TRENDING TAGS :
Best Motivation Poems in Hindi: जटामासी की महक से भरी प्रेम की सुफल कविताएँ
Best Motivation Poems in Hindi: हिंदी के अनेक कवियों ने अपनी अलग-अलग समयों पर प्रकाशित प्रेम कविताओं के संकलन बना कर उन्हें पुस्तक का रूप दे दिया है।
Best Motivation Poems in Hindi
Hindi Love Poems: कविता अपने आप अपना पक्ष रखती है। यानी कविता को कोई पैरोकार नहीं चाहिए होता है। वैदिक काल से लेकर आज तक हर समर्थ कविता यही करती रही है। कवि योगेश मिश्र की कविता भी अपना पक्ष पूरी क्षिप्रता और प्रगल्भता से रखने में समर्थ है और उसे किसी भी संबल और सहारे की आवश्यकता नहीं है। लेकिन मैं कुछ बातें इन कविताओं के बारे में ससंकोच कहना चाहूँगा। वह भी कवि होने के नाते कविता का एक पाठक होने के नाते ही यह बात कहने की हिम्मत कर पा रहा हूँ। वह बात यह है कि ये कविताएँ प्रेम के धागे से बुनी ही नहीं गई हैं बल्कि प्रेम ही इनका ताना-बाना करघा-कताई-बुनाई सब है। कह सकते हैं कि यहाँ प्रेम है और प्रेम के अतिरिक्त कुछ नहीं है। प्रेम की इतनी छवियाँ, इतनी सुगंध, इतने रूप, इतने रंग, इतनी मुद्राएँ, इतनी ध्वनियाँ किसी एक कविता संग्रह में पहले कब देखा है याद नहीं। शायद नहीं ही देखा है। क्योंकि हिंदी के अनेक कवियों ने अपनी अलग-अलग समयों पर प्रकाशित प्रेम कविताओं के संकलन बना कर उन्हें पुस्तक का रूप दे दिया है। लेकिन यहाँ तो आद्योपांत सब तरफ प्रेमरस भीना है। लगभग पूरा संग्रह ही प्रेम का पावन संसार है। और इन प्रेम कविताओं में ऐसी अपूर्व जटामासी की गंध है, जो और किसी हिंदी कवि की कविता में मैंने नहीं पाई है। यह गंध कविता को एक मोहक घने जंगल में रूपांतरित कर देती है और वह जंगल डराता नहींए बुलाता है-
यह प्रेम तो घना जंगल है
जिसमें शेर और हिरन रहते हैं साथ
जिसमें खुद उग आते हैं पेड़ पास-पास
हवाएं खुद चलती हैं
प्रकृति की अकूत संपदा मचलती है।
हिंदी कविता में इस तरह की अबोध सरलता विलुप्त सी हो गई है। ये कविताएँ इसलिए भी सम्मोहित करती हैं क्योंकि यहाँ कोई बनावट नहीं है। कोई नकली आवरण नहीं है। कोई पर्दा नहीं है। यहाँ कविता में अनेक उपमान ऐसे हैं, जिनके पास पहुँच कर आप सहज ही ठिठक जाएँगे और पाएँगे कि उन उपमानों ने आपको हाथ पकड़ कर पास बैठा लिया है—
चुप-चुप,मंद-मंद
कीमती बटुए की तरह
कसी तुम्हारी मुस्कान
अगर आप ने संसार का काव्य साहित्य पढ़ा हो या प्रेम के रूपक देखें हों तो याद करके बताएँ कि प्रेमिका की मुस्कान को , और कहाँ, कीमती बटुए की तरह कसी मुस्कान कहा गया है। नहीं यह बात यहीं कही गई है। और यहाँ यह बात भी मैं जोर देकर कहना चाहूँगा कि हिंदी कविता में प्रेम का केवल कंकाल ही बचा रह गया है। यथार्थवाद और जनवाद ने, प्रेम के मोहक, मादक और जीवंत पक्ष की हत्या कर दी है। लेकिन योगेश जी की इन कविताओं में प्रेम है और हर कोण और हर पक्ष से नया और जीवंत है, बल्कि एक चुनौती की तरह वह अपने को पेश करता है। यह प्रेम ही है जो महान किताब कुरान के सामने भी अपने होने का दावा करता है। यहाँ कवि की तारीफ करनी होगी कि वह पूरी निर्भयता से कह पाता है.
