपए की लागत आई।

मंदिर के लिए जमीन कृष्णभक्त भरतपुर के राजा रतन सिंह ने दान में दी थी। यह मंदिर आज 350 साल पुराना है और सदियों से भक्तों की आस्था का केंद्र बना हुआ है। मंदिर की खास बात यह है कि यहां कोई भी भक्त निराश होकर नहीं लौटता। भक्तों की मान्यता है कि ठाकुर बांके बिहारी उनकी हर प्रार्थना सुनते हैं। मंदिर का इतिहास और रहस्य इतना गहरा है कि इसने स्थानीय और अंतरराष्ट्रीय श्रद्धालुओं का ध्यान हमेशा खींचा है।

ठाकुर बांके बिहारी मंदिर की कहानी और रहस्य


बांके बिहारी मंदिर की कहानी के अनुसार, 16वीं सदी में स्वामी हरिदास नामक कृष्ण भक्त ने भक्ति से प्रसन्न होकर कृष्ण को निधिवन में विग्रह रूप में प्रकट होने की प्रार्थना की थी। जिस पर कृष्ण-राधा एकाकार होकर बांके बिहारी की विग्रह मूर्ति में प्रकट हुए। बाद में भक्तों की विशेष इच्छा पर स्वामी हरिदास ने इस मूर्ति के लिए मंदिर का निर्माण कराया, जिससे यह 'बांके बिहारी मंदिर' के नाम से प्रसिद्ध हुआ। मूर्ति के पीछे कुछ चमत्कारी घटनाओं का भी उल्लेख है, जहां भगवान कृष्ण भक्त की पुकार पर अपना स्थान छोड़कर चले जाते थे। इसी कारण से, भक्तों को भगवान के दर्शन से विचलित न होने देने के लिए और उन्हें एकटक देखने से रोकने के लिए मंदिर में थोड़ी-थोड़ी देर में पर्दा डाला जाता है। वहीं इस मंदिर के खजाने का यह कमरा आधी सदी से बंद था और केवल ठाकुर जी की पूजा-सामग्री सुरक्षित रखने के लिए इस्तेमाल होता था। अब इस मंदिर के खजाने का कमरा धनतेरस पर खोला जाना समृद्धि और आस्था का प्रतीक माना जा रहा है। सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर हाई पावर्ड कमेटी ने 54 साल पुराने खजाने को खोलने का आदेश दिया। इस समिति ने चार घंटे तक सावधानीपूर्वक जांच की। मंदिर में खजाने के कमरे के खुलने की खबर ने पूरे शहर में उत्सुकता और कौतूहल बढ़ा दिया। श्रद्धालुओं का कहना है कि इस ऐतिहासिक अवसर ने उनकी आस्था को और मजबूत किया। मंदिर परिसर में सुरक्षा व्यवस्था इतनी कड़ी थी कि लाखों भक्त सुरक्षित रूप से दर्शन कर सके।

350 साल पुराने इस मंदिर में आज भी भक्तों की आस्था और विश्वास अडिग है।

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Shweta Srivastava

Shweta Srivastava

Content Writer

मैं श्वेता श्रीवास्तव 15 साल का मीडिया इंडस्ट्री में अनुभव रखतीं हूँ। मैंने अपने करियर की शुरुआत एक रिपोर्टर के तौर पर की थी। पिछले 9 सालों से डिजिटल कंटेंट इंडस्ट्री में कार्यरत हूँ। इस दौरान मैंने मनोरंजन, टूरिज्म और लाइफस्टाइल डेस्क के लिए काम किया है। इसके पहले मैंने aajkikhabar.com और thenewbond.com के लिए भी काम किया है। साथ ही दूरदर्शन लखनऊ में बतौर एंकर भी काम किया है। मैंने लखनऊ यूनिवर्सिटी से इलेक्ट्रॉनिक मीडिया एंड फिल्म प्रोडक्शन में मास्टर्स की डिग्री हासिल की है। न्यूज़ट्रैक में मैं लाइफस्टाइल और टूरिज्म सेक्शेन देख रहीं हूँ।

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