तुम नहीं जानती कि
प्रेम तुम्हारी कुरान के सामने खड़ा है।
हिंदी कविता में अंतधार्मिक प्रेम एक दुर्लभ वस्तु है। शायद घनानंद के बाद यह अंतधार्मिक प्रेम स्थान पा रहा है या रसलीन के बाद।
मैं कविता का मर्मज्ञ नहीं, रसिक हूँ और कविता का आस्वाद लेने में यकीन रखता हूँ। मैं दावे से कह सकता हूँ कि ये कविताएँ अपने होने से प्रेम के परिवेश को एक नई और गहन जीवन सुगंध से भर देंगी। ये प्रेम को कैसे समझा जाए कैसे उसे ग्रहण किया जाए, यह उपाय भी बताती हैं। इस संग्रह की एक बड़ी अनोखी कविता है ‘ प्रेम का पर्व’। उस कविता में कवि प्रेम की एक विरल व्याख्या देता है। वह व्याख्या कुछ ऐसे है—
जिसे हम प्रेम कहते हैं
वह प्रेम नहीं
भोगना है।
प्रेम छकना नहीं
चखना है।
देखने में चखना और छकना दो तुक मिलाते से शब्द भर लगते हैं। लेकिन चखने और छकने में जो मर्म का भेद छिपा है वह कवि हृदय की गहराई का प्रमाण है और परिणाम भी है। छकने में एक पिपासा है, भूख है, हिंसा है, जबकि चखने में एक
संतृप्ति है, संतोष है, सातत्य का भरोसा है। संतृप्ति में प्रेम जीवित रहता है, छकने में प्रेम की धड़कनें थम जाती हैं। छकना प्रेम की हत्या है, चखना प्रेम का जीवन है। और यहाँ कवि कटिबद्ध है कि उसे प्रेम को चखने की तरह ही स्वीकार करना, करवाना है। छकने की ओर उसे नहीं जाना है। कवि की यही सोच इन कविताओं को एक सूफियाने स्वर में बदल देती है। यह सूफीपन इन कविताओं में अनेक स्तरों, तहों और धरातलों में गुंथा-बिंधा और पिरोया हुआ है। और वह प्रेम ही क्या जिसकी बनावट में माया न हो। सूफी और माया का यह मेल कवि योगेश मिश्र जी को शमशेर बहादुर सिंह की परम्परा में खड़ा कर देता है। जहाँ प्रेम एक पूरा काम हो जाता है। शमशेर जी अपनी एक कविता में कहते हैं.
द्रव्य नहीं कुछ मेरे पास
फिर भी मैं करता हूँ प्यार
रूप नहीं कुछ मेरे पास
फिर भी मैं करता हूँ प्यार
सांसारिक व्यवहार न ज्ञान
फिर भी मैं करता हूँ प्यार
शक्ति न यौवन पर अभिमान
फिर भी मैं करता हूँ प्यार
शमशेर की प्यार की शरणागति योगेश जी तक आते.आते और विराट रूप धारण कर लेती है।
और कवि पाता है कि प्रेम या प्यार की ख्वाहिशें कभी पूरी नहीं होती। क्योंकि प्रेम चखना है छकना नहीं।
ख्वाहिशें
पूरी नहीं होतीं।
बीजों की तरह
उतर जाती हैं
ज़िंदगी की कोख में।
जहाँ से वह कई और
ख्वाहिशों को देती हैं जन्म।
यह सिलसिला चलता रहता है।
वो इसे माया कहता है।
प्रेम और जीवन अंत तक माया ही तो है। उस माया को आप प्रेम करने वालों की दौलत कहें या मोह। मोह भी तो एक प्रकार से दौलत ही है। यही माया प्यार का उद्यम और हासिल दोनों है। लेकिन माया का एक बड़ा रूप सीता भी है और कवि एक मनोदशा में सीता को पाने की आकांक्षा पर स्वयं ही प्रश्न लगाता है क्योंकि वह अपने को राम समान नहीं पाता है। यह कवि का आत्मालोचन है जो उसके प्रेम को और उदात्त बनाता है—
जब नहीं रहा हूँ
कभी राम सरीखा।
फिर भी सीता को
पाने की अभिलाषा।
इस संग्रह का मूल और मुख्य स्वर प्रेम का ही है। जीवन की यात्रा के अनेक पड़ाव यहाँ अंकित हैं। हेयर पिन से लिखे नाम पेड़ के तने से भले उतर गए हों लेकिन कवि के मन पर वे गहरे अंकित हैं। वे कविता के द्वारा पाठकों के मन पर भी अपना सहज प्रभाव डाले बिना न रहेंगे। इसलिए इन कविताओं को एकबारगी नहीं गहराई से पढ़ना होगा। मैं वय में मुझसे बड़े और कविता में कहीं अधिक पारदर्शिता वाले कवि योगेश जी को अपनी हार्दिक मंगलकामनाएँ देता हूँ और यह बात साधिकार कहता हूँ कि ये कविताएँ प्रेम का एक नया रूपक प्रस्तुत करने में सर्वथा समर्थ हैं। यही कवि की सबसे बड़ी सुफलता है। कविता सुफल है।
( लेखक प्रतिष्ठित साहित्यकार व भारत भूषण सम्मान से सम्मानित हैं। उन्होंने यह अंश योगेश मिश्र के कविता संकलन ‘ कॉलेज की लडकियॉ’ के लिए लिखा है।)
AI Assistant
Online👋 Welcome!
I'm your AI assistant. Feel free to ask me anything!